समाज की सुव्यवस्था का आधार उज्ज्वल चरित्र के व्यक्तियों का बाहुल्य माना गया है। सुख-शान्ति और सन्तोष की परिस्थितियां नेक व्यक्तियों के सदाचार से बनती हैं। प्रेम, स्नेह, मैत्री, दया, आत्मीयता और सहानुभूति का वातावरण जहां भी रहेगा वहीं स्वर्ग जैसे सुखों की रसानुभूति होने लगती है। जो मनुष्य स्वभावतः दूसरों के साथ उदारता का व्यवहार करते हैं, स्नेह वर्तते और परोपकार की भावना रखते हैं वे अपने चरित्र की उज्ज्वल छाप दूसरों पर भी छोड़ते हैं। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है तो ऐसे स्थान विशेष में स्वर्गिक परिस्थितियों का उभार स्वयमेव होने लगता है। व्यक्ति के चरित्रवान् बनने से ही किसी समाज का सच्चा सुधार हो सकता है। व्यक्ति के चरित्रवान् बनने से ही किसी समाज का सच्चा सुधार हो सकता है। इसलिए चरित्र की महान महत्ता को सभी महापुरुषों ने स्वीकार किया है।
यह देखा जाता है कि लोग अपने बच्चों के नाम राम-कृष्ण, शिव-शंकर, राणाप्रताप, रणजीत आदि रखना अधिक पसन्द करते हैं। रावण, कंस या खरदूषण नाम रखना किसी को भी प्रिय नहीं। इससे प्रतीत होता है कि लोगों में चरित्रवान् की प्रतिष्ठा व सम्मान का भाव अधिक पाया जाता है। यह बात अपने यहां ही नहीं हर देश, जाति और संस्कृति में पाई जाती है। इससे चरित्र की महान् महत्ता प्रतिपादित होती है। मनुष्य की कीर्ति, यश और सम्मान का आधार बाह्यजगत की सफलताएं नहीं हैं। उसकी आन्तरिक श्रेष्ठता के आधार पर युगों तक यश शरीर अमर रहता है। सोलहवीं सदी में सबसे बड़ा पहलवान कौन हुआ, ईसा के जन्म से दो शताब्दी पूर्व कौन व्यक्ति सर्वाधिक धनी हुआ है यह कोई भी न जानता होगा, इतिहास में भी इनका कहीं उल्लेख नहीं मिलता किन्तु भगवान राम, कृष्ण, हरिश्चंद्र, शिव, दधीच, अर्जुन आदि चरित्रवान् महापुरुषों की जीवनियां आज भी लोगों को मुंह जबानी याद हैं।
दुराचारी व्यक्ति अपनी बाह्य-शक्तियों को भी देर तक बनाए नहीं रख सकते। कुकर्मों पर चलने से उनकी दुर्दशा स्वाभाविक है। फलतः उनका जीवन दिन-दिन पतित होता जाता है और उन्हें निरन्तर नारकीय यन्त्रणायें भोगनी पड़ती हैं किन्तु चरित्रवान व्यक्तियों को बुरा-समय भी वरदान सिद्ध हुआ है। अपनी चारित्रिक विशेषता के कारण सत्यव्रती हरिश्चन्द्र ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त कर लिया, उर्वशी का श्राप कालान्तर में अर्जुन के लिए वरदान सिद्ध हुआ। रावण के दुष्कर्मों का फल विनाश के रूप में मिला और विभीषण की नेकी का परिणाम यह हुआ कि उसे लंका की राजगद्दी मिली। चरित्र मनुष्य को सदैव ही ऊंचे उठाता है। परिस्थितियां तो चरित्रवान पुरुषों की चेरी कहीं गई हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य