सांवली लड़कियां संगीत को वो मध्दम सुर है जो बहुत धीरे-धीरे आप पर असर करता है,
लेकिन जब असर करता है तो आत्मा के तार झनझना देता है।
सांवली लड़कियां ईश्वर के अधिक समीप मालूम पड़ती है क्योंकि श्याम वर्ण कृष्ण का रंग है,
कृष्ण ठहरे प्रेम व इस विराट के अधिष्ठाता।
सांवली लड़कियां प्रकाश और उजाले के बीच का वो क्षितिज व सेतुबंध है,
जहां गौर वर्ण सूर्य भी अपना अस्तित्व समेटकर सुबह-शाम डूबता-उतरता है।
सांवली लड़कियां सुरमई सांझ का वो हल्का सा अंधेरा है,
जहां आप अपना अस्तित्व किसी सांवले दामन में रखकर निश्चित हो सकते हो।
सांवली लड़कियां इस अस्तित्व के माथे पर काला टीका है,
जो इस विराट अस्तित्व की कुदृष्टि से रक्षा करता है।
गौरवर्ण आपकी अँखियाँ चुंधिया सकता है लेकिन आपकी आंखों को,
सुख व सकून तो इक सांवली सी रंगत को निहारने में ही मिलता है।
सांवली लड़कियां रिमझिम बारिश की तरह धीरे-धीरे ह्रदय के धरातल को अपनी रंगत से स्निग्ध करती है,
फिर प्रणय के हरसिंगार महका देती है।
गौरवर्ण का मिथ्या अहंकार क्या जाने कि सांवली लड़कियां,
अहंकार विसर्जन का एक आध्यात्मिक सन्देश हुआ करती हैं।
इन सांवली सुरतिया व मोहनी मुरतिया को तो वही योगी पढ़ सकता है,
जो सांवले रंग का निर्गुण उपासक हो।
सांवली लड़कियों को जब भी देखता हूँ तो बस दूर से ही तकता रहता हूँ,
और मुझे गुलजार याद आ जाते हैं
“सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो।
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो।”
गौरवर्ण के स्वामी इन पंक्तियों के लेखक को न जाने क्यों सांवली लड़कियां अधिक आकर्षित करती है,
इसका उत्तर तो अंतश्चेतना की गहराइयों में उतरकर ही दिया जा सकता है।
शुभ देपावत चारण