देहरादून : केंद्र और राज्य सरकार जहां कई विभागों में खाली पदों को भरने के लिए न सिर्फ जोर दे रही, बल्कि इसके लिए पैसा भी देने को तैयार हैं, इसके बावजूद समग्र शिक्षा में आउटसोर्स के 1519 पदों को पिछले तीन साल से भी अधिक समय से नहीं भर जा सके हैं।
इससे प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था को पहले से बेहतर बनाने की योजना पर असर पड़ रहा है। राज्य में समग्र शिक्षा अभियान के तहत आउटसोर्स के 1797 पदों में से 1519 पद खाली हैं। यह हाल तब है, जबकि केंद्र सरकार इन पदों पर खर्च होने वाली 90 प्रतिशत धनराशि देने को तैयार हैं, लेकिन विभाग इन पदों को नहीं भर पा रहा है।
अधिकतर पद सीआरपी और बीआरपी के
इससे बीआरपी के 285, सीआरपी के 670, रिसोर्स पर्सन आईईडी के 161, लेखाकार कम सपोर्ट स्टाफ के 331, डाटा एंट्री ऑपरेटर 14 और परिचारक के आउटसोर्स के 20 पद सहित कई अन्य पद खाली हैं। विभागीय अफसरों का कहना है कि इसमें अधिकतर पद सीआरपी और बीआरपी के हैं।
इन सभी पदों को भरने के लिए आउटसोर्स एजेंसी का चयन करने के साथ ही न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की जानी है। समग्र शिक्षा के अधिकतर पद खाली होने से स्कूल स्तर पर आठ लाख से अधिक छात्र-छात्राओं को केंद्र की योजना का समय पर लाभ नहीं मिल पा रहा है। छात्र-छात्राओं को मुफ्त किताबें, स्कूल ड्रेस तय समय पर नहीं मिल पा रहीं, जबकि स्कूल स्तर से राज्य परियोजना कार्यालय को सूचनाओं का आदान प्रदान भी समय पर नहीं हो पा रहा है।
नियुक्तियों को लटका रहा विभाग
बेरोजगारों का कहना है कि 26 मई 2023 को सभी के लिए शिक्षा परिषद समग्र शिक्षा योजना की कार्यकारिणी परिषद की बैठक हुई थी। बैठक में नियुक्तियों के संबंध में निर्णय के बाद भी विभाग शासन को और शासन विभाग को प्रस्ताव भेजकर नियुक्तियों को जानबूझकर लटकाए हुए है।
समग्र शिक्षा में ये पद भी हैं खाली
समग्र शिक्षा में कंप्यूटर प्रोग्रामर, कनिष्ठ अभियंता, लेखाकार, मैनेजर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट, कंप्यूटर ऑपरेटर, वाहन चालक, टेक्निकल एक्सपर्ट एमआईएस, सहायक अभियंता के पद भी पिछले काफी समय से खाली हैं।
ये है केंद्र की योजना
केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान की शुरुआत चार अगस्त 2021 में की थी, ताकि देश की शिक्षा व्यवस्था को पहले से बेहतर बनाया जा सके, जबकि इससे पहले केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया, जो प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित था, लेकिन समग्र शिक्षा अभियान प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा का सम्मिलित रूप है। इसके लिए केंद्र सरकार राज्य को 90 प्रतिशत धनराशि देती है, जबकि 10 प्रतिशत धनराशि राज्य को वहन करनी होती है।