नई दिल्ली: प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम घटनाक्रम हुई है. 1991 के इस कानून की संवैधानिकता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के मद्देनजर सीपीएम सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में हस्तक्षेप की अर्जी दाखिल की है.सीपीएम ने अपनी अर्जी मेंप्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का बचाव किया है.
सीपीएम ने कहा है कि चूंकि यह संवैधानिक कानून है, ये बरकरार रहना चाहिए. सीपीएम ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के तहत गारंटी में मिले मौलिक अधिकारों को बरकरार रखने वाला माना है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को सभी नागरिकों की समानता, गैर-भेदभाव और धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाला कहा है.
12 दिसंबर को होगी सुनवाई
एक ऐसे समय में जब मस्जिद और दरगाहों के सर्वेक्षण की मांग जोर पकड़ रही है, सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ का गठन किया है. ये बेंच इसी हफ्ते 12 दिसंबर से इस मामले की सुनवाई करेगी.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है
इस विशेष पीठ में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं. प्लेसेज ऑफ वर्शिप कानून 15 अगस्त 1947 को कट-ऑफ डेट मानते हुए किसी भी पूजा स्थल के स्वरूर के साथ छेड़छाड़ पर रोक लगाता है. हालांकि, ये कानून राम मंदिर पर लागू नहीं होता था क्योंकि तब ये मामला पहले ही से अदालतों में था.
नरसिम्हा रॉव की सरकार की भूमिका
इस काून को साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार अमल में लेकर आई थी. ये राम मंदिर आंदोलन के ऊरूज का समय था. ये कानून वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद-कृष्ण जन्मभूमि विवाद को ध्यान में रखकर भी लाया गया था. अभी हाल में अजमेर दरगाह के सर्वे की मांग के बाद से मामला नए सिरे से सुर्खियों में है.