देहरादून। आयुर्वेद के सिद्वान्तों और समग्र स्वास्थ्य देखभाल में इसके महत्व के सम्बन्ध में जागरूकता हेतु गुरूवार को राजभवन में ‘‘आयुर्ज्ञान सम्मेलन’’ आयोजित किया गया।
आयुष एवं आयुष शिक्षा विभाग और आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य आयुष चिकित्सा पद्धति के माध्यम से समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन, जड़ी-बूटी कृषिकरण एवं संवर्धन, आयुष उद्योगों की स्थापना, वेलनेस सेन्टर, आयुष क्षेत्र में नवाचार एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना है।
इस सम्मेलन में आयुष सम्बन्धी संसाधन एवं संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया। सम्मेलन में ‘आयुर्वेद और योगिक कल्याण सिद्धांत’ विषय पर प्रो. उत्तम कुमार शर्मा, प्रो०अनूप गक्खड़, प्रो. एच एम चंदोला, प्रो. वी के अग्निहोत्री, प्रो. महेश व्यास ने अपने विचार साझा किए।
‘सामंजस्यपूर्ण परंपरा-आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा का तालमेल’ विषय पर एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रो रेनू सिंह, कुलपति चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय प्रो. हेम चंद्र, प्रोफेसर आलोक श्रीवास्तव, प्रोफेसर पी के प्रजापति, प्रो रमाकांत यादव द्वारा विचार रखे गए।
‘आयुर्वेदिक चिकित्सा में उन्नति’ विषय पर डॉ ज्ञानेंद्र दत्ता शुक्ला, प्रोफेसर करतार सिंह धीमान, प्रोफेसर एस के जोशी, डॉ.मनोज शर्मा ने उपस्थित लोगों के साथ अपने अनुभव साझा किए। ‘जीवनशैली संबंधी विकार और उनकी रोकथाम’ विषय पर प्रो ओ पी सिंह, प्रोफेसर संतोष भट्टड़, प्रोफेसर ए के त्रिपाठी, डॉ. विनोद उपाध्याय, प्रोफेसर आर के जोशी ने अपने विचार रखे।
‘उत्तराखंड में खुशहाल जीवन क्षेत्र अवसर और चुनौतियाँ’ विषय पर प्रोफेसर संजय त्रिपाठी, और डॉ अभिषेक रमेश ने अपने विचार रखे। आयुर्ज्ञान सम्मेलन में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) मुख्य अतिथि और पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम में विभिन्न आयुष औषधीय के निर्माण क्षेत्र में कार्य करने वाली कंपनियों ने अपने स्टॉल भी लगाए।
राज्यपाल ने इन स्टॉलों का अवलोकन किया और उत्पादों की सराहना की। इस अवसर पर राज्यपाल ने आयुर्ज्ञान सम्मेलन की स्मारिका का भी विमोचन किया। अपने संबोधन में राज्यपाल ने लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) कहा कि आयुर्वेद हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों की दी हुई एक अनमोल धरोहर है, जो मानवता के कल्याण और स्वस्थ्य, सुखी और निरोगी जीवनचर्या का आधार है।
उन्होंने कहा कि योग और आयुर्वेद हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता। उत्तराखण्ड राज्य अपनी विशिष्ट वनौषधि संपदा, आयुर्वेदिक ज्ञान के लिए प्रसिद्व है। प्राचीन काल से ही उत्तराखण्ड की इस पावन धरती पर, हिमालय के दिव्य आंचल में ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का विस्तार होता चला जा रहा है।
राज्यपाल ने कहा कि प्रत्येक उत्तराखंडवासी आयुर्वेद ज्ञान के प्रचार-प्रसार का ब्रांड एंबेसडर है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम योग, आयुर्वेद को हर एक व्यक्ति तक पंहुचाएं और उन्हें इससे होने वाले लाभ के बारे में बताएं। उन्होंने कहा कि आयुर्वेेेद पूरी मानवता के लिए एक बड़ा वरदान है। कोविड-19 महामारी के बाद पूरी दुनिया आयुर्वेद, योग और मर्म के महत्व को समझ गए हैं।
आचार्य बालकृष्ण ने अपने संबोधन में कहा कि इस सम्मेलन का प्रभाव अवश्य ही व्यापक स्तर पर होगा। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीन पंरम्परा है। आयुर्वेद के गौरव को लौटने में संशय नहीं है, ऋषियों की इस विधा की आज पुनः वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि हमें स्वयं आयुर्वेद के प्रति चेतन और जागृत होना होगा।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों में समन्वय भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि आर्युवेद के इतिहास के साथ-साथ जड़ी-बूटी आश्रित पद्धतियों के इतिहास को भी पढ़ाया जाना जरूरी है। सचिव आयुष डॉ पंकज पाण्डेय ने सम्मेलन के विषय में जानकारी दी। कुलपति आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय प्रो अरुण कुमार त्रिपाठी ने उपस्थित लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर प्रथम महिला गुरमीत कौर, सचिव राज्यपाल रविनाथ रामन, अपर सचिव आयुष विजय कुमार जोगदंडे, प्रो० बालकृष्ण पवार, डा. नंदकिशोर दाधीच, डा० मिथलेश कुमार, डॉ के के पाण्डेय, डॉ राजीव कुरेले, सहित आयुर्ज्ञान सम्मेलन में आयुष के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे विशेषज्ञ, विभिन्न आयुर्वेदिक कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक, रिसर्चर, स्नातकोत्तर रिसर्च छात्र-छात्राओं, सहित अन्य लोगों ने प्रतिभाग किया।