जयपुर : राजस्थान में आजादी के बाद से अब तक हुए 15 विधनसभा चुनावों में 10 बार सरकार बनाकर कांग्रेस ने अपना दबदबा कायम किया और अब तक उसे केवल चार चुनावों में ही अन्य दलों के मुकाबले कम मत मिले हैं। लेकिन 1980 के चुनाव से मुकाबले में आई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राजस्थान के रण को पूरी तरह बदल डाला। पिछले 9 चुनावों में वह चार बार सरकार बनाने में सफल रही है और तीन बार सबसे अधिक मत हासिल करने में कामयाब रही। भाजपा की मजबूती का ही असर है कि पिछले 4 चुनाव में भले ही कांग्रेस ने दो बार सरकार बनाई लेकिन 1998 के बाद अभी तक मैजिक नंबर (बहुमत) तक नहीं पहुंची है।
कांग्रेस को 6 बार अकेले बहुमत, 4 बार मदद से सरकार
अब तक हुए इन चुनावों में आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने भी जोरदार जीत दर्ज करते हुए राज्य में सरकार बनाई। कांग्रेस ने इन 15 चुनावों में छह बार वर्ष 1952, 1957, 1972, 1980, 1985 और 1998 के चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। 1998 में कांग्रेस ने पहली बार 150 सीटों के साथ धमाकेदार जीत दर्ज की और अशोक गहलोत पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस ने चार बार वर्ष 1962, 1967, 2008 और 2018 में किसी दल या निर्दलीय सदस्यों के सहारे सरकार बनाई।
पहली बार 1962 में पूर्ण बहुमत नहीं
आजादी के बाद हुए वर्ष 1952 में 190 सीटों के लिए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 102 सीटें जीतकर पहली बार सरकार बनाई। इसके बाद हुए वर्ष 1957 में 176 सीटों के लिए हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 119 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। इसके बाद वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस 176 विधानसभा सीटों वाली विधानसभा में 88 सीटें ही जीत पाई जो बहुमत के आंकड़े से एक कम थी। इसके बाद वर्ष 1967 में हुए चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद विधानसभा की 184 में से 89 सीटें हासिल की। हालांकि स्पष्ट बहुमत से कुछ सीटें दूर रही लेकिन सरकार बनाने में कामयाब रही।
2008 और 2013 में दूसरों की मदद से सरकार
इसके बाद वह वर्ष 2008 के चुनाव में वह 100 सीटों के आंकड़े को नहीं छू पाई और वह 96 सीटें ही जीत सकी, लेकिन अशोक गहलोत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के छह विधायकों और निर्दलीयों की मदद से दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और राज्य में कांग्रेस की नौवीं सरकार बनाने में सफल रहे। इसके बाद पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से केवल एक सीट दूर रही, उसे 100 सीटें मिली लेकिन उसके सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल की एक सीट आने से उसे सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आई और गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। बाद में बसपा के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। जिन सदस्यों को कांग्रेस में शामिल किया उनमें अधिकतर को इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने टिकट देकर फिर से चुनाव भी लड़ाया।
आपातकाल के बाद पहली बार कांग्रेस को मिली हार
इससे पहले कांग्रेस ने वर्ष 1972 में 145 सीटें जीती। इसी तरह वर्ष 1980 में 133 और इसके अगले विधानसभा चुनाव में उसने 113 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई जबकि वह आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में केवल 41 सीट ही जीत पाई और उसके बाद वर्ष 1990 में भाजपा और जनता दल के बीच हुए गठबंधन के चलते कांग्रेस केवल 50 सीट ही जीत पाई, जबकि भाजपा को 85 और जनता दल को 55 सीट मिली इनकी गठबंधन की सरकार बनी। इसी तरह कांग्रेस वर्ष 1993 में भी केवल 76 सीटे ही हासिल कर पाई। इसके बाद वर्ष 2003 के चुनाव में भी वह भाजपा के आगे कुछ नहीं कर पाई वह केवल 56 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। कांग्रेस के लिए इससे भी बुरा दौर वर्ष 2013 में देखेने को मिला और वह इस चुनाव में केवल 21 सीटों पर सिमट कर रह गई।
1990 में पहली बार भाजपा की सरकार
वर्ष 1980 के चुनाव से मुकाबले में आई भाजपा ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में 32 सीटें हासिल कर ली थी। इसके बाद उसने इसके अगले चुनाव वर्ष 1985 में उसने 38 सीटें जीतकर पिछली जीत में छह सीटों का इजाफा किया। इसके बाद भाजपा ने वर्ष 1990 में उसने 85 सीटें जीतकर अपने सहयोगी दल जनता दल के साथ राज्य में पहली बार सरकार बनाई और भैंरों सिंह शेखावत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि इससे पहले आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में शेखावत 150 सीटों सहित जोरदार बहुमत के साथ प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। उस समय जनता पार्टी की सरकार बनी।
1993 से 2018 तक भाजपा ने दी टक्कर
भाजपा वर्ष 1993 में 96 सीटें ही जीत सकी और स्पष्ट बहुमत नहीं होने के बावजूद निर्दलियों के सहयोग से सरकार बनाने में कामयाब रही और शेखावत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वर्ष 1998 में भाजपा केवल 33 सीटों पर सिमट गई लेकिन इसके अगले चुनाव वर्ष 2003 में उसने जोरदार वापसी की और 120 सीटें जीतकर अपना दबदबा कायम किया और उस दौरान वसुंधरा राजे प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद वर्ष 2008 में भाजपा कांग्रेस से फिर मात खा गई और वह केवल 78 सीटें ही जीत पाई लेकिन राजे के नेतृत्व में वह वर्ष 2013 में जोरदार वापसी करते हुए उसने रिकॉर्ड जीत दर्ज करते हुए 163 सीटें हासिल की। राजे दूसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। हालांकि इसके अगले ही चुनाव में भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और वह केवल 73 सीटें ही जीत पाई।
भाजपा की एंट्री के बाद कैसे बदला खेल
जब से भाजपा कांग्रेस के मुकाबले में आई हैं तब से अब तक हुए नौ चुनावों में कांग्रेस ने पांच चुनावों में सरकार बनाने में कामयाब रही जबकि चार में भाजपा की सरकार बनी हैं। अब 16वीं विधानसभा के लिए गत 25 नवंबर को मतदान हो चुका है और मतगणना तीन दिसंबर को होगी और उस दिन ही पता चल पाएगा कि पिछले कुछ चुनावों से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार का रिवाज कायम रहता है या यह रिवाज इस बार बदलता है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के नेता अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
कब किसे कितना वोट शेयर
प्रदेश में अब तक हुए पिछले 15 चुनावों में केवल वर्ष 1977, 1993, 2003 और 2013 के चार विधानसभा चुनाव ही ऐसे है जिसमें कांग्रेस अन्य दलों के मुकाबले कम मत हासिल कर पाई जबकि शेष 11 चुनावों में वह मत प्राप्त करने में अव्वल रही है। वर्ष 1977 में जनता पार्टी ने सर्वाधिक 50.41 प्रतिशत मत हासिल किए जबकि वर्ष 1993 में 38.60 प्रतिशत, वर्ष 2003 में 39.20 एवं वर्ष 2013 के चुनाव में 46.95 प्रतिशत सर्वाधिक मत भाजपा ने हासिल किए। हालांकि इन 15 विधानसभा चुनावों में अब तक सर्वाधिक मत 51.14 प्रतिशत मत कांग्रेस ने ही वर्ष 1972 के चुनाव में हासिल किए थे। इसके अलावा कांग्रेस ने वर्ष 1985 के चुनाव में भी जनता का अच्छा समर्थन प्राप्त किया और उसने उस दौरान 46.79 प्रतिशत मत प्राप्त किए। इसी तरह कांग्रेस ने वर्ष 1957 में 45.13, वर्ष 1998 में 44.95, वर्ष 1980 में 42.96, वर्ष 1967 के चुनाव में 41.41 प्रतिशत मत हासिल किए। इसके अलावा उसने वर्ष 1952 के चुनाव में 39.71, वर्ष 1962 में 39.98, वर्ष 1977 के चुनाव में 31.14, वर्ष 1990 में 33.64, वर्ष 1993 में 38.27, वर्ष 2003 में 35.65, वर्ष 2008 में 36.82, वर्ष 2013 में 33.71 और वर्ष 2018 में 39.82 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल किया।
इसी तरह भाजपा ने अपने शुरुआती विधानसभा चुनाव में 18.60 प्रतिशत मत प्राप्त किए। इसके बाद उसने वर्ष 1985 में 21.16, वर्ष 1990 में 25.25, वर्ष 998 में 33.23, वर्ष 2008 में 34.27, वर्ष 2018 में 39.28 मतदाताओं का समर्थन मिला। वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले जनता दल ने 21.63 प्रतिशत मत हासिल किए।
जब जीतकर आए 39 निर्दलीय विधायक
अब तक हुए इन 15 विधानसभा चुनावों में निर्दलीयों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं और वर्ष 1957 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को 33.93 प्रतिशत मत हासिल हुए थे। उस समय 32 निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसी तरह इससे पहले वर्ष 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में 28.05 प्रतिशत मत लेकर अब तक के सर्वाधिक 39 निर्दलीय विधानसभा पहुंचे। इसी तरह 1962 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने 20.83 प्रतिशत मत हासिल किए और 22 ने चुनाव जीता। वर्ष 1972 में निर्दलियों ने 17.36, वर्ष 1990 में 17.14, वर्ष 1967 में 16.55, वर्ष 1977 में 15.92, वर्ष 1980 में 13.10 और वर्ष 1985 में 11.57 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया। शेष कुछ विधानसभा चुनावों में निर्दलीय दस प्रतिशत से कम ही मत हासिल कर पाए।