नई दिल्ली। मल्पे समुद्र तट से उठतीं लहरें और लहराती पताकाएं मोगावीरों (मछुआरों) के राम व हनुमान भक्त होने की गवाही देती हैं। इनके बेड़ों में शामिल अयोध्या, हनुमान, त्रिशूल जैसे नामों वाली बड़ी-बड़ी नावें भी यही कहानी कहती हैं। बंगलूरू से उडुपी तक चुनावी शोरशराबा तो नजर नहीं आया, लेकिन समुद्र तट पर आस्था के बहाने ही सही, ये सारे सन्नाटे टूटते हैं। मछुआरे ही नहीं, शेट्टी और पुजारी समेत अन्य समुदाय भी राम के प्रति अटूट आस्था से खुद को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की सियासत के करीब महसूस करते हैं।
भाजपा यहीं से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव जैसे प्रदर्शन का संदेश पूरे कर्नाटक को देने की कोशिश में है। वजह भी है। पिछले साल विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद भी भाजपा ने इस क्षेत्र में एकतरफा सफलता हासिल की थी। अब लोकसभा चुनाव में जदएस (जनता दल सेक्युलर) के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी भाजपा दक्षिण क्षेत्र के सहारे उत्तरी कर्नाटक तक चुनावी लहर अपने पक्ष में देख रही है। इसलिए भी कि विस चुनाव में भाजपा ने 36 और जदएस ने 13.29 फीसदी मत हासिल किए थे, जो कुल मतदान का 49.29 फीसदी बैठता है। गठबंधन का यही गणित 42.88 फीसदी मत के साथ राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से बेचैनी भरा है। हालांकि, गठबंधन की राह इतनी आसान भी नहीं है। बंटवारे में महज तीन सीटों हासन, मंड्या और कोलार में चुनाव लड़ रही जदएस के लिए बागी चुनौती बने हुए हैं। वहीं, 10 सांसदों के टिकट काटने से भाजपा भी भितरघातियों से जूझ रही है।
कांग्रेस दक्षिण कर्नाटक से उठतीं भगवा लहरों को समंदर किनारे ही थाम लेना चाहती है। स्पष्ट बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज कांग्रेस 2019 के आम चुनाव में अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन का घाव नहीं भर पाई है। महज एक सांसद वाली कांग्रेस के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है। तब जदएस के साथ लड़ने वाली कांग्रेस इस बार अकेले मैदान में है। हालांकि कांग्रेसी रणनीतिकार इसे अपने लिए फायदे का सौदा मान रहे हैं। उनका तर्क है कि दोनों दलों का एक मंच पर आना उनके कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया था। नतीजन करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। इस बार कांग्रेस ने भाजपा-जदएस के गठबंधन की वजह से हुई बगावतों को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में अबूझ रहा समुद्र तटीय क्षेत्र उसके लिए अब भी अबूझ ही नजर आ रहा है। इस क्षेत्र में 26 अप्रैल को मतदान होना है।
लोकसभा चुनाव 2019
- भाजपा 25
- जदएस 1
- कांग्रेस 1
विधानसभा चुनाव 2023
- कांग्रेस 135
- भाजपा 66
- जदएस 19
कसौटी पर वोक्कालिगा-लिंगायतों का गठजोड़
प्रदेश की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय एक मंच पर आ जाएं, तो बड़ा उलटफेर करने में सक्षम हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इसका खामियाजा भी भुगता। लिंगायत समुदाय के अपने वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा को नाराज कर पार्टी को हार गले लगानी पड़ी। इसके बाद भाजपा को उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष बनाना पड़ा। प्रदेश में सर्वाधिक आबादी लिंगायतों की है। दूसरे स्थान पर वोक्कालिगा समुदाय है। जदएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दलित समुदाय से हैं। कांग्रेस ने टिकट वितरण के जरिये वोक्कालिगा और लिंगायत में संतुलन साधने की कोशिश की है।
समुदायों से ऊपर हिंदुत्व का मुद्दा
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले दक्षिणी कर्नाटक के समुद्र तटीय क्षेत्रों में वोक्कालिगा, लिंगायत और कुरुबा समुदायों से ऊपर हिंदुत्व को मान्यता दी जाती है। उडुपी के उच्चिला कस्बे में मछुआरा समाज के माधव मेंडला कहते हैं, जो हमारे धर्म और संस्कृति की रक्षा की बात करेगा, हम उसी के साथ हैं। कहते हैं कि क्षेत्र में दूसरे समुदायों के धर्मांतरण अभियान और आतंक के खिलाफ वे लोग कभी खड़े नहीं हुए, जिन्हें हम दशकों केंद्र में भेजते रहे। क्षेत्र में संघ और विहिप ने धर्म जागरण अभियान चलाकर हिंदुओं को एकजुट किया। आज यहां घर-घर भगवान राम और हनुमान जी की पूजा होती है।
कांग्रेस से मुकाबले के बीच येदियुरप्पा के खिलाफ ईश्वरप्पा
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के गढ़ शिवमोगा में उनकी ही पार्टी के नेता और कभी करीबी रहे केएस ईश्वरप्पा ने बगावत कर मुश्किल खड़ी कर दी है। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री रह चुके ईश्वरप्पा निर्दलीय मैदान में हैं। वह येदियुरप्पा के बड़े बेटे और भाजपा उम्मीदवार बीवाई राघवेंद्र को चुनौती देंगे। ईश्वरप्पा का आरोप है कि प्रदेश भाजपा पर येदियुरप्पा परिवार का कब्जा है। येदियुरप्पा के छोटे बेटे बीवाई विजयेंद्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और शिकारीपुरी से विधायक भी हैं। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा की बेटी गीता शिव राजकुमार को मैदान में उतारा है। उनके पति शिव राजकुमार कन्नड़ फिल्मों के अभिनेता हैं। ससुर मशहूर कन्नड़ अभिनेता राजकुमार थे, जिनका चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण किया था। इडिगा समुदाय की गीता के भाई मधु बंगारप्पा कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं, जबकि दूसरे भाई कुमार बंगारप्पा भाजपा में हैं।
अहम की लड़ाई…शाही परिवार बनाम वोक्कालिगा
मैसूरू शाही परिवार के वंशज श्रीकांतदत्त नरसिम्हाराजा वाडियार के दत्तक पुत्र यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार पहली बार चुनावी मैदान में हैं। उनके पिता श्रीकांतदत्त कांग्रेस के टिकट पर चार बार सांसद चुने गए थे। वर्ष 1991 में उन्होंने एक बार भाजपा से भाग्य आजमाया भी तो हार का सामना करना पड़ा। यदुवीर के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। भाजपा ने वोक्कालिगा समुदाय के प्रताप सिम्हा का टिकट काटकर यदुवीर को मैदान में उतारा है। प्रताप सिम्हा वही चर्चित सांसद हैं, जिनके विजिटर पास पर दो संदिग्ध संसद में घुस गए थे। इधर, मौका देख कांग्रेस ने 47 साल बाद पहली बार इस सीट से वोक्कालिगा समुदाय के एम लक्ष्मण को प्रत्याशी बना दिया है। इस तरह कांग्रेस ने इसे वोक्कालिगा के अहम की लड़ाई बनाने की कोशिश की है। मैसूर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का गृह जनपद भी है।
इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर
भाजपा
धारवाड़ से केंद्रीय कोयला व संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद वी जोशी, बंगलूरू उत्तर से केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री शोभा करंदलाजे, हावेरी से पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, बेलगाम से पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार।
कांग्रेस
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के दामाद राधाकृष्ण डोड्डामणि गुलबर्गा से, उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश बंगलूरू ग्रामीण से।
जेडीएस
मांड्या से पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी। जेडीएस अध्यक्ष और पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के पुत्र हैं। बंगलूरू ग्रामीण से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे डॉ. सीएन मंजूनाथ देवगौड़ा परिवार के दामाद हैं।
हासन सीट पर दो परिवारों की सियासी अदावत और तीसरी पीढ़ी का कॅरिअर सेट करने की लड़ाई चर्चा में है। एक तरफ पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पौत्र प्रज्ज्वल रेवन्ना हैं, तो दूसरी तरफ जी पुट्टस्वामी गौड़ा के पौत्र एम श्रेयस पटेल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। कभी एक-दूसरे के करीबी रहे देवगौड़ा और पुट्टस्वामी के बीच अस्सी के दशक में इस कदर तलवारें खिंचीं कि तीसरी पीढ़ी तक उसका असर है। लिंगायत समुदाय से आने वाले दोनों नेताओं में हासन पर देवगौड़ा का प्रभाव अधिक रहा। श्रेयस विधानसभा चुनाव में प्रज्ज्वल के पिता एचडी रेवन्ना के खिलाफ होलेनरासीपुर सीट से लड़े थे। रेवन्ना लगातार पांचवीं बार जीते, मगर सिर्फ 3152 मतों से। पुट्टस्वामी का 2006 में निधन हो गया, मगर सियासी प्रतिद्वंद्विता आज भी जारी है।