मुंबई: लोकसभा चुनाव में इस बार देश की सबसे लोकप्रिय सीटों में से एक दक्षिण मुंबई में अस्मिता की लड़ाई है। ज़वेरी बाजार, शेयर बाजार, मंत्रालय और न जाने कितने ही महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों वाली इस सीट पर अब तक 10 बार कांग्रेस जीत चुकी है, लेकिन 2014 से शिवसेना (अब उद्धव गुट) से अरविंद सावंत सांसद हैं। अब महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं और दक्षिण मुंबई की सीट पर इस बार अन्य किसी भी फैक्टर से ज्यादा अस्मिता की लड़ाई दिख रही है। मुंबई से व्यापारिक प्रतिष्ठानों का गुजरात चले जाने का लगातार डर बनाया जा रहा है। यदि ऐसा होता है, तो दक्षिण मुंबई पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। वैसे, पिछले कुछ साल में यहां से तेजी से पलायन भी जारी है, लेकिन इसकी वजह कोरोना के बाद बदली हुई परिस्थितियां हैं।
दक्षिण मुंबई सीट का इतिहास
1952 से अब तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। लोकसभा चुनावों की शुरुआत से लगातार तीन बार कांग्रेस की ओर से सदाशिव कानोजी पाटील (एस.के. पाटील) जीते, जो स्वतंत्रता सेनानी भी रहे और उन्हें मुंबई के बेताज़ बादशाह का खिताब प्राप्त था। 1967 के चुनाव में दमदार पाटील को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के जॉर्ज फर्नांडिस ने हरा दिया। इस बड़े टर्निंग पॉइंट को छोड़ दें, तो आमतौर पर यहां हमेशा लड़ाई कांग्रेस बनाम बीजेपी की ही रही है। कांग्रेस ने इस सीट को 10 बार जीता है, जिसमें मुरली देवड़ा चार बार और मिलिंद देवड़ा दो बार चुनाव जीत चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से जयवंती बेन मेहता ने इस सीट पर लगातार दो बार जीत दर्ज की थी।
अब कैसे बदल गए समीकरण
मौजूदा सांसद सावंत जिस एनडीए से चुनाव जीते थे, अब उनकी पार्टी शिवसेना सरकार का हिस्सा नहीं है। जिस शिवसेना से सावंत जीते हैं, उसका भी विभाजन हो चुका है। अब तक धनुष-बाण चुनाव चिह्न भी उनके पास नहीं है। उन्होंने दो बार कांग्रेस के मिलिंद को हराया था, लेकिन मिलिंद ने अब धनुष-बाण थाम लिया है। धनुष-बाण का चिह्न शिवसेना (शिंदे) के पास चला गया। महा विकास आघाडी के हाथों में महाराष्ट्र की सत्ता थी, लेकिन एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 विधायकों को लेकर अलग हो गए। बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और राज्य के मुख्यमंत्री हो गए। उन्होंने शिवसेना पर दावा ठोक दिया और विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर बीजेपी के राहुल नार्वेकर ने शिंदे के पक्ष में फैसला दिया। महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिरता आए, इससे पहले अजीत पवार भी एनसीपी से अलग हो गए और एनसीपी पर दावा ठोक दिया।
कैसे बनी अस्मिता की लड़ाई
मुंबई की 6 लोकसभा सीटों में अब तक एनडीए की ओर से एक गुजराती और एक मारवाड़ी उम्मीदवार को मैदान में उतारा जा चुका है। दक्षिण मुंबई पारंपरिक तौर पर गुजराती-मारवाड़ी बहुल सीट रही है। अब तक 6 बार मारवाड़ी और 3 बार गुजराती ने यह सीट जीती है। इस बार सावंत के सामने यदि किसी गुजराती या मारवाड़ी उम्मीदवार को उतारा गया, तो इस संदेश को बल मिल जाएगा कि मुंबई से मराठियों के दबदबे को कम करने की साजिश चल रही है। यहां अस्मिता की लड़ाई अन्य किसी फैक्टर पर हावी हो जाती है।
इस तरह ढूंढा जा रहा है जीत का फॉर्म्युला
मौजूदा सांसद सावंत अब एनडीए का हिस्सा नहीं रहे, तो बीजेपी के पारंपरिक मारवाड़ी-गुजराती वोटर्स का साथ भी छूट गया है। सावंत को अब कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है, तो पारंपरिक मुस्लिम वोटर्स भी उनके साथ रहेंगे। इसीलिए, आजकल सावंत इफ्तार पार्टियों में ज्यादा नजर आ रहे हैं। यहां की मुंबादेवी विधानसभा सीट से अमीन पटेल कांग्रेस के विधायक हैं और किसी भी लहर में उन्होंने अपना मुस्लिम वोट बैंक कायम रखा है। इसका लाभ भी सावंत को मिल सकता है। वहीं, मारवाड़ी-गुजराती वोटर्स को अपने ही गढ़ में अब तक इस कम्युनिटी से उम्मीदवार न मिलने की नाराजगी है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में इन वोटर्स ने मराठी उम्मीदवार को वोट दिया है। इस लोकसभा सीट में 6 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से तीन एमवीए, तो तीन एनडीए के पास हैं।
दक्षिण मुंबई के वोटर्स
- कुल मतदाता: 24,59,443
- पुरुषः 13,27,520
- महिला: 11,30,701
- ट्रांस जेडर्स: 222
- बुजुर्ग मतदाता (85+): 55,753
- यंग वोटर्स: 17,723 (17-19 वर्ष)
मैदान है, लेकिन खिलाड़ी नहीं
इस बार चुनाव के लिए शिवसेना (उद्धव गुट) की ओर से सावंत को उम्मीदवार घोषित किया जा चुका है, लेकिन उन्हें चुनौती देने के लिए अभी कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा गया है। कभी बीजेपी, तो कभी शिंदे सेना की तरफ से उम्मीदवार घोषित करने की कशमकश चल रही है। सावंत को टक्कर देने के लिए अब तक बीजेपी के राहुल नार्वेकर या मंगल प्रभात लोढ़ा, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बाला नंदगांवकर और अब शिंदे सेना के यशवंत जाधव का नाम चल रहा है। तय अब तक एक भी नहीं हुआ। महा विकास आघाडी में कांग्रेस, एनसीपी (शरद गुट) और शिवसेना (उद्धव गुट) की ओर से इस बार सावंत उम्मीदवार हैं। सावंत पिछले दो लोकसभा चुनाव एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर जीते थे।