देहरादून : प्रदेश में सख्त नकल रोधी कानून लागू होने के बावजूद नकल माफिया अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। विशेष रूप से कोचिंग संचालक भर्ती परीक्षाओं में नकल के गोरख धंधे के सूत्रधार साबित हो रहे हैं। वन आरक्षी भर्ती परीक्षा में भी नकल कराने की तैयारी नकल माफिया के दुस्साहस को प्रदर्शित कर रही है।
रुड़की में सामने आए इस प्रकरण पर जिस प्रकार सक्रियता दिखाई गई, उससे अब कोचिंग सेंटर पर सरकार का शिकंजा और कस सकता है। प्रदेश सरकार ने नकल पर रोक लगाने के लिए देश का सबसे कठोर नकलरोधी कानून लागू किया है।
इसके अंतर्गत नकल करने और कराने वालों के विरुद्ध 10 करोड़ रुपये तक जुर्माने से लेकर उम्रकैद तक का प्रविधान है। यहां तक कि आरोपित की संपत्ति कुर्क करने की व्यवस्था भी कानून में की गई है। निश्चित तौर पर ये कानून नकल माफिया पर नकेल कसने के लिए उपयुक्त है। इसके बावजूद भी नकल माफिया के हौसले पस्त होते नजर नहीं आ रहे हैं, जिस तरह वन आरक्षी भर्ती परीक्षा में संगठित तरीके से नकल कराने की योजना बनाई गई, उसे कठोर कानून के बावजूद दुस्साहसिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
सबसे बड़ी बात यह कि इनमें वे नाम सामने आए हैं, जो पहले भी नकल कराने के मामलों में पकड़े जा चुके हैं। रुड़की के एक कोचिंग सेंटर संचालक की इसमें अहम भूमिका पाई गई है, जिसे कुछ व्यक्तियों के साथ मिलकर परीक्षार्थियों को ब्लूटूथ के माध्यम से नकल कराने की योजना बनाते हुए पाया गया।
बताया जा रहा है कि नकल कराने के लिए उसके एक सहयोगी को कक्ष निरीक्षक के तौर पर ड्यूटी में लगाने की योजना भी बनाई गई थी। कुछ कोचिंग संचालकों पर पहले भी नकल कराने के मामलों को लेकर अंगुली उठ चुकी हैं। यहां तक कि उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एस राजू ने भी अपना त्यागपत्र देने के दौरान भर्ती परीक्षाओं में कोचिंग संचालकों की भूमिका पर सवाल उठाए थे।
इस प्रकरण में नकलरोधी कानून बनने के बाद भी नकल के धंधे में लिप्त व्यक्तियों के गठजोड़ को तोड़ने की चुनौती बनी हुई है। माना जा रहा है कि एसटीएफ के राडार पर अब तमाम कोचिंग सेंटर आने जा रहे हैं।