बीजिंग: विस्तारवादी सोच वाला चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। यूं तो चीनी विदेश मंत्रालय शांति, भाईचारा और आपसी सद्भाव का राग अलापता रहता है, वहीं पीठ पीछे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कोई न कोई चाल चलती ही रहती है। पिछले साल बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दिए गए रात्रिभोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात हुई थी। तब दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर आम सहमति को लेकर चर्चा भी हुई। लेकिन, उसके बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश के भारतीय वुशु एथलीटों को स्टेपल वीजा जारी कर अपना असली रंग दिखा दिया। विशेषज्ञों के अनुसार,भारतीय वुशु एथलीटों को स्टेपल वीजा जारी करना दर्शाता है कि बीजिंग द्विपक्षीय संबंधों को स्थायी तौर पर किनारे पर रखना चाहता है और अपनी शर्तों पर ‘आम सहमति’ बनाना चाहता है।
स्टेपल वीजा चीन की रणनीति का हिस्सा
इस बीच भारत ने स्टेपल वीजा के विरोध में पूरी वुशु टीम टीम को यूनिवर्सिटी गेम्स से बाहर निकालने का फैसला किया है। भारत सरकार के इस फैसले की कूटनीतिक हलकों में काफी तारीफ भी हो रही है। दरअसल, चीन का स्टेपल वीजा जारी करने का फैसला उसकी वुल्फ वॉरियर कूटनीति का हिस्सा है, जो अगस्त 2010 में शुरू हुई थी। तब उन्होंने भारतीय सेना के तत्कालीन उत्तरी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल को सैन्य वार्ता के लिए वीजा जारी करने से इनकार कर दिया था। उस समय चीन ने तर्क दिया था कि जम्मू-कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है।
हर मुलाकात में ‘आम सहमति’ का राग अलाप रहा चीन
स्टेपल वीजा प्रकरण के कुछ ही दिनों पहले दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए स्तर की बैठक के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाका हुई थी। दोनों नेताओं ने ब्रिक्स बैठक के अलावा अलग से भी द्विपक्षीय मुलाकात की थी। इस मुलाकात को लेकर चीन की ओर से जारी बयान में बहुत कुछ कहा गया, हालांकि फैक्ट यह है कि दोनों पक्षों में किसी भी मुद्दे पर आम राय नहीं बन सकी। इसके पहले बाली में जी-20 मंत्रिस्तरीय बैठक से इतर एस जयशंकर की वांग यी से मुलाकात के दौरान ऐसा ही हुआ था। विदेश मंत्री जयशंकर ने एक साधारण ट्वीट में बैठक का वर्णन किया, जबकि बीजिंग ने कई पन्नों का बयान जारी किया था।
‘आम सहमति’ शब्द चीन की शरारत!
सीधे शब्दों में कहा जाए तो ‘आम सहमति’ डिनर टेबल पर शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी के अनौपचारिक आदान-प्रदान का चीनी विवरण है। इस शब्द के इस्तेमाल को चीन की शरारत माना जा सकता है, जो शायद सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए शी जिनपिंग की भारत यात्रा से संबंधित है। हालांकि, भारत द्विपक्षीय संबंधों को लेकर जारी चीन के इस बयान पर एक मिनट भी बर्बाद नहीं कर रहा है, क्योंकि उसे पता है कि इस मुलाकात के दौरान किसी भी मुद्दे पर टआम सहमतिट का जिक्र नहीं है। ऐसे में आम सहमति को बस एक अनौपचारिक बैठक के दौरान मंदारिन भाषा का कुशल इस्तेमाल माना जा रहा है।
चीन को हर मोर्चे पर कड़ा जवाब दे रहा भारत
हालांकि, भारत ने चीन के स्टेपल वीजा मुद्दे को बहुत गंभीरता से लिया है, क्योंकि स्पष्ट रूप से चीन जो कहता है, वह उसके कार्यों से कोसों दूर होता है। चीन एलएसी, अरुणाचल प्रदेश या शक्सगाम के माध्यम से अधिकृत कश्मीर में सीपीईसी पर अपनी घोषित अतीत से एक मिलीमीटर भी पीछे नहीं हटा है। उधर पाकिस्तान ने कश्मीर का एक हिस्सा चीन को अवैध रूप से सौंप दिया है। लेकिन, भारत-भूटान ट्राईजंक्शन पर 2017 के डोकलाम गतिरोध और मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो पर पीएलए से झड़प के बाद मामले और जटिल हो गए हैं। ऐसे में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार चीन की विस्तारवादी सोच को लेकर किसी भी भ्रम में नहीं है और चीन के खिलाफ हर एक कदम मजबूती से उठा रही है।