पटना: आरजेडी और जेडीयू के विलय की खबर को 21 अक्टूबर को नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अपना भविष्य बताकर बिहार की नई राजनीतिक जमीन की ओर इशारा भी कर दिया था. ऐसा संकेत भले ही नीतीश कुमार ने मोतिहारी में बीजेपी के साथ अपने रिश्ते का खंडन करते हुए दिया हो लेकिन इतना साफ कर दिया कि आने वाले समय में बिहार की बागडोर तेजस्वी यादव के ही हाथ में होगी. जाहिर है इससे वे सभी दावे खारिज हो गए, जिसमें नीतीश का बीजेपी के प्रति उमड़ने वाला प्यार एकबार फिर सियासी गलियारों में चर्चा का सबब बन रहा था.
बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी और जेडीयू का विलय तय माना जा रहा है. जेडीयू के शीर्ष नेता समझ चुके हैं कि जेडीयू में सेकेंड लाइन का नेतृत्व तैयार नहीं हैं जो जेडीयू को नीतीश कुमार की तरह दशा और दिशा दे सके. इसलिए नीतीश कुमार काफी समय से समाजवादियों को इकट्ठा करने को लेकर मशक्कत करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. नीतीश कुमार की कोशिश जेडीएस को भी साथ लाने की थी. लेकिन एचडी देवेगौड़ा के बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेने के बाद ये संभावना लगभग खत्म हो गई है.
एचडी देवेगौड़ा कर्नाटक में अपनी पार्टी की भविष्य की चिंताकर बीजेपी से गठबंधन किया है. लेकिन बिहार में एकबार फिर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी पार्टी का विलय कर बीजेपी से आर-पार की तैयारी कर चुकी है. लोकसभा चुनाव से पहले एक रणनीति के तहत इसे रोका गया है लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद विलय तय माना जा रहा है और तेजस्वी की ताजपोशी लोकसभा चुनाव के बाद ही तय मानी जा रही है.
विलय को लेकर जेडीयू के सभी नेता तैयार?
नीतीश कुमार के फैसले का विरोध करने की हैसियत जेडीयू में किसी नेताओं में नहीं है. नीतीश की इच्छा के अनुसार ही राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह जेडीयू को आरजेडी के साथ करीब ले जाते देखे जा सकते हैं. मनोज झा प्रकरण में ललन सिंह के बयान लालू प्रसाद के बयान से ही मिलते जुलते देखे गए थे. ज़ाहिर है आनंद मोहन सिंह को जेल से निकालने में नियमावली में परिवर्तन करने वाली जेडीयू मनोज झा द्वारा राज्यसभा में पढ़ी गई कविता का समर्थन करती देखी गई और आनंद-मोहन का साथ साफ तौर पर देने से किनारा कर लिया.
सेकेंड लाइन के दो दिग्गज नेता ललन सिंह और विजयेन्द्र यादव जेडीयू और आरजेडी के विलय के पक्ष में हैं ऐसा कहा जा रहा है. वहीं संजय झा और विजय चौधरी सरीखे नेता नीतीश के फैसले का विरोध करने का मादा नहीं रखते हैं. जानकारों के मुताबिक संजय झा और विजय चौधरी आरजेडी के साथ विलय के बाद भी पार्टी में बेहतर तरीके से समाहित हो जाएंगे.
अशोक चौधरी आरजेडी और जेडीयू के विलय से खुश नहीं
ऐसा कहा जा रहा है कि इस पूरी कवायद से जेडीयू के एक बड़े नेता अशोक चौधरी को परहेज है. दरअसल अशोक चौधरी दलित समाज से आते हैं और नीतीश कुमार के बाद जेडीयू में वो सबसे बड़े जनाधार वाले नेता की कतार में खुद को खड़ा करते हैं. ज़ाहिर है आरजेडी और जेडीयू के विलय की बात से सबसे ज्यादा नाराजगी अशोक चौधरी के भीतर ही बताई जा रही है.
यही वजह है कि पार्टी के भीतर दो धड़े में एक धड़ा अशोक चौधरी का बताया जा रहा है जो आरजेडी और जेडीयू के विलय के विरोधी हैं. वहीं दूसरा धड़ा राजीवरंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और विजयेन्द्र यादव का बताया जा रहा है जो आरजेडी और जेडीयू के विलय के हिमायती बताए जा रहे हैं. वहीं विजय चौधरी और संजय झा को लेकर कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार जो भी फैसले लेंगे उसमें इन दोनों नेताओं की हामी तय है.
जेडीयू के भीतर विधायकों और कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन?
नीतीश कुमार द्वारा राष्ट्रपति के सामने दिए गए बयान की बात हो या फिर जी-20 में पीएम मोदी से मुलाकात की घटना. नीतीश कुमार के इस व्यवहार से कार्यकर्ताओं में भयानक कन्फ्यूजन है. नीतीश पार्टी को किधर ले जाना चाहते हैं, इसको लेकर पार्टी के भीतय संशय समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है. जेडीयू के विधायक भी पटना पहुंचकर ललन सिंह और अशोक चौधरी कैंप से दूरी बनाकर चलने में ही भलाई समझ रहे हैं. दरअसल दोनों नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई में विधायक तय नहीं कर पा रहे हैं कि किस ओर जाना उचित होगा. इसलिए पार्टी की दशा और दिशा को लेकर कार्यकर्ताओं और विधायकों में गहरा असंतोष देखा जा सकता है. वहीं जेडीयू के 16 सांसदों में भी टिकट कटने को लेकर उहापोह की स्थिती है. ज़ाहिर है जेडीयू के साथ 6 पार्टियों के गठबंधन से माहौल में परिवर्तन हुआ है. ऐसे में वर्तमान में कितने सासंदों का टिकट कटेगा इसको लेकर रस्साकशी तेज है.
इतना तय है कि भविष्य के सारे फैसले विलय को ध्यान में रखकर ही लिया जाना है. सूत्रों के मुताबिक इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव में हारे या जीते लेकिन विलय की पटकथा तैयार है और इसकी औपचारिक घोषणा शेष रह गई है. ऐसे में जो नए माहौल में फिट होगा उसे पार्टी में जगह दी जाएगी, वहीं विरोध करने वालों को चिह्नित कर उन्हें किनारा किया जाना तय है.