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क्या भारत बन सकता है हिंद महासागर की शक्ति?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
11/09/22
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
क्या भारत बन सकता है हिंद महासागर की शक्ति?
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आई.एन.एस. विक्रांत के पहले स्वदेश निर्मित विमान वाहक के रूप में शामिल होने के साथ भारत अपने नौसैनिक कौशल को और ज्यादा बढ़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार है। जहां तक हमारी समुद्री शक्ति प्रक्षेपण क्षमताओं का संबंध है, नि:संदेह विक्रांत एक महत्वपूर्ण शक्ति गुणक साबित होगा। हालांकि चीन आक्रामक रूप से ‘बैल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ और ‘ब्लू वाटर नेवी’ दोनों के माध्यम से विश्व स्तर पर व्यापक प्रभाव के लिए जोर दे रहा है विशेष तौर पर ङ्क्षहद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए। भारत इसके लिए कितना तैयार है जो चीनी खतरे का मुकाबला करेगा जो संभावित रूप से अपनी रणनीतिक, आॢथक और विशेष रूप से इसके व्यापारिक हितों को सुरक्षित करने की क्षमता को कम कर सकता है।

भारत सरकार की महत्वपूर्ण समुद्री रेखाओं पर एक ऐसी स्थिति बन बैठी है जो इसे वास्तव में क्षेत्रीय नौसैनिक शक्ति बनाने के लिए विशिष्ट रूप से सशक्त बनाती है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसे दो काम करने होंगे। सबसे पहले भारत को उन क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता है जो इसे आई.ओ.आर. रिंग में रहने वाले राष्ट्रों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है और इसे सक्षम बनाता है। यह भारत को समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करके और आवश्यकता पडऩे पर मानवीय सहायता प्रदान करके इस क्षेत्र में एक स्थिर भूमिका निभाने में सक्षम बनाएगा।

दूसरा पहलू यह है कि भारत की नौसेना को कम से कम पश्चिमी ङ्क्षहद महासागर क्षेत्र में पर्याप्त सामरिक उपस्थिति की जरूरत होगी जिसमें मॉरीशस, सेशेल्स, मैडागॉस्कर, कीनिया, सोमालिया, फ्रांसीसी विदेशी द्वीप रि-यूनियन, ब्रिटिश भारतीय महासागर क्षेत्र शामिल हो। भारत इसे एक या 2 विमान वाहक पोत के साथ हासिल करने की उम्मीद नहीं कर सकता। फिर चाहे उसके पास कितनी भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हो।

इसलिए पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र महत्वपूर्ण है। वास्तव में 2015 की भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति यह मानती है कि भारत के पास एक वास्तविक ब्लू वाटर नेवी होने के लिए इस क्षेत्र में नौसेना की उपस्थिति के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ब्लू वाटर नेवी बनाना एक बहुत बड़ा कार्य है लेकिन बिना सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के यह संभव नहीं। ङ्क्षहद महासागर क्षेत्र में नौसेना को एक बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए अधिक वैचारिक दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है।

हिंद महासागर क्षेत्र में पर्याप्त उपस्थिति दर्ज कराने के मामले में पी.एल.ए. नौसेना हमसे बहुत आगे है। इस वर्ष जून में अपने नवीनतम विमान वाहक पोत ‘फुजियान’ की शुरूआत करते हुए बीजिंग विदेशी सुविधाओं पर नजर गड़ाए हुए हैं जो और भी अधिक तेजी के साथ अपने ब्लू वाटर नौसैनिक उपस्थिति को बनाए रखने और समर्थन करने में मदद करेगा। विदेशी ठिकानों की इस खोज ने अमरीका को भी चिंतित कर रखा है। अमरीकी सेना के अफ्रीकी कमान के कमांडर जनरल स्टीफन टाऊनसेंड ने अफ्रीका के चारों ओर नौसैनिक अड्डे बनाने के चीन के प्रयत्नों को सबसे महत्वपूर्ण खतरा बताया है। चीन हिंद महासागर पर लेजर इंटैंसिटी से फोकस कर रहा है। इसने अपनी समुद्री उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कई देशों में बंदरगाहों पर निवेश कर रखा है। 2017 में इसने जिभूति में एक नौसैनिक अड्डा बनाया जो अदन की खाड़ी से सटे हार्न ऑफ अफ्रीका पर स्थित है।

पाकिस्तान में गवादर, श्रीलंका में हबन टोटा, म्यांमार में कोको द्वीप पर एक निगरानी स्टेशन के साथ चीनियों ने धीरे-धीरे अपने समुद्री पदचिन्हों को आगे बढ़ाया है और अब पश्चिमी ङ्क्षहद महासागर में अन्य भागीदारों पर अपनी नजरें रखे हुए है। अफ्रीका में 2 दशकों की ऋण कूटनीति के साथ चीनियों ने उस महाद्वीप पर एक वाणिज्यिक से एक सैन्य उपस्थिति तक आई.ओ.यू. विकसित किया है। जिभूति में चीनी नौसैनिक अड्डों में हैलीकाप्टर पैड हैं और यह विमान वाहक और पनडुब्बियों की मेजबानी के लिए काफी बड़ा है। चीनियों ने संयुक्त अरब अमीरात में एक सुविधा विकसित करने का भी प्रयास किया है जिसे अमरीकी हस्तक्षेप के बाद शुरू में ही समाप्त कर दिया गया है। कंबोडिया में चीन के रीग नौसैनिक अड्डे के फलने-फूलने के साथ थाइलैंड की खाड़ी पर हावी होने की क्षमता और बढ़ जाएगी।

चीन का 2019 का रक्षा श्वेत पत्र आगे बढऩे वाली नौसेना की रणनीति को रेखांकित करने में शिक्षाप्रद है। यह कहने में स्पष्ट बात है कि पी.एल.ए. को विदेशी रसद सुविधाएं और चीन के विदेशी हितों की रक्षा विकसित करनी चाहिए। चीन को संसाधनों और शिपिंग लेन की रक्षा के लिए हिंद महासागर में एक आधार की जरूरत है। अपनी आधार रणनीति के माध्यम से चीनी 2 चीजों को हासिल करने की उम्मीद करते हैं। पहला, वे अपनी सैन्य शक्ति को प्रोजैक्ट करना चाहते हैं और दूसरा उनका लक्ष्य अपनी सैन्य शक्ति को अपने स्वयं के समुद्री तट से लंबी दूरी पर बनाए रखना है। हालांकि अब उनकी आकांक्षाएं बहुत आगे निकल चुकी हैं। इन दोनों पहलुओं से भारत को एक नए तरीके के बारे में सोचना चाहिए। ङ्क्षहद महासागर में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अंत में जैसे-जैसे ङ्क्षहद महासागर में चीनी उपस्थिति बढ़ती है। उससे भारत और चिंतित होगा।

ऐसा लगता है कि मॉरीशस और सेशेल्स दोनों में इसकी नींव की पहल दोस्ती और विरोधियों दोनों के घरेलू विरोध के कारण काफी हद तक रुक गई है। कई देश नहीं चाहते कि भारत महान शक्तियों के खेल के मैदान में अपने पैर जमाए। यह बात हमारी सामरिक उपस्थिति को काफी कमजोर करती है। भारत को पुरानी कहावत से अवगत होना चाहिए कि ‘जो समुद्र को नियंत्रित करता है वह सब कुछ नियंत्रित करता है’ यह आज भी उतना ही सत्य है जितना तब था।


– मनीष तिवारी

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