देहरादून l एक नई स्टडी के मुताबिक साल 2021-2050 के बीच उत्तराखंड का एवरेज मैक्सिमम टेंपरेचर 1.6-1.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. स्टडी के मुताबिक राज्य के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ समेत उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों का टेंपरेचर एलिवेशन डिपेंडेंट वार्मिंग के चलते सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. जिस वजह से लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.
हाल में जर्मनी बेस्ड पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट रिसर्च (पीआईके) और द एनर्जी एन्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी), नई दिल्ली की ओर से की गई एक स्टडी ‘’लॉक्ड हाउसेज, फैलो लैंड्स: क्लाइमेट चेंज एण्ड माइग्रेशन इन उत्तराखंड, इंडिया’’ में ये बात सामने आई है. इस का कारण क्लाउड कवर और एटमॉस्फेरिक और सरफेस वॉटर वेपर में आ रहे बदलाव हैं. इसके चलते ऊंचे पर्वतीय इलाकों में टेंपरेचर बढ़ रहा है. स्टडी में मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान दिया गया है कि क्लाइमेट चेंज (Climate Change) के प्रभावों जैसे-बढ़ते टेंपरेचर, ग्लेशियरों के पिघलने और बारिश के पैटर्न के बदलने से किस तरह राज्य की आजीविका पर असर पड़ रहा है और लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.
एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी पर असर
स्टडी की मुख्य लेखिका और पीआईके की हिमानी उपाध्याय ने बताया, क्लाइमेट चेंज राज्य में रिस्क मॉडीफायर का काम रहा है. इसका असर राज्य से भारी संख्या में पलायन कर रही आबादी पर पड़ रहा है. लगभग 70 फीसदी आबादी वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भर है. बीते दो दशकों में क्लाइमेट चेंज के चलते एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी में और भी ज्यादा गिरावट आई है. जिस वजह से आबादी पर राज्य से बाहर पलायन करने का दबाव बढ़ा है. उत्तराखंड के रूरल डेवलपमेंट और माइग्रेशन कमीशन के अनुसार, राज्य के ग्रामीण इलाकों में आजीविका के तौर-तरीकों को डाइवर्सिटी देने में नाकामी राज्य से बाहर होने वाले पलायन की सबसे बड़ी वजह है.
क्या है समाधान?
रिपोर्ट में बताया गया है कि पॉलिसी मेकर भविष्य में तीन क्षेत्रों में कदम उठा सकते हैं:
सबसे पहले पलायन के चलते आ रहे डेमोग्राफिक बदलावों के लिए तैयार हुआ जा सकता है.
अर्थव्यवस्था को पुर्नजीवित करने के लिए पर्वतीय इलाकों के आजीविका के वैकल्पिक साधन मुहैया कराये जा सकते हैं.
पलायन को देखते हुए राज्य के क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान और राज्य की कृषि-नीतियों पर फिर से विचार किया जा सकता है.