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भारतीय अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण को गति देने में भारतीय नागरिकों के कर्तव्य

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
02/12/22
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, व्यापार
भारतीय अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण को गति देने में भारतीय नागरिकों के कर्तव्य

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प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक


अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। इस सम्बंध में उक्त प्रतिवेदन में कई कारण गिनाए गए हैं। जैसे, भारत में वर्तमान में 50 लाख परिवारों की आय 35000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है। आगे आने वाले 10 वर्षों में यह संख्या 5 गुना बढ़कर 250 लाख परिवार होने जा रही है। इससे भारत में विभिन्न वस्तुओं का उपभोग द्रुत गति से बढ़ने जा रहा है। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति आय 2278 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है जो 10 वर्षों के दौरान दुगनी से भी अधिक होकर 5242 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष हो जाएगी।

वर्तमान के सेवा क्षेत्र के निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी 3.7 प्रतिशत से बढ़कर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में यह 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 1.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वर्ष 2021-2030 के दौरान पूरे विश्व में बिकने वाली कुल कारों में से 25 प्रतिशत कारें भारत में निर्मित कारें होंगी। साथ ही, 2030 तक यात्री वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत हिस्सा विद्युत चलित वाहनों का होगा, जिनका निर्माण भी भारत में अधिक होगा। इस प्रकार, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत पहुंचने की प्रबल सम्भावना है।

वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 900 वाट ऊर्जा का उपयोग होता है जबकि यह आगे आने वाले समय में बढ़कर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1450 वाट ऊर्जा होने जा रहा है, क्योंकि भारत में 6 लाख से अधिक गावों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। हालांकि, फिर भी यह अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 9000 वाट ऊर्जा से बहुत कम ही रहने वाला है। परंतु, इसमें एक सिल्वर लाइनिंग जो दिखाई दे रही है वह यह है कि भारत में ऊर्जा के उपयोग में होने वाली वृद्धि का 70 प्रतिशत से अधिक भाग नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र से प्राप्त होने वाला है। अतः नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र में भारत में निवेश बहुत बड़ी मात्रा में होने जा रहा है, इसमें विदेशी निवेश भी शामिल है। इस कारण से भारत में जीवाश्म ऊर्जा की मांग कम होगी और कच्चे तेल (डीजल, पेट्रोल) की मांग भी कम होगी। इससे पर्यावरण में भी सुधार दृष्टिगोचर होगा। इसके साथ ही, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जो वर्तमान में 30-40 प्रतिशत जनसंख्या तक ही सीमित है वह आगे आने वाले समय में बढ़कर 60-70 प्रतिशत जनसंख्या तक हो जाएगी।

अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था और अमेरिका उत्पादों के उपभोग का मुख्य केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ेगा। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन जाएगा बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र भी बन जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है।

उक्त वर्णित कारणों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद  विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। इसी प्रकार, भारत का पूंजी बाजार भी अपने वर्तमान स्तर 3.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर पर 11 प्रतिशत की, चक्रवृद्धि की दर से, वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए अगले 10 वर्षों में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा। भारत में घरेलू मांग के लगातार मजबूत होने से एवं भारत में डिजिटल  क्रांति के कारण भारतीय नागरिकों की आय में बहुत अधिक वृद्धि होने की सम्भावना के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का पांचवा हिस्सा भारत से निकलेगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने जा रहा है। इन परिस्थितियों के बीच भारतीय नागरिक होने के नाते हमें भी कुछ दायित्वों का निर्वहन करना होगा ताकि भारत के आर्थिक विकास को और अधिक बल दिया जाकर इसे सुदृढ़ बनाया जा सके।

सबसे पहिले तो भारतीय नागरिक होने के नाते हमें अपने आप में नियमों का पालन करने की संस्कृति विकसित करनी होगी। “चलता है” के दृष्टिकोण को त्यागना अब जरूरी हो गया है। अमेरिका में, रात्रि 2 बजे भी, किसी भी दिशा से कोई वाहन न आने के बावजूद क्रॉसिंग लाल होने पर इसे कोई नागरिक पार नहीं करता है। भारत के नागरिकों में भी नियमों को पालन करने के संदर्भ में इस प्रकार की संस्कृति को विकसित किया जाना आवश्यक है।

भारत में गैरऔपचारीकृत अर्थव्यवस्था (इसे सामान्य भाषा में नम्बर दो की अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है) को समाप्त होना चाहिए। कभी यह समानांतर अर्थव्यवस्था हुआ करती थी। परंतु अब  धीरे धीरे गैरऔपचारीकृत अर्थव्यवस्था नियंत्रित हो रही है। बिल के साथ समान खरीदें, भले यह थोड़ा महंगा पड़े। यदि देश के समस्त नागरिक ईमानदारी से करों का भुगतान करने लगें तो ऐसा कहा जाता है कि आयकर की दर भारत में घटकर शायद 10 प्रतिशत तक नीचे आ जाए।

भारत में तेजी से विकसित हो रहे डिजिटलीकरण की व्यवस्था को समस्त नागरिक अपनाएं।    इससे मुद्रा प्रसार कम होगा, अधिक मुद्रा प्रसार से देश में मुद्रा स्फीति बढ़ती है। डिजिटलीकरण की व्यवस्था अपनाने से कर की चोरी रूकती है। अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होता है। साथ ही, रुपए को चलायमान रखने हेतु जो खर्च होता है, इसे बचाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार, रुपए की प्रिंटिंग लागत प्रतिवर्ष लगभग रुपए 15000 से 25000 करोड़ के बीच रहती है।

आम नागरिकों की बीच मुफ़्तखोरी की भावना जागृत करना देश के लिए भविष्य में बहुत भारी पड़ सकती है। श्रीलंका का उदाहरण हम सभी की सामने हैं। अतः थोड़ी परेशानी झेलकर भी टैक्स अदा करने की आदत डालें एवं मुफ़्तखोरी से बिल्कुल दूर रहना होगा।

खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान को रोकें। इससे मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगेगा एवं प्रकृति के बहुमूल्य स्त्रोत बचाए जा सकेंगे। वैसे भी हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार हमें प्रकृति का दोहन करना चाहिए, शोषण नहीं। प्रकृति से जितना आवश्यकता है केवल उतना ही लें। आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु स्वदेशी अपनाना अब आवश्यक हो गया है। इससे विभिन्न पदार्थों के आयात में कमी लाई जा सकेगी।  इसके लिए, भारतीय नागरिकों को अपनी सोच में गुणात्मक परिवर्तन लाना होंगे एवं निम्न गुणवत्ता वाले सस्ते विदेशी उत्पाद खरीदना अब बंद करना होगा। भारत में निर्मित उत्पाद चाहे वह थोड़े महंगे ही क्यों न हो, ही खरीदें। उत्पाद की जितनी आवश्यकता है उतना ही खरीदें। हमें वैश्विक बाजारीकरण की मान्यताओं को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति महान रही है और आगे भी रहेगी। हमारी संस्कृति के अनुसार धर्म, कर्म एवं अर्थ, सम्बंधी कार्य मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। अतः अर्थ के क्षेत्र में भी धर्म का पालन करना आवश्यक है।

कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होना बहुत आवश्यक है। इससे राजकोषीय घाटा कम होकर इसका दृढ़ीकरण होगा। 500 एवं 1000 रुपए के नोटों का विमुद्रीकरण भी इसी उद्देश्य से किया गया था। पाकिस्तान से नेपाल के रास्ते नकली नोट बहुत बड़ी मात्रा में भारत में लाए जा रहे थे और भारतीय अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने का बहुत बड़ा षड्यंत्र समाप्त किया गया था।

नागरिकों में स्व का भाव जगा कर, उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करना भी आवश्यक है। इससे आर्थिक गतिविधियों को देशहित में करने की इच्छा शक्ति  नागरिकों में जागृत होगी और देश के विकास में प्रबल तेजी दृष्टिगोचर होगी। इस प्रकार का कार्य सफलतापूर्वक जापान, ब्रिटेन, इजराईल एवं जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध (1945) के पश्चात किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वर्ष 1925 में, अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय नागरिकों में स्व का भाव जगाने का लगातार प्रयास कर रहा है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक माननीय डॉक्टर मोहन भागवत जी ने कहा था कि दुनिया विभिन्न क्षेत्रों में आ रही समस्याओं के हल हेतु कई कारणों से अब भारत की ओर बहुत उम्मीद भारी नजरों से देख रही है। यह सब भारतीय नागरिकों में स्व के भाव के जगने के कारण सम्भव हो रहा है और अब समय आ गया है कि भारत के नागरिकों में स्व के भाव का बड़े स्तर पर अवलंबन किया जाय क्योंकि हमारा अस्तित्व ही भारतीयतता के स्व के कारण है।

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