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प्रज्ञानंद के हार के बावजूद भी शतरंज के स्वर्णिम दौर में है भारत!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
25/08/23
in खेल संसार, मुख्य खबर
प्रज्ञानंद के हार के बावजूद भी शतरंज के स्वर्णिम दौर में है भारत!
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भारतीय शतरंज खिलाड़ी रामेशबाबू प्रज्ञानंद ने वर्ल्ड नंबर 2 फैबियानो कारुआना और वर्ल्ड नंबर 3 हिकारू नाकामुरा को हराकर विश्व कप फाइनल में जगह बनाई, लेकिन वो वर्ल्ड नंबर 1 मैग्नस कार्लसेन से हार गए। हालांकि, प्रज्ञ और उनके युवा भारतीय साथियों ने शानदार प्रदर्शन किया। कुछ अन्य देशों के युवा खिलाड़ियों ने भी अच्छा खेल दिखाया। यह स्पष्ट है कि शतरंज में एक पीढ़ीगत बदलाव होने वाला है और पूरी संभावना है कि यह बदलाव भारत के पक्ष में होगा।शतरंज विश्व कप कैलेंडर में सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में से एक है। यह विंबलडन शैली के नॉकाउट फॉर्मेट में खेला जाता है, जिसमें समय-सीमा धीरे-धीरे कम हो जाती है और यदि मैच टाई होता है तो सडेन डेथ का नियम (Sudden Death Rule) लागू होता है ताकि हर मैच का एक विजेता मिल सके।

ओपन सेक्शन में लगभग 1.60 लाख यूरो का पुरस्कार है, यहां तक कि पहले दौर के हारने वाले को भी कुछ पुरस्कार राशि दी जाती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व कप तीन सीटें प्रदान करता है जो कैंडिडेट्स साइकल (Candidates cycle) में आगे बढ़ने के लिए हैं, और कैंडिडेट्स साइकल से ही वर्ल्ड चैंपियन को चुनौती देने वाले का चयन किया जाता है। यह एक कठिन प्रक्रिया है जिसमें आठ खिलाड़ी वर्ल्ड चैंपियन को चुनौती देने के लिए आपस में खेलते हैं। खिताबी मुकाबलों (Title cycle) का पुरस्कार कई मिलियन यूरो का होता है, 2023 में हुए मैच में 2 मिलियन यूरो का पुरस्कार था। इस रकम को दो खिलाड़ियों के बीच 55 और 45 के अनुपात में बांटा गया था। नॉकाउट साइकल की पुरस्कार राशि कम-से-कम 5 लाख यूरो है।

भारत के चार खिलाड़ी विश्व कप के क्वॉर्टर फाइनल में पहुंचे, जिससे 50% स्लॉट उनके हो गए। केवल 17 वर्षीय गुकेश को कार्लसेन से हार मिली, जबकि प्रज्ञ ने अर्जुन एरिगैसी के खिलाफ बेहतरीन क्वॉर्टर फाइनल में जीत हासिल की, जो सडेन डेथ रूल से हार गया। विश्व कप के दौरान अपना 18वां जन्मदिन मनाने वाले प्रज्ञ ने अपने लिए कैंडिडेट की एक सीट बुक कर ली है। शतरंज के इतिहास में केवल दो खिलाड़ी हैं जिन्होंने इससे कम उम्र में ऐसा किया है और दोनों विश्व चैंपियन हैं। एक हैं मैग्नस कार्लसेन, दूसरा बॉबी फिश। हालांकि, वर्ल्ड नंबर 2 गुकेश के पास भी उम्मीदवारों की शेष सीटों में से एक बुक करने का शानदार मौका है और यह अभूतपूर्व होगा कि दो भारतीय इस साइकल में जगह बना लें।

प्रज्ञ ने कार्लसेन को कड़ी टक्कर देते हुए उन्हें टाईब्रेक में भेज दिया। उन्हें 19 वर्षीय जर्मन विंसेंट कीमेर के खिलाफ भी कड़ी मेहनत करनी पड़ी, जिन्होंने वास्तव में अपने मैच में बढ़त ले ली थी। हालांकि बाद में कार्लसेन ने स्कोर बराबर कर लिया और ‘नॉर्मल सर्विस में लौट आए।’ वर्ल्ड टॉप 10 में एक और युवा खिलाड़ी अलीरेजा फिरोज है। वह ईरान का है, लेकिन फ्रांस में रहता है। प्रज्ञ, गुकेश, कीमेर, एरिगैसी, निहाल सरीन, अलीरेजा, नोदिरबेक अबुस्सातोरोव (उज्बेकिस्तान), एवॉन्डर लिआंग (अमेरिका), ये सभी 20 साल से कम उम्र के युवा खिलाड़ी हैं और शीर्ष पायदान पर पहुंचने के कगार पर हैं। पीढ़ी का परिवर्तन तो स्वाभाविक है ही। शतरंज एक शारीरिक और मानसिक रूप से कठिन खेल है और हर पीढ़ी को अंततः अगली पीढ़ी को रास्ता देना ही होता है।

यदि आप शतरंज के आंकड़ों का गहन अध्ययन करें, तो यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि महान शतरंज खिलाड़ी 35 से 40 वर्ष की उम्र में अपनी ऊंचाई पर पहुंचते हैं, क्रिकेट के स्पिन गेंदबाजों की तरह जिनके पास एक तरफ 35 साल की उम्र में काफी देर तक ध्यान केंद्रित करने के लिए जरूरी शारीरिक ऊर्जा बची होती है तो दूसरी तरफ उन्हें लंबा अनुभव भी हो जाता है। शीर्ष पायदान पर कब्जा जमाए कार्लसेन 33 वर्ष के हैं, नाकामुरा 37 वर्ष के हैं, कारुआना 31 वर्ष के हैं, वर्तमान विश्व चैंपियन डिंग लिरेन 31 वर्ष के हैं, और अंतिम चैलेंजर इयान नेपोमनियाचची 33 वर्ष के हैं। इसलिए, वे सभी अपने काफी अनुभवी हो चुके हैं। लेकिन किशोरों की असाधारण पीढ़ी उन्हें अभी से ही चुनौती देने में सक्षम लगती है और वे 20 वर्ष के आसपास की उम्र के मजबूत खिलाड़ियों को पछाड़ते दिखती है।

अब भारत के लिहाज से असाधारण आंकड़े मिल रहे हैं। जब आप टॉप 100 जूनियर (20 वर्ष से कम) की लिस्ट देखते हैं, तो भारत से 21 खिलाड़ी हैं, जो सच में बहुत बड़ी संख्या है। चार भारतीय जूनियर गुकेश, प्रग, एरिगैसी और सरीन शीर्ष 10 में हैं और 7 शीर्ष 20 में हैं। इसके अलावा, दुनिया के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर, 14 वर्षीय अमेरिकी अभिमन्यु मिश्रा भी भारतीय मूल के हैं जो उस सूची में 21 वें नंबर पर हैं। भारत में शतरंज का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है। यह देश अब दुनिया में शतरंज की एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहा है। भारतीय शतरंज खिलाड़ी अब लगातार शीर्ष रैंकिंग में जगह बना रहे हैं। वे विश्व चैंपियनशिप के लिए गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं। यह भारतीय शतरंज के लिए एक रोमांचक समय है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस युवा और प्रतिभाशाली पीढ़ी के खिलाड़ी भविष्य में क्या हासिल कर सकते हैं।

भारत में बहुत सारे युवा ग्रैंडमास्टर हैं और संभावना है कि उनमें से एक या ज्यादा खिलाड़ी जल्द ही विश्व चैंपियनशिप मैच में खेलेंगे। वे सभी मिलकर अगले एक दशक या उससे अधिक समय तक विश्व शतरंज पर हावी रहेंगे। इस प्रतिभा विस्फोट के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह है कि भारत में शतरंज खेलने वालों की संख्या बहुत अधिक है। पिछले 12 महीनों में भारत में 10 हजार से अधिक लोगों ने शतरंज टूर्नामेंट में भाग लिया है और 13 लाख भारतीयों ने कार्लसेन-प्रज्ञ का मैच देखा है। दूसरा कारण सस्ता डेटा और आसान इंटरनेट एक्सेस है। हर दिन लगभग 5 करोड़ गेम ऑनलाइन शतरंज प्लैटफॉर्म पर खेले जाते हैं और स्मार्टफोन से लैस भारतीय बच्चे उनमें से एक बड़ा हिस्सा हैं।

तीसरा कारण बुनियादी शतरंज कोचिंग की व्यापक उपलब्धता है, जिसने इतना बड़ा आधार बनाने में मदद की है। चौथा कारण मजबूत भागीदारी के साथ टूर्नामेंटों की संख्या में वृद्धि है। अगर भारत में कहीं भी एक प्रतिभाशाली युवा शतरंज खिलाड़ी है, तो उसे खोजा जाएगा और उसे चमकने का मौका दिया जाएगा। प्रज्ञ ने हार तो मान ली है, लेकिन भारत की जीत की होड़ शायद अभी शुरू ही हुई है।


लेखक : देवांगशु दत्त

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