नई दिल्ली: सेना के लिए भारत सरकार ने बहुत बड़े हथियार खरीद को मंजूरी दे दी है। रक्षा अधिग्रहण परिषद यानी डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल से सेना को 1.45 लाख करोड़ रुपए के हथियार खरीदने की मंजूरी मिल गई है। यह बहुत बड़ी रकम है। अब सेना से इस डील को पाने के लिए विदेशी कंपनियों में होड़ मच जाएगी। खास बात यह है कि इस रकम से 99 फीसदी खरीदारी स्वदेशी स्रोतों यानी मेक इन इंडिया के तहत होगी। रक्षा क्षेत्र में निर्माण करने वाली भारतीय निजी कंपनियां, विदेशी निजी कंपनियों के साथ सौदा करेंगी। सेना उन्हें बताएगी कि उसे किस तरह के हथियार चाहिए फिर ये हथियार उनसे खरीदे जाएंगे।
खरीदे जाएंगे ये हथियार
इतनी बड़ी रकम से भारतीय सेना के लिए टैंक, फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल्स, वायु रक्षा गोलीबारी नियंत्रण रडार और भारतीय तटरक्षक के लिए डोर्नियर-228 विमान खरीदने की मंजूरी दी गई है। इसके अलावा फॉरवर्ड रिपेयर टीम (ट्रैक्ड) के लिए भी मंजूरी मिली है। किसी भी देश की सेना इन्फैंट्री यानी पैदल सेना की भूमिका बहुत बड़ी होती है। जमीनी लड़ाई में इन्फैंट्री के बैटल टैंक्स जंग की तस्वीर बदल देते हैं। भारतीय सेना में भी अलग-अलग मारक क्षमता के करीब साढ़े चार हजार टैंक हैं। इनमें प्रमुख रूप से टी-90, टी-72 और अर्जुन टैंक हैं। नई खरीद में टी-72 टैंकों को चरणबद्ध तरीके से बदला जाएगा।
सेना में करीब 2400 टी-72 टैंक
सवाल यह है कि आखिर टी-72 टैंकों को बदलने की जरूरत क्यों पड़ रही है तो पहली बात यह है कि टी-72 रूसी टैंक हैं, इन्हें 70 के दशक में सेना में शामिल किया गया था, यह बहुत ही शानदार टैंक हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की लड़ाइयों में इस टैंक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ है, दुनिया के करीब 40 देश अभी भी इस टैंक का इस्तेमाल करते हैं। भारतीय सेना की अगर बात करें तो अपने पास 2400 टी-70 टैंक हैं। इनमें खामी नहीं है लेकिन हालात, समय और दुश्मन को देखते हुए इन्हें बदलने की जरूरत पड़ रही है। भारतीय सेना को ऐसे हल्के, आधुनिक हथियारों से लैस, तेज रफ्तार वाले टैंक चाहिए जो लेह-लद्दाख की ऊंचाइयों से लेकर राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में सरपट दौड़ सकें और मार कर सकें। दुनिया में हाल के वर्षों में जहां भी युद्ध हुए हैं या हो रहे हैं, वहां पर टैंकों का इस्तेमाल हुआ है। बात चाहे अजरबैजान-अर्मेनिया युद्ध की हो, रूस-यूक्रेन युद्ध की या चाहे इजरायल-हमास युद्ध की, टैंक हर जगह इस्तेमाल में लाए गए हैं।
ड्रोन से टैंकों को पहुंच रहा ज्यादा नुकसान
इन युद्धों पर सेना की भी नजर रहती है, सेना के विशेषज्ञ युद्धों की रणनीति, इस्तेमाल होने वाले हथियारों और उनके प्रदर्शन की बारीकी से जांच और पड़ताल करते हैं। वह देखते हैं कि युद्ध में कौन से हथियार असरदार और कौन से बेकार साबित हुए हैं। इन युद्धों में टैंकों को भारी नुकसान पहुंचा है, और ये नुकसान ड्रोन से पहुंचा है। अजरबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन और गाजा में ड्रोन से गिराए गए बम टैंक झेल नहीं पाए। क्या है ट्रैंक का अगला और पिछला हिस्से का कवच काफी मजबूत होता है लेकिन इसका ऊपरी हिस्सा सबसे कमजोर होता है। चूंकि ड्रोन टैंकों के लिए काफी घातक साबित हो रहे हैं तो भारतीय सेना ऐसे टैंक खरीदना चाहती है जो ड्रोन के हमलों को नाकाम कर सकें।
युद्ध के मैदान में खराब होते हैं टैंक
युद्ध में टैंक अकेले नहीं चलते, टैंकों की बटालियन और रेजिमेंट चलती है और इन्हें टैंक का कमांडर आदेश देता है। युद्ध के मैदान में अब जरूरी हो गया है कि टैंक के कमांडर को यह पता रहे कि उसके टैंक किस ओर हैं, आगे या पीछे या ऊपर से कोई खतरा तो नहीं है, इसके लिए उन्नत रडार चाहिए। इस खरीद में वायु रक्षा गोलीबारी नियंत्रण रडार भी शामिल है जो कई किलोमीटर पहले खतरे के बारे में बताएगा। इसके अलावा फॉरवर्ड रिपेयर टीम (ट्रैक्ड) के लिए भी मंजूरी मिली है। टैंक एक मशीन है, मशीन है तो जाहिर है कि उसमें खराबी आएगी। युद्ध के मैदान में अगर कोई टैंक खराब हो जाता है तो उसे लादकर पीछे नहीं लाया जाता, उसे वहीं ठीक किया जाता है। यह टीम यही काम करेगी। इसके अलावा भारत की लंबी चौड़ी समुद्री सीमा को देखते हुए भारतीय तटरक्षक के लिए डोर्नियर-228 विमान और गश्ती बोट खरीदे जाएंगे।
चीन से ज्यादा असरदार अमेरिकी हथियार
कहा जाता है कि जंग अगर जीतनी है तो आपके हथियार दुश्मन के हथियार से बेहतर होने चाहिए। युद्ध के समय जज्बा, हौसला, वीरता, पराक्रम तो चाहिए ही आधुनिक और उन्नत हथियार भी चाहिए। हमारे हथियार चीन से बेहतर होने चाहिए। भारतीय सेना में आज भी करीब 65 फीसद हथियार रूसी हैं। इन्हीं हथियारों से सेना ने कई-कई जंगे लड़ी हैं। ये हथियार बेजोड़ और शानदार हैं लेकिन चीन और अमेरिकी हथियारों की तुलना करें तो तकनीकी रूप से अमेरिकी हथियार ज्यादा असरदार हैं। रूस हमारा भरोसेमंद साथी है, हथियारों की हमें जब जब जरूरत पड़ी, तो उसने आपूर्ति की लेकिन रूस खुद इस समय यूक्रेन के साथ युद्ध में है। भारत हथियारों का ऑर्डर उसे करता भी है तो यह जरूरी नहीं कि वह समय पर हथियारों की डिलीवरी कर पाए, यूक्रेन युद्ध में उसके हथियारों का नुकसान पहुंचा है, पहले वह अपनी कमी दूर करेगा। इसलिए जरूरी है कि हालात एवं जरूरतों को देखते हुए भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों से हथियार खरीदे।
पीएम मोदी जाने वाले हैं अमेरिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में अमेरिका जा रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हाल ही में अमेरिका से लौटे हैं। पीएम मोदी की इस अमेरिकी यात्रा के समय हो सकता है कि हथियारों की खरीद पर कोई बड़ी डील हो जाए। किसी भी पेशेवर सेना के लिए जरूरी है कि वह दुश्मन और खतरों को देखते हुए अपनी तैयारी पुख्ता रखे।