देहरादून: हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. स्वास्थ्य दिवस मनाने की वजह जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं के बारे में जागरुक करना है. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है. वर्तमान समय में प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति काफी अधिक दयनीय है. वर्तमान में ना सिर्फ प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों के अस्पतालों के हालात खराब हैं बल्कि कई ऐसे जिले हैं जहां अभी तक मेडिकल कॉलेज खोलने का सपना भी साकार नहीं हो पाया है. विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आइये उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की धरातलीय स्थिति जानते हैं.
उत्तराखंड में साल 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की दस्तक के बाद, स्वास्थ्य सुविधाएं काफी बेहतर हुई हैं. राज्य गठन के बाद से स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतरी की बात करें तो साल 2020 के बाद स्वास्थ्य विभाग में काफी आमूलचूल परिवर्तन देखा गया, लेकिन अभी भी प्रदेश के तमाम क्षेत्र ऐसे हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. जहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. जिसके लिए सरकार एक्शन मोड में काम कर रही है.
प्रदेश के सुदूर क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने के लिए राज्य सरकार काम कर रही है. स्वास्थ्य विभाग निरंतर इस पर काम कर रहा है. तमाम क्षेत्रों का आकलन कर स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने का काम किया जा रहा है.पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
7 अप्रैल को मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य दिवस: वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाता है. दरअसल, 7 अप्रैल 1948 में दुनिया के तमाम देश एक साथ मिलकर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के साथ ही हर वर्ग के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मिले इसके लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का गठन किया गया. इसके 2 साल बाद 1950 में डब्ल्यूएचओ की स्थापना दिवस को वर्ल्ड हेल्थ डे के रूप में मनाया गया. जिसके बाद हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य का मतलब है कि किस तरह से दुनिया भर के लोगों को लंबा और स्वस्थ जीवन जीने में मदद की जा सके. इसके साथ ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई दवाइयों की नई, नए टीके बनाने के साथ ही आम लोगों के बीच स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता बढ़ाना भी डब्ल्यूएचओ की प्राथमिकता है.
हर साल तय होती है विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम: विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाए जाने के लिए अलग-अलग थीम का ऐलान करता है. साल 2023 में विश्व स्वास्थ्य दिवस को ‘हेल्थ फॉर ऑल’ थीम के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. जिसका मतलब है स्वास्थ्य सुविधा मानव जीवन का एक बुनियादी अधिकार है, लिहाजा सभी लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए. वहीं, उत्तराखंड सरकार विश्व स्वास्थ्य दिवस को ‘ईट राइट कैंपन’ के रूप में माना रही है. जिसके तहत लोगों को ‘ईट राइट’ के प्रति न सिर्फ जागरूक किया जाएगा बल्कि प्रदेश भर में खाद्य पदार्थों होने वाले मिलावटखोरों के खिलाफ कैंपेन को तेज किया जाएगा.
खाद्य पदार्थों में मिलावट के खिलाफ अभियान होगा तेज: स्वास्थ्य सचिव डॉ राजेश कुमार ने बताया उत्तराखंड में विश्व स्वास्थ्य दिवस को ‘ईट राइट कैंपेन’ चला रहा है. अभी तक प्रदेश में खाद्य पदार्थों में हो रहे मिलावटखोरों के खिलाफ समय-समय पर अभियान चलते रहें हैं, लेकिन, विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर प्रदेश भर में मिलावटखोरों के खिलाफ चल रहे ड्राइव को और अधिक तेज किया जाएगा. साथ ही जहां-जहां से शिकायत प्राप्त होगी उन जगहों पर छापेमारी के साथ ही विभाग अपने स्तर से तमाम जगहों पर भी छापेमारी का काम करेगा. वर्तमान समय में विभाग का ‘ईट राइट’ पर फोकस है. इसके प्रति लोगों को जागरूक किया जा सकेगा.
प्रदेश में बढ़ेगी मेडिकल कॉलेजों की संख्या: उत्तराखंड में वर्तमान समय में 4 मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं. उत्तराखंड सरकार प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी मेडिकल कॉलेज खोले जाने की रणनीति तैयार कर चुकी है. हरिद्वार में जल्द ही मेडिकल कॉलेज पूरी तरह से तैयार हो जाएगा. जिसका निर्माण कार्य 50 फीसदी पूरा हो गया है. इसे पूरा करने के लिए 2024 का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. जल्द ही इसका निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा. इसके अलावा रुद्रपुर मेडिकल कॉलेज के लिए वर्तमान समय में टेंडर प्रक्रिया चल रही है. प्रदेश के कई जगह पर और मेडिकल कॉलेज खोले जाने के भी निर्णय लिए गए हैं. जिस पर भविष्य में काम किए जाएंगे.
प्रदेश भर में आयोजित की जाएगी गोष्ठी: विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने कहा स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किए जाने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर किए जाने की कवायद सरकार समय-समय पर करती रहती है. विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर प्रदेश भर के सभी अस्पतालों में गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा. जिसमें विचार विमर्श किया जाएगा, ताकि किस तरह से हर वर्ग के लोगों के साथ ही प्रदेश के सुदूर क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाया जा सके. इसके अलावा प्रदेश भर में जन जागरूकता रैली भी निकाली जाएगी. जिससे लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा सके.
अस्पतालों में बढ़ाई जाती है बेड्स की संख्या: उत्तराखंड के कई पर्वतीय जिले ऐसे हैं जहां अन्य जिलों के मुकाबले बेडों की संख्या काफी कम है. जिस पर राज्य सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. कई बार पर्वतीय क्षेत्रों पर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मरीजों की जान तक चली जाती है. प्रदेश में बेडों की संख्या बढ़ाए जाने के सवाल पर स्वास्थ्य सचिव डॉ राजेश कुमार ने कहा वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की दस्तक के बाद प्रदेश में हेल्थ सिस्टम अपग्रेडेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर टेंपरिंग पर विशेष ध्यान दिया गया है. जिसके तहत प्रदेश के सभी पीएससी, सीएससी और जिला अस्पतालो में पर्याप्त बेडों की व्यवस्था की गई है. वर्तमान समय में सभी अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. जरूरत पड़ने पर बेडों की संख्या भी बढ़ाई जाती है.
अल्ट्रासाउंड के लिए मरीजों को मिलती है एक-एक महीने की वेटिंग: उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल इससे ही खुलती नजर आती है कि जब गर्भवती महिलाओं और मरीजों लोगों को अल्ट्रासाउंड के लिए एक- एक महीने का लंबा इंतजार करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि अल्ट्रासाउंड मशीनों की कमी के चलते ऐसा हो रहा है बल्कि रेडियोलॉजिस्ट की कमी और मरीजों के भारी दबाव के चलते मरीजों को एक एक महीने बाद अल्ट्रासाउंड डेट दी जाती है. यही नहीं, दून चिकित्सालय के साथ ही देहरादून के ही कई ऐसे अस्पताल हैं जहां लोगों को अल्ट्रासाउंड कराने के लिए काफी दिक्कतें हो रही हैं. ऐसे में इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब देहरादून में यह स्थिति है तो प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों की क्या स्थिति होगी?
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकी: उत्तराखंड सरकार, प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने का दावा हमेशा से ही करती रही है, लेकिन, धरातल पर स्थिति कुछ और ही नजर आती है. वर्तमान समय की बात करें तो जहां एक और राज्य सरकार प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने का दावा कर रही है. वहीं, दूसरी ओर आज स्थिति यह है कि अस्पतालों में मरीजों को डॉक्टरों की कमी के चलते काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. यह स्थिति सिर्फ प्रदेश के दूरस्थ और पर्वतीय क्षेत्रों की नहीं है बल्कि मैदानी जिलों में भी यही हाल हैं.
डॉक्टरों को उनकी अहमियत समझाने की जरूरत: उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों से कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें डॉक्टर शराब के नशे में धुत या तो मरीजों और तमीरदारों से बदतमीजी करते नजर आए हैं. फिर अस्पताल में शराब पीकर, मरीजों का इलाज करते दिखाई दिए हैं. यह मामला किसी एक जिले का एक अस्पताल का नहीं है बल्कि पिछले एक साल के भीतर दर्जनभर मामले ऐसे सामने आ चुके हैं. स्वास्थ्य विभाग इन मामले को गंभीरता से लेते हुए इन डॉक्टर्स को निलंबित तो कर देता है, बावजूद इसके इस तरह के मामले प्रदेश में थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. ऐसे में डॉक्टरों को उनकी अहमियत समझाने की जरूरत है.