—करोना काल मे हँसी—
इस काल की हँसी
नकाब मे छुप गयी
इँसान नही ,अब ऐलियन से
लगते है।
फिल्मो मे देखा था।
वैसे ही हम सब लगते है।
नकाब के पीछे हँसी…
हँसी के पीछे, हँसी दब गयी।
खामोश आँखो मे
सपने कुछ दब गये।
बचने,जिन्दा रहने की
छटपटाहट मे….
अपने आपको नकाब की
आड मे छुपाये है।
हर हँसी,हर गम को
शक के घेरे मे छुपाये है।
सँबँध…सँबंधी नही रह गये।
औपचारिकताये रह गयी।
जिन्दा हो क्या तुम??
ये अहसास ही दबकर रह गयी।
इस काल की हँसी।
नकाब मे छुप गयी।
-किरन सिह बैस-
बनारस