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बुजुर्ग की भूख–(लघु कहानी)

Manoj Rautela by Manoj Rautela
03/06/20
in साहित्य
बुजुर्ग की भूख–(लघु कहानी)

किरन सिंह

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-बुजुर्ग की भूख-

दोपहर का वक्त थ्री टायर रिर्जवेशन की बोगी। एक बुजुर्ग, उसके साथ में उसका पोता, बहू,बेटा। बुजुर्ग आगे कि सीट पर पीछे उसका परिवार। बुजुर्ग बार-बार अपने पोते को आवाज देता हैं। ऐ …सुनता नहीं का…बदमाश कहीं का। पोता ऊपर की सीट पर लेटा है नहीं सुनता। बुजुर्ग फिर आवाज देता है। अबकी बार कुछ गालियों के साथ। पोता अनमना होकर ऊपर कि सीट से नीचे उतरता है। आँखें मलता हुआ चेहरे से लग रहा था कि नींद में था। टेढ़ा मुँह बनाकर कहता हैं। क्या है बाबा…। बुजुर्ग नालायक कहीं का, ज्यादा नींद सवार हैं। आपन महतारी से बोल कि मुझे भूख लगी हैं। कुछ खाने को दे। पोता पीछे कि सीट पर जाता हैं। थोड़ी देर बाद आता है उसके हाथ में एक कटोरा हैं। जिसमें सत्तू का पानीदार घोल है। उसे देखते ही बुजुर्ग का गुस्सा सातवें आसमान पर। ये क्या हैं ? हम क्या जिनावर हैं जब देखो यही घोलकर दे देती है। अपना बढ़िया-बढ़िया माल खावत है। हमको यह भूसा सानकर दे रही है। ले जा उसी को खिला दे नहीं चाहिये। पोता चुप खड़ा सुन रहा था। उसे यूँ खड़ा देखकर बुजुर्ग गुस्से में उसे व उसकी माई दोनों को ही गालियाँ देने लगे। पोता चला गया। फिर ऊपर चढ़ कर सो गया। बुजुर्ग बार-बार पीछे मुड़-मुड कर देख रहे था। इस आस में कि शायद उनकी बहू उन्हें कुछ खाने को देगी। फिर पोते को आवाज देने लगे। कोई सुनवाई न देखकर चुप लगा गये।

कुछ देर बाद अपने पंैट के अंदरूनी जेब से कुछ रूपये निकालते है। सौ-सौ के पाँच नोट है। उसमें से एक नोट एहतियात से निकालते हैं। बाकी संभाल कर वापस अंदरूनी जेब में रख देते हैं। तभी एक ककड़ी वाला चिल्लाता हुआ आता है। दस रू0 के दो ककड़ी। मैने व मेरी दीदी ने दस में दो लिये। बुजुर्ग देख रहे थे। ले कि न ले, फिर कुछ सोच कर ले लिया। एक पीस उसको छोटे-छोटे टुकड़ो में कटवाया। खूब सारा नमक भी डलवाया। बड़े प्रेम से खाने लगे। पर ये क्या दो तीन पीस मुँह में डालते जाते उसे चूसते फिर हाथ में पूरा लेकर सीट के नीचे फेंकते जाते। पूरा ककड़ी के साथ बुजुर्ग ने यही प्रेम दर्शाया। तब पता चला कि बुजुर्ग के मुँह में तो एक भी दाँत नहीं हैं। भूख तो मिटी नहीं बुजुर्ग की अब क्या करे ? उनके मतलब लायक कुछ भी नहीं मिल रहा था। वो कुछ ठोस खाना चाहते थे। जिससे उनकी भूख मिट जाये। हर आते जाते फेरी वाले को बडे ही लालसा के साथ देखते फिर मन मसोक कर रह जाते। ठंड़ा की बोतल आने पर एक फ्रुटी भी ली। उसे पिया। थोड़ी राहत मिली। बार-बार पीछे मुड़ मुड़ कर देखते भी जाते कि उसके परिवार वाले देख तो नहीं रहे। बुजुर्ग कि मुठ्ठी पैसों से गर्म थी। चेहरे पर पूरा का्न्फीडेन्स कि वह जो चाहे खा सकता है। और इस पैसे से वह उनमें से किसी को भी कुछ नहीं देगा। दस पंद्रह मिनट तक बुजुर्ग शांत रहे। उन्हें फिर भूख सताने लगी। हर आती जाती चीज को ललचाई नजरो से देखते। तभी एक फेरी वाला चिल्लाता हुआ आया बंबई के मुरमुरे बंबई की भेलपूरी। बुजुर्ग कि आँखे चमक गई। मुरमुरे माने लाई। यह मुलायम होगी माने खाया जा सकता है। तुरंत ही बुजुर्ग ने बीस रू0 में एक दोना लाई भेलपूड़ी बनवा ली। मजे से खाने लगे। लेकिन ये क्या उसमें मुगफली व चने भी पड़े थे। हाथ में ले कर फिर सीट के नीचे फेकना शुरू। दोने में से चुन-चुन कर मुँगफली व चना सीट के नीचे फेका फिर खाना शुरू। थोड़ी देर हुआ था कि बुजुर्ग कि आँख व नाक से पानी बहने लगा। परेशान लगने लगे रूमाल से बार-बार नाक व आंख से निकलते पानी को पोंछने लगे।

भेलपूड़ी में शायद कुछ तीखी मिर्च पड़ी थी। पानी उनके पास था नही।ं पानी के लिये फिर अपने पोते को आवाज देने लगे। पर कोई सुनवाई नहीं। बैठे-बैठे उपर नीचे आवाज लगाने लगे। मैने अपनी बोतल से पानी देने की कोशिश की, तो लेने से इंकार कर दिया। उन्हें शायद यह लगा हो कि बोतल जूठी हो। मिर्च लगने के कारण वह काफी बेहाल हो रहे थे। एक स्टेशन पर ट्ेन के रूकने पर बीस रू0 निकाल कर एक नई बोतल पानी की ली। मुझसे उसे खुलवाया। दो चार घूट मुँँह में डाल गले से नीचे उतारे। राहत कि साँस ली फिर थोड़ा सा पानी अपने मुरमुरो में डलवाया। उसे अच्छे से गीला करवा कर बड़े मजे से पूरा खाया। चेहरे पर पूरी तृप्ति के से भाव। फिर खड़े होकर लगे अपने पोते को आवाज देने एक-एक सीट पर जाकर चेक करने लगे। पूरा डिब्बा छान मारा लेकिन पोता कहीं नहीं मिला। अब बुजुर्ग के चेहरे पर परेशानी के से भाव आने लगे। बार-बार उठ-उठ कर फिर से देखने लगे। ऐ….बाबू..ऐ …बचवा कहां चल गईल हो बचवा। बुजुर्ग की आवाज में करूणा दुख झलकने लगा। फिर उसे अपने बहू बेटा कि याद आई। वह उन्हें खोजने लगा। वह भी उसे कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे थे। इधर-उधर पूछना शुरू किया तो पता चला कि उनका बहू बेटा व उनका पोता पिछले स्टेशन पर ही उतर चुके थे। बुजुर्ग वापस अपनी सीट पर आकर ढह गये। आँख नाक से फिर पानी बहने लगा। अब शायद ये आंसु उनकी आंखो से दुख व घबराहट के निकल रहे थे। रूमाल से पोछते जाते। हम सबको अपनी तरफ देखते पाकर जबरजस्ती अपने होठों पर मुस्कान लाकर कहते हैं। बदमाश कहीं का….. भेलपूड़ी में बड़ा मिर्चा डाल दिया।

-किरन सिंह बैस-

-बनारस-

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