आज सावन सोमवार है। इस दिन शिवलिंग पर दूध-जल और बिल्वपत्र के साथ ही कई तरह की फूल-पत्तियां चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा की जाती है। साथ ही श्रद्धा के अनुसार दिनभर व्रत या उपवास रखा जाता है और रात में जागरण करते हुए भजन किए जाते हैं। भगवान शिव की ये पूजा धार्मिक रूप से तो महत्वपूर्ण है ही। व्यवहारिक और ज्योतिषीय नजरिये से भी सावन के महीने में शिव पूजा खास होती है।
कई बीमारियों से बच जाते हैं
सावन महीने में भगवान शिव को दूध चढ़ाया जाता है। इस परंपरा को व्यवहारिक नजरिये से देखें तो इसके और भी फायदे हैं। जिन चीजों से प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष हैं, उन सबका भोग शिवजी को लगता है। कई सालों पहले जब श्रावण महीने में हर जगह शिवलिंग पर दूध चढ़ता था, तब लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने में दूध जहर के सामान है। ऐसे में वे इसलिए दूध त्याग देते थे कि कहीं उन्हें बरसाती बीमारियां न घेर लें। इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि शिव भगवान दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल जैसा जहरीला दूध भी पी सकते हैं।
सेहत के नजरिये से: सावन में दूध होते हैं वात रोग
BHU की डॉ. पूनम यादव बताती हैं कि सावन में दूध और उससे बनी चीजें नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इससे वात की बीमारियां ज्यादा होती हैं। श्रावण के महीने में मौसमी बदलाव के कारण जठराग्नि कमजोर हो जाती है। जिससे पाचन ठीक नहीं रहता। इस दौरान दूध नहीं पचने के कारण कफ और वात बढ़ने लगता है। आचार्य वाग्भट्ट सहित चरक और सुश्रुत ने भी अपने ग्रंथों में इस बात का जिक्र किया है। इसलिए हमारे पुराणों में सावन महीने के दौरान शिवजी को दूध अर्पित करने की परंपरा बन गई थी। सावन में गाय-भैंस घास के साथ कई कीडे़ भी खा लेती हैं, जो दूध को हानिकारक बना देते हैं।
ज्योतिषीय नजरिये से: मजबूत होती है इच्छा शक्ति
पुरी ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के मुताबिक शिवलिंग पर दूध और पानी चढ़ाने का ज्योतिषीय नजरिया भी है। इसके अनुसार दूध और पानी पर चंद्रमा का प्रभाव होता है। शिवजी ने चंद्रमा को अपने सिर पर स्थान दिया है। वहीं चंद्रमा मन का कारक ग्रह भी है। चंद्रमा की अच्छी-बुरी स्थिति का असर मनुष्य मन पर पड़ता है। चंद्रमा के बुरे असर से बचने के लिए शिवलिंग पर चंद्रमा की कारक वस्तुएं दूध और जल चढ़ाई जाती हैं।
खबर इनपुट एजेंसी से