दुःख से पहली बार
मिलवाया था तुम्हारी हंसी ने
तुम्हारी उदासी ले गयी थी
दर्शन की किताबों तक
चालीस साल बाद भी
स्पर्श का बीज -मन्त्र
अजपा जाप- सा
स्वचालित है
साँसों की पवन चक्की में
जब घर के हर कमरे में
पसरा है बाजार
अपने अवशेषों के साथ
निकल आया हूँ अपनी आत्मा के बाहरी बरामदे में
दीमक लगे निस्तेज पत्रों के बीच जुगनू -सी चमकती आँखें लिए
पढ़ा जा सकता है उनमें व्याख्या सहित
पूरा अलिखित खंड काव्य
वे भाष्य हैं
अनुत्तरित प्रश्नाकुल अंतहीन मौन का
जिन्होंने मिलवाया था
एक दिन दुःख से
उन्ही आँखों से झर रहा है
सुख -प्रपात ! …
-डॉ जय नारायण बुधवार