रूस-यूक्रेन युद्ध को सालभर से ज्यादा वक्त बीत चुका है. इसके तत्काल खत्म होने का फिलहाल कोई संकेत भी नहीं है. हालांकि इस दौरान अमेरिका में बैंकिंग सेक्टर का संकट, यूरोप में मंदी का असर और दुनियाभर में अलग-अलग इकोनॉमीज की घटती ग्रोथ नई समस्यांए बन चुकी हैं. आखिर कैसे इस युद्ध से बैंकिंग सेक्टर पर असर हो रहा है. कैसे ये दुनिया के साथ-साथ भारत की इकोनॉमी पर भी असर डालने वाला है, चलिए समझते हैं…
हाल में वर्ल्ड बैंक के ग्रुप प्रेसिडेंट डेविड मैलपास ने यूक्रेन को फिर खड़ा करने की बात कही. उन्होंने इस काम में वर्ल्ड बैंक की तैयारी के साथ-साथ फंडिंग में यूरोप की ओर से मदद किए जाने की बात भी कही. लेकिन यूरोप पहले से महंगाई, घटती ग्रोथ रेट और मंदी, पूंजी की बढ़ती लागत एवं बैंकिंग सेक्टर के संकट का सामना कर रहा है. आपको बताते चले, इस समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की सालाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका में है.
वित्त मंत्री का अमेरिका दौरा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का इस बैठक में शामिल होना काफी अहम है. इस दौरान एक तरफ उन्होंने सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अलजादान तो दूसरी तरफ आईएमएफ की पहली डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ के साथ दुनिया में बढ़ते कर्ज संकट को लेकर चर्चा की.
बढ़ते कर्ज संकट पर आईएमएफ की अधिकारी के साथ निर्मला सीतारमण की ये बातचीत आईएमएफ के इंडिया की ग्रोथ रेट को लेकर डाटा जारी किए जाने के बाद हुई है. आईएमएफ ने चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटा दिया है. पहले ये 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था, जबकि ताजा आंकड़ों में इसे 5.,9 प्रतिशत कर दिया गया है.
इसी के साथ वित्तीय सेक्टर में बढ़ते दबाव, ब्याज दरों के बढ़ने, भारत का कर्ज बढ़ने, महंगाई को लेकर भी आईएमएफ की रिपोर्ट में चिंता जताई गई है. इतना ही नहीं दुनिया की राजनीतिक घटनाओं के असर को लेकर भी बातचीत आईएमएफ की रिपोर्ट में की गई है. इन घटनाओं में अमेरिका और यूरोप का घटना क्रम अहम है और इसका असर इंडियन इकोनॉमी पर कैसे दिखेगा, आगे जानें…
SVB का डूबना और अमेरिका की समस्या
अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया. उसके बाद सिग्नेचर बैंक भी डूब गया. वहीं करीब 186 बैंक की तालाबंदी का संकट तलवार की तरह लटका हुआ है. इतना ही नहीं अमेरिका में महंगाई अपने चरम पर है और इसे कंट्रोल करने के लिए फेडरल रिजर्व लगातार ब्याज दरों को बढ़ा रहा है.
इस संकट का दूसरा पहलू ये है कि उसे बैंकिंग सेक्टर को बचाने के लिए अलग से क्रेडिट लाइन भी देनी पड़ रही है. यानी महंगाई के अंतत: नीचे आने की उम्मीद कम है. इस तरह के हालात में अमेरिका का इंपोर्ट प्रभावित हो सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध और यूरोप की समस्या
रूस-यूक्रेन का युद्ध भी पश्चिम के संकट को बढ़ा रहा है, खासकर यूरोप पर इसका असर काफी ज्यादा है. वर्ल्ड बैंक ने यूरोप के बारे में अपने हालिया इकोनॉमिक अपडेट में कहा है कि युद्ध के वजह से इस एरिया में महंगाई बढ़ रही है. वहीं कड़े वित्तीय हालात भी इकोनॉमी को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
यूरोप में कई देश मंदी जैसे हालातों का सामना कर रहे हैं, एनर्जी के साथ-साथ पूंजी की लागत भी बढ़ रही है. ऐसे में अगर वर्ल्ड बैंक के कहे मुताबिक अगर रूस-यूक्रेन युद्ध और खिंचता है, तो यूरोपीय अर्थव्यवस्था की हालत और बुरी होगी. नतीजा बैंकिंग सेक्टर की तरफ से पूंजी महंगी होती जाएगी और लोन घटेगा. इससे यूरोप के इंपोर्ट में कमी आने की संभावना है.
भारत का गिरता एक्सपोर्ट समस्या
अमेरिका और यूरोप के इस संकट का असर भारत पर दिख रहा है. वहीं बढ़ता इंपोर्ट बिल, कच्चे तेल के दाम और महंगाई भारत के लिए भी समस्या बनी हुई है. भारत के एक्सपोर्ट में 2023 की शुरुआत से लगातार गिरावट आ रही है. जनवरी में ये 6.58 प्रतिशत गिरकर 12 महीने के निचले स्तर पर चला गया. वहीं फरवरी में इसमें 8 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई.
अब भारत के एक्सपोर्ट का एक बड़ा हिस्सा यूरोप और अमेरिका को जाता है. भारत से अमेरिका को होने वाला एक्सपोर्ट दिसंबर 2022 में करीब 540 अरब रुपये था, जो जनवरी में घटकर 480 अरब रुपये रह गया. इसी तरह यूरोप को होने वाला एक्सपोर्ट जनवरी में 746.62 अरब रुपये पर आ गया, जो दिसंबर 2022 में 753.14 अरब रुपये था. ऐसे में अगर यूरोप और अमेरिका की समस्या बढ़ती है तो भारत का एक्सपोर्ट और भी घटेगा.
ओपेक बढ़ाएगा भारत का इंपोर्ट बिल
भले भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल अभी रूस से खरीद रहा है, लेकिन आने वाले दिन में भारत का कच्चा तेल इंपोर्ट बिल बढ़ने की संभावना है. ओपेक प्लस देशों ने क्रूड ऑयल प्रोडक्शन में हर दिन 10 लाख बैरल की कटौती करने का फैसला किया है. इसे लेकर इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) ने क्रूड ऑयल का प्राइस बढ़ने की चेतावनी दी है.
संभावना है कि आने वाले दिनों क्रूड ऑयल का 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, जो अभी करीब 85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है. ऐसे में भारत जो अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल सिर्फ आयात करता है, उसका इंपोर्ट बिल बढ़ेगा. इससे महंगाई बढ़ेगी और इकोनॉमिक ग्रोथ को झटका लगेगा.