गौरव अवस्थी
लखनऊ। लखनऊ की ‘रूबरू एक्सप्रेस’ एक ऐसी संस्था है जिसे सिर्फ और सिर्फ काम से मतलब है। नाम की परवाह किसी को नहीं। मकसद केवल एक ही, गरीबों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देकर एक्सप्रेस की रफ्तार से आगे बढ़ाना। घर में काम करने वाली महिलाओं के दिन भर धूल-मिट्टी में खेलने वाले बच्चों को पढ़ा-लिखा कर ‘कुछ’ बनाने की कल्पना वार्ष्णेय की कल्पना कदम-दर-कदम, वर्ष-प्रतिवर्ष साकार होती जा रही है।
बैंक मैनेजर मुकेश वार्ष्णेय की धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना वार्ष्णेय ने अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए 5 साल पहले 2018 में यह पहल घर में काम करने वाली महिलाओं के दो-चार बच्चों के साथ अपने अपार्टमेंट के बेसमेंट से शुरू की थी। आज कल्पना की इस पाठशाला में विभिन्न धर्म, जाति और वर्ग के 50 बच्चे नियमित शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह पाठशाला कभी बेसमेंट में चलती है तो कभी कॉलोनी के पार्क में, कभी छत पर और कभी सड़क किनारे। कभी-कभी कल्पना जी के ड्राइंग रूम में भी कक्षा लग जाती है।
कॉविड के कारण इस पाठशाला में थोड़ा व्यवधान तो आया लेकिन पढ़ाई पूरी तरह बंद नहीं हुई।
इस पाठशाला के बच्चों की खासियत यह है कि नागा कोई नहीं करता। उनकी पाठशाला के बच्चे काफी हुनरमंद हो चुके हैं। बच्चों में कॉन्फिडेंस तो गजब का आ चुका है। चाहें, वह तीन साल का हो या 13 साल का। नई उम्र के शुभम, साहिल और सार्थक इस मुहिम को सार्थक बनाने के लिए ‘शिक्षा का दान’ तन मन से कर रहे हैं। पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों में सनातन संस्कृति के बीज भी रोपे जा रहे हैं। आज (7 नवंबर 2023) रूबरू एक्सप्रेस का पांचवा वार्षिकोत्सव अपराह्न 3:30 बजे से आयोजित था।
अभी घड़ी 3 ही बजा रही थी। लखनऊ के जानकीपुरम के सेक्टर एफ की उमा वाटिका में वटवृक्ष के नीचे चार-पांच बच्चों की मदद से कल्पना वार्ष्णेय और उपमा दीक्षित वार्षिकोत्सव के लिए स्थान को सजाने संवारने में जुटी थीं। बीच में चटाइयां बिछीं थीं। चारों ओर कुर्सी करीने से लग चुकी थीं। रू-ब-रू एक्सप्रेस सामाजिक सेवार्थ संस्था वाली स्टैंडी लगाने का काम जारी था। संरक्षक राजीव वार्ष्णेय और संजीव गुप्ता भी पहुंचते ही मदद में लग गए।
शिल्पी और सोनल नाम की दो बच्चियां फूलों और गोटों से सजी थाली में रोचना बना रहीं थीं। समय के पहले ही आकर्षक परिधानों में सजे लड़के-लड़कियां पहुंचने लगे। संस्था के सक्रिय सदस्य भी आ गए और बच्चों की माताएं भी। कई सदस्य बच्चों के लिए उपहार लेकर भी आए। 4 बजे वार्षिकोत्सव शुरू हो गया। हर आने वाले अतिथि का सत्कार रोचना-टीका से तो हो ही रहा था। बच्चे पैर छूकर पाठशाला में दिए गए संस्कारों का परिचय भी दे रहे थे। सरस्वती वंदना पर समूह नृत्य प्रस्तुत करने वाली बच्चियों में परी मां सरस्वती की भूमिका में थीं और उसने प्रेरक कविता भी सुनाई। ऐसी प्रतिभावान परी के साथ फोटो खिंचवाने का मोह त्यागना हमारे लिए मुश्किल था। मधु, प्रियांशी, सौम्या, स्वाती, बिट्टू भी अपनी प्रतिभा के परिचय के साथ समारोह में उपस्थित हुईं।
आज जरूर रूबरू एक्सप्रेस की पाठशाला का पांचवा वार्षिकोत्सव उमा वाटिका के वटवृक्ष के नीचे हो रहा हो लेकिन जरूरतमंद बच्चों के अभिभावकों की बढ़ती रुचि, बच्चों की पढ़ाई के प्रति लगन और संस्था के सदस्यों का जुनून यह साफ संदेश दे रहा है कि एक दिन यह छोटी सी पहल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सामाजिक सेवा के इतिहास में ‘वटवृक्ष’ के रूप में निश्चित ही नजर आएगी।