हरिद्वार। नगर निगम में करोडो के जमीन घोटाले की हाईप्रोफाइल जांच कराने के लिए मुख्यमंत्री ने आदेश दिये थे जिसके बाद आईएएस ने अपनी जांच को तेजी के साथ आगे बढाया और उन्होंने हरिद्वार मे डेरा डालकर वहां जांच पडताल की और उसके बाद इस मामले मे कुछ अधिकारियों और नगर निगम के स्टाफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू किया गया था जिसके बाद यह बात साफ हो रही थी कि इस मामले में जांच जिस दिशा मे जा रही है उसको देखते हुए यह साफ है कि भूमि घोटाले का एक-एक गुनाहगार बेपर्दा होगा।
मुख्यमंत्री ने साफ संदेश दिया था कि इस मामले मे जो भी अधिकारी या कर्मचारी दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही अमल मे लाई जायेगी। मुख्यमंत्री के सख्त रूख के चलते इस जांच पर राज्यवासियों की नजरें लगी हुई थी और यह बहस चल रही थी कि कूडे के ढेर के पास की चौदह करोड की जमीन बिना किसी आवश्यकता के नगर निगम हरिद्वार ने आखिर 54 करोड में क्यों खरीदी थी?
जांच अधिकारी ने आज आखिरकार अपनी जांच शासन को सौंप दी जिसमें कई बडे नाम कार्यवाही की जद मे आने तय माने जा रहे हैं? इस जांच में डीएम हरिद्वार, तत्कालीन नगर आयुक्त और एसडीएम के इर्द-गिर्द यह जांच पूरी तरह से घूमती हुई नजर आ रही है और अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री पर टिकी हुई हैं कि वह इस घोटाले को लेकर कब और कितनी बडी कार्यवाही करेंगे? सवाल खडे हो रहे हैं कि क्या इस घोटाले में एफआईआर दर्ज कराकर उन सब घोटालेबाजों पर बडा एक्शन होगा जिन्होंने सरकार के साथ धोखा करके इस घोटाले को अंजाम दिया है?
हरिद्वार नगर निगम के करोड़ों के जमीन घोटाले की हाई प्रोफाइल जांच पूरी हो गयी है। आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने आज जांच रिपोर्ट सौंप दी। अब देखना यह है कि वित्तीय अनियमितताओं, प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के त्रिकोण के इस घोटाले के दोषियों के खिलाफ धामी सरकार क्या एक्शन लेती है ? शहरी विकास सचिव नितेश झा को सौंपी गयी रिपोर्ट में तीन बड़े अधिकारियों को प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है।
जांच में यह साफ हो गया कि लगभग 33 बीघा भूमि के लैंड यूज व खरीद में तय नियमों व शर्तों का पालन नहीं किया गया। जांच रिपोर्ट में हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी व एसडीएम अजयवीर सिंह को दोषी करार दिया गया है। जांच रिपोर्ट में दोषी अधिकारियों के खिलाफ यथोचित एक्शन लेने की बात कही गयी है।
मौजूदा समय में आईएएस वरुण चौधरी सचिवालय में अपर सचिव स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जांच में यह भी सामने आया कि हरिद्वार नगर निगम ने कुछ करोड़ की कृषि भूमि का लैंड यूज 20 दिन के अंदर कर दिया। कूड़े के ढेर के समीप स्थित इस कृषि भूमि का कामर्शियल भू उपयोग में तब्दील होने पर जमीन की कीमत के दाम उछलकर 55 करोड़ तक पहुंच गए।
इसके बाद अधिकारियों की मिलीभगत के बाद यह जमीन ऊंचे दामों पर खरीद ली गयी। जांच रिपोर्ट में जमीन खरीद के औचित्य पर गहरे सवाल उठाए गए हैं। इसके अलावा भू उपयोग परिवर्तन से सरकारी खजाने में लगी करोड़ों की चपत को भी गम्भीर प्रशासनिक लापरवाही मुद्दा माना गया।
आज सौंपी गई रिपोर्ट के बाद अब गेंद शासन के पाले में है। इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ सम्बंधित कार्मिक विभाग ही कोई एक्शन लेगा। इससे पूर्व जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने हरिद्वार डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी के बयान दर्ज किये थे। और हरिद्वार जाकर अभिलेखों की जांच व मौका मुआयना किया था।
नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों की बंदरबांट के इस हैरतअंगेज कारनामे में तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह के स्टेनो और डाटा एंट्री ऑपरेटर से भी पूछताछ की गई। इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच को लेकर पूरे प्रदेश में हलचल देखी जा रही है। गौरतलब है कि एक मई को हरिद्वार नगर निगम द्वारा बाजार भाव से अधिक दर पर भूमि खरीदे जाने के प्रकरण में प्रथमद्रष्टया दोषी पाए गए चार अधिकारियों को निलंबित किया गया था जबकि एक अन्य अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर नगर निगम हरिद्वार द्वारा सराय गांव में भूमि खरीद मामले में यह सख्त कार्रवाई की गई थी। इसके अलावा, मामले में एक कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए थे। जांच में पाया गया कि उक्त भूमि की खरीद के लिए गठित समिति के सदस्य के रूप में हरिद्वार नगर निगम के अधिशासी अधिकारी श्रेणी-2 (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त) रवीन्द्र कुमार दयाल, सहायक अभियन्ता (प्रभारी अधिशासी अभियन्ता) आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भटट और अवर अभियंता दिनेश चन्द्र काण्डपाल ने अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया।
इस आरोप में सभी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है । प्रकरण में सेवा विस्तार पर कार्यरत सेवानिवृत्त सम्पत्ति लिपिक वेदपाल की भी संलिप्तता पायी गयी जिसके बाद सेवा विस्तार समाप्त करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं । इसके साथ ही हरिद्वार नगर निगम की वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है।
गौरतलब है कि नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2024 में आईएएस वरुण चौधरी को नगर निगम का प्रशासक तैनात किया गया था। भूमि खरीद में नगर निगम एक्ट का पालन किया जाना था। जमीन खरीद से जुड़े शासन के नियम व निर्देश भी अपनी जगह मौजूद थे। बावजूद इसके एक कघ्षि योग्य भूमि का लैंड यूज परिवर्तित कर कामर्शियल कर दिया। और सिर्फ कुछ करोड़ की जमीन आधे अरब से अधिक दाम में खरीद ली गयी।
इस मामले में हवा के माफिक दौड़ी फाइल का पेट भी नियमबद्ध दस्तावेजों से नहीं भरा गया। निकाय विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि नगर निगम ने किस परियोजना या योजना के लिए कूड़े के ढेर के बगल वाली जमीन खरीदी। जमीन खरीद का क्या प्रयोजन था? यह भी साफ नहीं किया गया। चूंकि, कामर्शियल रेट पर करोड़ों की खरीदी गई जमीन पर निगम की कोई फ्लैट बनाने की योजना थी? या फिर मॉल आदि कोई अन्य कामर्शियल गतिविधि को अंजाम देना था ? यह भी सार्वजनिक नहीं किया गया।
अलबत्ता गोदाम बनाने की बात अवश्य कही गयी। हरिद्वार नगर निगम भूमि घोटाले में एक बात यह भी सामने आ रही है कि सम्बंधित जिम्मेदार अधिकारियों ने भूमि खरीद की तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। हरिद्वार नगर निगम भूमि खरीद घोटाले में 1 मई को चार अधिकारियों के निलंबन के बाद जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह ने हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर प्रशासक हरिद्वार वरुण चौधरी से पूछताछ की थी।
गौरतलब है कि हरिद्वार से जुड़े अधिकारियों ने यह कारनामा नगर निगम भंग होने के समय अंजाम दिया था। बाद में हरिद्वार की मेयर निर्वाचित होने पर किरण जैसल ने इस भूमि खरीद घोटाले की शिकायत सीएम धामी से की। सीएम धामी ने जांच आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह को सौंपी। भूमि का लैंड यूज कृषि था। तब उसका सर्किल रेट छह हजार रुपये के आस पास था।
यदि भूमि को कृषि भूमि के तौर पर खरीदा जाता, तब उसकी कुल कीमत पंद्रह करोड़ के आस पास होती। लेकिन लैंड यूज चेंज कर खेले गए खेल के बाद भूमि की कीमत 54 करोड़ के आस पास हो गई। खास बात ये है कि अक्टूबर में एसडीएम अजयवीर सिंह ने लैंड यूज बदला और चंद दिनों में ही निगम निगम हरिद्वार ने एग्रीमेंट कर दिया और नवंबर में रजिस्ट्री कर दी।
नगर निगम हरिद्वार ने नवंबर 2024 में सराय कूड़ा निस्तारण केंद्र से सटी 33 बीघा भूमि का क्रय किया था। ये भूमि 54 करोड़ रुपए में खरीदी थी जबकि छह करोड़ रुपए स्टाप ड्यूटी के तौर पर सरकारी खजाने में जमा हुए थे।
2024 में तब नगर प्रशासक आईएएस वरुण चौधरी थे। जमीन खरीद मामले में मेयर किरण जैसल ने सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच सीनियर आईएएस अफसर रणवीर सिंह को सौंपी थी। अब इस मामले में जमीन को बेचने वाले किसान के खातों को फ्रीज करने के आदेश कर दिए गए हैं।