भोपाल: मध्य प्रदेश की दो ध्रुवीय राजनीति में ‘तीसरा विकल्प’ बनने के प्रयासों में जुटी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इस बार के विधानसभा चुनाव में दो दर्जन से अधिक सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस, दोनों का ही खेल बिगाड़ती दिख रही है. समाजवादी पार्टी (सपा) सहित ‘इंडिया’ गठबंधन के कुछ घटक दलों में भी अपनी ‘छाप छोड़ने’ की छटपटाहट है जो उनका ‘अपना’ ही नुकसान करती दिख रही है.
बसपा ने इस चुनाव में आदिवासी बहुल क्षेत्रों, खासकर महाकौशल की राजनीति में प्रभाव रखने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के साथ गठबंधन किया है. बसपा 183 सीटों पर तो गोंगपा 45 से अधिक सीटों पर ताल ठोंक रही है. सपा, आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी चुनाव मैदान में हैं. हालांकि बसपा और सपा के अलावा किसी अन्य दल का कोई ऐसा प्रभाव नहीं है जिससे चुनावी नतीजों में कोई बड़ा अंतर आए.
प्रदेश के ग्वालियर-चंबल और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे विंध्य और बुंदेलखंड के क्षेत्रों में बसपा ने हमेशा जबकि सपा ने कुछ चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. बसपा ने सबसे कम सात प्रतिशत और सबसे अधिक 11 प्रतिशत मत हासिल किए हैं. 1993 और 1998 के चुनावों में उसके 11 उम्मीदवार विधायक बने थे. दोनों ही बार कांग्रेस की सरकार बनी थी.
2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 173 सीटें जीतकर कांग्रेस को जब सत्ता से बेदखल किया था तब बसपा को 10.6 प्रतिशत मत मिले थे. हालांकि उसके दो ही उम्मीदवार विधानसभा पहुंच सके थे. पिछले चुनाव में भी बसपा को दो ही सीट मिली थी और उसका मत प्रतिशत गिरकर 6.42 पर आ गया था. इस चुनाव में कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और बसपा के दो, सपा के एक तथा कुछ निर्दलीयों की मदद से कांग्रेस ने सरकार बनाई.
सपा ने इस राज्य में सबसे अच्छा प्रदर्शन 2003 के चुनाव में किया था, जब उसके सात विधायक विधानसभा पहुंचे थे. उसे 5.26 प्रतिशत वोट मिले थे. यह इस बात के संकेत हैं कि बसपा और सपा के वोट बैंक का बढ़ना या घटना, चुनावी नतीजे को प्रभावित करता है. बसपा और सपा सहित अन्य दलों ने इस चुनाव में बागियों पर दांव खेला है. लिहाजा कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. ये उम्मीदवार कुछ सीटों पर बीजेपी का तो कुछ पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ रहे हैं.
विंध्य की सतना, नागौद, चित्रकूट और रैगांव सीट पर बसपा के उम्मीदवार मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं. सतना में जहां बीजेपी के बागी व बसपा के उम्मीदवार रत्नाकर चतुर्वेदी ‘शिवा’ ने बीजेपी सांसद गणेश सिंह के लिए मुश्किलें खड़ी की है वहीं बगल की नागौद सीट पर कांग्रेस के बागी और बसपा उम्मीदवार बने यादवेंद्र सिंह अपनी ही पूर्व पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं.
इसी प्रकार चित्रकूट सीट पर बीजेपी के बागी सुभाष शर्मा ‘डॉली’ हाथी पर सवार हो गए हैं और बीजेपी के उम्मीदवार व पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार और कांग्रेस के मौजूदा विधायक नीलांशु चतुर्वेदी की राह कठिन करते नजर आ रहे हैं. जिले की एकमात्र सुरक्षित रैगांव सीट पर बसपा के देवराज अहिरवार मैदान में हैं.
मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी का टिकट कटने के बाद वे विंध्य जनता पार्टी बनाकर कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशियों को टक्कर दे रहे हैं. उन्होंने विंध्य क्षेत्र की 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. रीवा की त्योंथर विधानसभा सीट पर बीजेपी के बागी देवेंद्र सिंह हाथी के साथ मिलकर ‘कमल’ का खेल बिगाड़ रहे हैं. बीजेपी ने यहां से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी राज को उम्मीदवार बनाया है.
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विंध्य क्षेत्र की कुल 30 सीटों में से 24 पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ छह सीट जीत पाई थी. क्षेत्र के लोग बताते हैं कि जब भी इस क्षेत्र में बसपा और सपा ने मजबूती से चुनाव लड़ा है तो उसका फायदा बीजेपी को मिला है. बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की भी कई सीटों पर बसपा ने बीजेपी और कांग्रेस के बागियों को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.