भोपाल : विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अब आगामी लोकसभा चुनाव के ज़रिए वापसी की तैयारियों में जुट गई है. इसके लिए कांग्रेस अपनी कट्टर विरोधी पार्टी बीजेपी के उस फॉर्मूले को भी अपना सकती है, जिसमें वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़ाने का दांव बीजेपी ने चला था. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पार्टी के प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह ने हाल ही में जिला कांग्रेस अध्यक्षों की बैठक ली थी.
इस बैठक में कांग्रेस के सीनियर नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ाने और विधानसभा चुनाव में हार चुके कुछ नेताओं को लोकसभा का टिकट देने पर चर्चा हुई है. इसके मुताबिक कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया जैसे सीनियर लीडर्स के अलावा तरुण भनोट, कमलेश्वर पटेल, हीना कांवरे जैसे विधानसभा चुनाव हार चुके नेताओं को भी लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा हुई है.
कांग्रेस का मानना है कि सीनियर लीडर्स जिस सीट से लड़ेंगे, वहां कार्यकर्ता एकजुट होगा और बीजेपी को कड़ी टक्कर दी जा सकेगी. अगर ऐसा होता है तो कमलनाथ को उनके गढ़ छिंदवाड़ा, दिग्विजय सिंह को भोपाल या राजगढ़, कांतिलाल भूरिया को रतलाम, तरुण भनोट को जबलपुर, हीना कांवरे को बालाघाट से लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दिग्गज नेताओं को टिकट देते हुए 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया था, जिनमें से तीन तो केंद्रीय मंत्री थे. सात में से पांच सांसद विधानसभा चुनाव जीत भी गए.
शिवराज की परंपरा पर मोहन का ब्रेक?
इस हफ्ते एमपी की सियासत में सबसे ज्यादा चर्चा मध्यप्रदेश गान को लेकर हुई. दरअसल, मध्यप्रदेश गान प्रदेश के मुखिया मोहन यादव की वजह से चर्चा में आ गया. भोपाल में एमपी स्टेट सिविल सर्विसेज में चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र प्रदान करने के कार्यक्रम में पहुंचे सीएम मोहन यादव मंच पर कुर्सी पर बैठे रहे, उन्होंने मध्यप्रदेश गान में खड़े होने से इनकार कर दिया और सामने बैठे लोगों को भी इशारों से बैठने को कहा. इस दौरान मध्यप्रदेश गान शुरू होकर बंद हुआ और मोहन यादव के इशारे के बाद दोबारा शुरू हुआ, लेकिन इस बार सभी लोग खड़े होने की बजाय बैठे रहे.
2 साल पहले मध्यप्रदेश गान में खड़े होने की परंपरा तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी, लेकिन वर्तमान सीएम ने इस परंपरा पर रोक लगा दी. सीएम मोहन यादव ने इसके बाद कहा कि राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के समय ही हमें खड़ा होना चाहिए. वह हमारे सबके लिए आदर के गीत है. लेकिन एक परंपरा बन गई है, जैसे हमारा मध्यप्रदेश गान है. फिर कोई विश्वविद्यालय गान बनाएगा, कोई कॉलेज का गान बनाएगा, कोई संस्थान अपना गान बनाएगा. फिर वह अपना नियम बनाए कि राष्ट्रगान की तरह खड़ा होना है. तो ये क्या बात हुई.
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत की व्यवस्था के अनुसार बाकियों को बराबर नहीं कर सकते. हो सकता है कि आपको अटपटा लगे कि यह पुरानी परंपरा तोड़ रहे हैं, लेकिन पुरानी चीजों में बदलाव की जरूरत है, तो उसमें बदलाव भी करते हैं. हमारा जो लचीलापन है. यह हमें अच्छे से और अच्छे की ओर ले जाता है. कांग्रेस अब इस घटनाक्रम पर जमकर चटखारे ले रही है और इसे शिवराज बनाम मोहन की लड़ाई बता रही है.
क्या एमपी से किनारे लगा दिए गए शिवराज?
एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान इस सप्ताह तमिलनाडु के दौरे पर रहे. जनवरी 2024 में यह शिवराज सिंह चौहान का तीसरा दक्षिण भारत दौरा था. इसके बाद से ही चर्चा गरम है कि क्या शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश से किनारे लगा दिया गया है? इसकी चर्चा फिर से इसलिए भी शुरू हुई है, क्योंकि लोकसभा चुनाव को लेकर 7 क्लस्टर मध्यप्रदेश के लिए बनाए गए, उसमें भी शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं था. वहीं शनिवार को लोकसभा चुनाव के लिए जो प्रभारी बनाए गए, उस सूची में भी शिवराज का नाम नहीं है. सवाल ये है कि क्या साढ़े सोलह साल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी क्या अब इस लायक भी नहीं समझ रही कि उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सके? हालांकि शिवराज हर बार यही बोल रहे हैं कि संगठन ने उन्हें दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी है.
लोकसभा के लिए संगठन की कसावट में जुटी बीजेपी
विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ एमपी में फिर सरकार बनाने वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए भी संगठन की कसावट में जुट गई है. 13 जनवरी के बाद एक बार फिर बीजेपी ने अपने जिलाध्यक्षों को बदला है. शुक्रवार देर शाम बीजेपी ने चार जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की है. इसमें बालाघाट, बुरहानपुर, रतलाम और छतरपुर जिले शामिल हैं. जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा जा रहा है. वर्तमान में बीजेपी के पास एमपी की 29 लोकसभा सीटों में से 28 सीटें हैं और बीजेपी चाहती है कि इस लोकसभा चुनाव में वो सभी 29 सीटों पर जीत हासिल करे.