देहरादूनः उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्देश के बाद धामी सरकार का सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाओ अभियान पिछले करीब 2 महीने से जारी है. इस अभियान में सरकार ने ना केवल राजाजी नेशनल पार्क और कॉर्बेट नेशनल पार्क की भूमि पर बने सैकड़ों धार्मिक स्थलों और बस्तियों को हटाया, बल्कि इससे उन तमान विभागों को भी अपनी भूमि अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने का मौका मिल गया, जिन भूमि पर सालों से अवैध कब्जा बना हुआ है. ऐसे में वन विभाग ने सिंचाई विभाग के साथ मिलकर गढ़वाल और कुमाऊं की नदियों, नालों और तालाबों के किनारे बने अवैध धार्मिक स्थल और जमीनों को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया है.
कब्जधारी भूमि का सर्वे से खुलासा: एक जुलाई से वन विभाग ने नदियों के किनारे हुए अतिक्रमण को हटाने का काम शुरू किया था. 31 दिनों के भीतर विभाग ने 2507 एकड़ भूमि को कब्जा मुक्त कराया है. खास बात यह है कि वन विभाग ने नदी, नालों और तालाबों के किनारे हुए अतिक्रमण का सर्वे सेटेलाइट और ड्रोन के माध्यम से करवाया था, जिसमें बीते कुछ सालों की तस्वीरों के साथ-साथ मौजूदा समय की तस्वीरों को भी शामिल किया गया. इसके साथ ही जहां पर निरीक्षण टीम का जाना संभव नहीं था, वहां भौतिक रूप से सर्वे करवाया गया. सर्वे के बाद जो खुलासा हुआ, उसमें यह बात निकलकर सामने आई कि राज्य में 29,193 एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा हुआ है.
15 साल में 500 एकड़ जमीन पर कब्जा: वन विभाग के मुताबिक, 23 छोटी और बड़ी नदियों के किनारे से लगभग 500 एकड़ जमीन कब्जा मुक्त कराई गई है. यह कब्जे बीते 10 से 15 सालों के भीतर राज्य के अलग-अलग इलाकों में हुए थे. हैरानी की बात यह है कि नदी-नालों और गंगा के किनारे कब्जाधारियों ने धार्मिक स्थल का निर्माण कर अपने रहने की व्यवस्था भी कर रखी थी. ऐसे में अब तक लगभग 510 अवैध धार्मिक स्थलों को हटाया गया है. इसमें 453 मजार और 45 मंदिर शामिल हैं. वन विभाग ने अपने जांच में यह भी पाया है कि धार्मिक स्थलों के साथ-साथ नदी किनारे खनन करने वाले मजदूरों की बस्तियों को भी नदी किनारे ही बसाकर उनसे वहीं पर काम लिया जा रहा है. उन बस्तियों को भी हटाया गया है.
क्या कहते हैं अधिकारी: नोडल अधिकारी मुख्य वन संरक्षक पराग मधुकर के मुताबिक सबसे ज्यादा अतिक्रमण शीतला, नंदौर, यमुना टोंस, सहस्त्रधारा, आसन, मालन, गंगा, रिस्पना, कोसी, सुखरो, गौला नदी व मालदेवता के किनारे हुआ है. वन विभाग ने तमाम जिलों के डीएफओ को यह निर्देशित किया है कि ऐसी तमाम भूमियों को तुरंत कब्जा मुक्त कराया जाए. अभी यह अभियान और बड़े स्तर पर चलाया जाएगा. उन्होंने बताया कि जांच में पता चला है कि कुछ जगहों पर बस्तियां बसा दी गई हैं. प्रदेश में तमाम नदियों के किनारे 30 से 40 फीसदी भूमि पर कब्जा किया गया है.
वन भूमि कब्जे के मामले में तीसरा स्थान: केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट में उत्तराखंड को हिमालय राज्यों में वन भूमि अतिक्रमण मामले पर तीसरा स्थान दिया है. पहले स्थान पर जम्मू कश्मीर जबकि दूसरे पायदान पर मिजोरम है. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भी मानता है कि पहाड़ी राज्यों में बढ़ती आबादी अवैध कब्जे का मुख्य कारण है. यही कारण है कि धामी सरकार भी उत्तराखंड की डेमोग्राफिक चेंज होने के बाद अवैध कब्जों पर तेजी से कार्रवाई कर रही है. इतना ही नहीं, धामी कैबिनेट अवैध कब्जे के खिलाफ प्रस्ताव भी पास कर चुकी है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा अगर अवैध कब्जा किया जाता है तो उसे 10 साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है.