‘गाढ़े इश्क़ में…’
गाढ़े इश्क़ में
चलो दूर सफ़र पर
तन्हा सा
इक सफ़र ऐसा हो जाये
नींदभर तेरी
और ख़्वाब बस मेरा
शब भर बटबारा ज़रा हो जाये …
फ़लक फ़लक तुम
ज़मी ज़मी मैं
वास्ते एक दूसरे के
प्यास प्यास बन बादल बूंदे बन
चातक चातक हो जाएं
आज़मानी हैं अभी
कितनी ही तहरीरें
बनानी हैं हमें अभी
इंद्रधनुषी और भी तस्वीरें
तुम-हम चलो, फ़िर इक बार
सिफ़र सिफ़र हो जाएं…
चलो उतरे और भी गहरे में
तैरानी हैं अभी
कितनी ही रँगीन कुमुदनि कमलनी
यहाँ जलकुम्भी भरे तालाबों में