बीबीसी की भारत में प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन‘ इसी महीने अमेरिका में दिखाई जाएगी. दो अमेरिकी मानवाधिकार संगठनों ने कई नेताओं, पत्रकारों और विश्लेषकों को इस निजी स्क्रीनिंग के लिए आमंत्रित किया है.
इसी महीने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर जाने वाले हैं. 22 जून को भारतीय प्रधानमंत्री व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात करेंगे. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन ज्याँ-पिएरे के मुताबिक इस मुलाकात से “भारत और अमेरिका के पारिवारिक और दोस्ताना रिश्तों को और मजबूती मिलेगी.”
मोदी की यात्रा से पहले
अमेरिका में ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 20 जून को इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग आयोजित की है. इस बारे में ऐलान करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि इस आयोजन का मकसद लोगों को याद दिलाना है कि भारत में यह फिल्म प्रतिबंधित है.
मोदी की इस यात्रा से पहले ही अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन सक्रिय हो गये हैं. वे लगातार भारत सरकार पर मानवाधिकारों की अनदेखी और अल्पसंख्यक समुदायों के साथ दुर्व्यवहार जैसे आरोप लगाते रहे हैं. उनका मानना है कि नरेंद्र मोदी की बीजेपी के सरकार में आने के बाद भारत में कट्टरपंथ और मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ा है व मीडिया की आजादी कम हुई है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि बीजेपी सरकार ने मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाया है और अपनी ध्रुवीकरण की नीतियों से कई तरह के जुल्म ढाए हैं. हालांकि भारत सरकार इन आरोपों को सिरे से नकारती रही है.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री
बीबीसी ने दो हिस्सों में यह डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका नाम है – इंडिया: द मोदी क्वेश्चन. डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारत ने ना सिर्फ ऐतराज जताया बल्कि उसके प्रसारण पर प्रतिबंध भी लगा दिया. उसे ट्विटर और यूट्यूब पर भी बैन किया जा चुका है. यह डॉक्यूमेंट्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य में 2002 में हुए दंगे को लेकर है. गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों में करीब दो हजार लोग मारे गए थे और डॉक्यूमेंट्री मोदी की भूमिका पर सवाल उठाती है.
भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री की आलोचना करते हुए इसे’पक्षपातपूर्ण प्रोपेगेंडा’ करार दिया था. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसके बारे में कहा था, “डॉक्यूमेंट्री उस एजेंसी पर प्रतिबिंब है जिसने इसे बनाया है. हमें लगता है कि यह बदनाम करने के लिए डिजाइन किया गया प्रचार का हिस्सा है. पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और निरंतर औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है. इसे भारत में प्रदर्शित नहीं किया गया है.”
बीबीसी पर कार्रवाई
इसके बाद बीबीसी के भारत स्थित दफ्तरों पर छापेमारी की कार्रवाई हुई और मुकदमे भी दर्ज हुए. इस कार्रवाई को लेकर अमेरिका ने कहा था कि वह बीबीसी कार्यालयों पर भारतीय आयकर विभाग द्वारा किए जा रहे सर्वे ऑपरेशन से अवगत है, लेकिन वह कोई निर्णय देने की स्थिति में नहीं है. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने वॉशिंगटन में संवाददाताओं से कहा, “हम भारतीय टैक्स अधिकारियों द्वारा दिल्ली में बीबीसी कार्यालयों की तलाशी के बारे में जानते हैं. इस तलाशी के बारे में विस्तार से जानने के लिए आपको भारतीय अधिकारियों से पूछना चाहिए.”
प्राइस ने कहा, “हम दुनियाभर में स्वतंत्र प्रेस के महत्व का समर्थन करते हैं. हम मानवाधिकारों के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के महत्व को विशेष ध्यान देना जारी रखते हैं, जो दुनिया भर में लोकतंत्र को मजबूत करने में योगदान देता है. इसने इस देश में इस लोकतंत्र को मजबूत किया है. इसने भारत के लोकतंत्र को मजबूत किया है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि ये सार्वभौमिक अधिकार दुनिया भर में लोकतंत्र की नींव हैं.
हालांकि दुनिया के अन्य हिस्सों में इस डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन हो रहा है. हाल ही में जब नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया आए थे, तब ऑस्ट्रेलिया के संसद के परिसर में भी इस डॉक्येमेंट्री की एक निजी स्क्रीनिंग आयोजित हुई थी, जिसमें कई नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों ने हिस्सा लिया था.