हरिद्वार l सदैव ही महाकुम्भ का बैशाखी स्नान विवादों में ओर मिथक से भरा रहा है। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि बैशाखी पर्व बिना किसी विवाद, दुर्घटना अथवा रंजिश पूर्ण घटनाओं से परे रहा हो। अगर हम आजादी के बाद प्रथम कुम्भ जो 1950 में सम्पन्न हुआ को देखे तो जानकारी मिलती है कि बैशाखी पर्व 14 अप्रैल के शाही स्नान में हरकी पैडी में बेरियर टूटने से लगभग 50 से 60 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। वहीं 1986 के महाकुम्भ में बैशाखी पर्व में भीड़ के दवाब बढ़ने से 50 से 52 भक्त असमय ही काल ग्रसित हो गए थे। वर्ष 1998 का कुम्भ भी इस बुरी छाया से दूर न रह सका। इस महाकुम्भ के 14 अप्रैल के शाही स्नान पर भी श्रापित छाया नजर आती है। जब दो बड़े अखाड़ों के आपसी विवाद और लड़ाई से शाही स्नान बाधित हो गया, जबकि 2010 के बैशाखी पर्व शाही स्नान पर दुर्घटना में 07 व्यक्तियों की मौत हो गयी थी.
इतिहास उठाकर देखें तो उससे पता चलता है कि आजादी के बाद महाकुम्भ के बैशाखी पर्व के शाही स्नान सदैव श्रापित रहा है। पूर्व में निर्मल अखाड़ों का शाही स्नान समय सामंजस्य सही न होने के कारण अंधेरे में सम्पन्न होता था जबकि इस महाकुम्भ में सभी शाही स्नान न वरन समय से पूर्ण हुए बल्कि आम श्रद्धालुओं को भी हरकीपेडी में स्नान का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह इतिहास का प्रथम स्नान है जिसमे सभी शाही स्नान में भव्य पुष्प वर्षा हेलीकॉप्टर के माध्यम से हुई है। साथ ही महाकुम्भ के सभी स्नान विवाद रहित रहे और आम जनता में आकर्षक का केंद्र भी क्योकि पूर्व इतिहास में हम नजर डालते हैं तो पता चलता है कि पूर्व में शाही अखाड़ों के जुलूस इतने विराट और भव्य नहीं होते थे और न ही इतनी अधिक संख्या में शाही रथ और वाहन इस्तेमाल होते हैं। इस महाकुम्भ में कुछ शाही अखाड़ों ने रिकॉर्ड 1100 से 1157 शाही वाहन अपने शाही स्नान जुलूस में इस्तेमाल किये बल्कि आईजी कुम्भ संजय गुंज्याल द्वारा तैयार अचूक रणनीति से कहीं भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।