नई दिल्ली | हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में इसे प्रबोधनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु के 4 महीने बाद योग निद्रा के उठने के उपलब्ध में रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और उनसे परिवार के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। इस वर्ष यह व्रत 4 नवंबर 2022, शुक्रवार (Dev Uthani Ekadashi Date) के दिन रखा जाएगा।
देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। हिंदू शास्त्रों में भी इस दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा के साथ-साथ व्रत कथा का भी पाठ किया जाता है। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी व्रत कथा जिसका पाठ करने से यह व्रत सफल हो जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक काल में एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी व्रत करते थे। इस दिन राज्य के किसी भी व्यक्ति को नहीं दिया जाता था। एक रोज दूसरे नगर से एक व्यक्ति नौकरी मांगने के लिए राजा के दरबार में आया। उसने राजा से नौकरी की प्रार्थना की। उसकी बातें सुनकर राजा ने कहा ‘मैं नौकरी तो तुम्हें दे दूंगा, लेकिन एकादशी के दिन तुम्हें अन्न नहीं दिया जाएगा।’ यह बात सुनकर नौकर खुशी से झूमने लगा और हंसी-खुशी उसने शर्त मान ली।
लेकिन जब एकादशी व्रत का समय आया, राज्य के सभी लोगों ने व्रत रखा। लेकिन वह नौकर राजा के पास अन्न मांगने के लिए आया। राजा ने उसे फलाहार का सामान दिया। लेकिन वह गिड़गिड़ाया कि इससे उसकी भूख नहीं मिटेगी और वह भूखा ही मर जाएगा। राजा ने उसे अपनी शर्त दोहराई। वह व्यक्ति बोला कि उसके लिए अन्न बहुत जरूरी है। राजा ने उसकी दशा देखकर उसे भोजन के लिए आटा, दाल, चावल दे दिया। वह नियमित रूप से एक नदी के किनारे गया और उसने भोजन पकाया। भोजन पकाने के बाद उसने भगवान को निमंत्रण दिया और कहा हे भगवन! अपना भोजन कर लीजिए।
भक्त की पुकार सुन प्रकट हुए भगवान
अपने भक्त की पुकार सुनकर भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और भोजन करने लगे। भोजन के बाद वह वैकुंठ लोक चले गए। इसके बाद वह नौकर भी अपने काम पर चला गया। जब दूसरे मास में एकादशी तिथि आई। तब उस नौकर ने राजा से दोगुना अनाज मांगा। जब राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने साफ-साफ बता दिया कि पिछली बार उसका सारा खाना भगवान कर गए थे। जिस वजह से वह भूखा रह गया था। यह बात सुनकर राजा को विश्वास नहीं हो और उसने उस नौकर को अन्न देने से मना कर दिया।
तब नौकर ने उस राजा को अपने साथ चलने का निमंत्रण दिया और कहा कि वह खुद ही यह देख ले। उसके बाद नौकर के साथ राजा नदी के किनारे गया और एक पेड़ के पीछे छिप गया। वह पीछे छिपकर पूरे घटनाक्रम को देखता रहा। इस बार भी नौकर ने भोजन पकाया और भगवान को निमंत्रण दिया। लेकिन इस बार भगवान प्रकट नहीं हुए। शाम तक वह भगवान का इंतजार करता रहा और उन्हें पुकारता रहा। अंत में उसने कहा कि ‘हे भगवन! यदि आप भोजन करने नहीं आएंगे तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा।’
राजा को हुआ ज्ञान
वह नौकर जैसे ही नदी की ओर बढ़ने लगा तभी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने अपने भक्त के द्वारा बनाया गया भोजन ग्रहण किया। भोजन करने के बाद वह उस नौकर को अपने साथ अपने धाम ले गए। राजा को यह आभास हुआ कि वह भगवान की भक्ति नहीं बल्कि आडंबर कर रहा था। सच्ची भावना से ही भगवान प्रसन्न होते हैं और दर्शन प्रदान करते हैं। तबसे राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत रखने लगा और अंत में उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।