पदम को ठीक से यह याद नहीं है कि उन्होंने अपने होटल के लिए हाथियों को रखना कब शुरू किया था, लेकिन उन्होंने बताया कि पर्यटक नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में हाथी की सवारी करने के लिए अच्छा भुगतान करते हैं।
मार्च, 2020 तक पदम के दोनों हाथी सुबह से लेकर शाम तक पर्यटकों को जंगल की सैर कराने में व्यस्त रहते थे, लेकिन दुनिया भर में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के फैलने के बाद से यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिए गए, जिससे नेपाल के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में एक चितवन राष्ट्रीय उद्यान वीरान हो गया। हालांकि, नेपाल की सरकार ने अब ज्यादातर यात्रा प्रतिबंध हटा दिए हैं, लेकिन चितवन क्षेत्र में पदम जैसे अन्य होटल व्यवसायियों का काम अब भी 50 फीसदी से भी कम ही चल रहा है।
कैद कर रखे गए एशियाई हाथियों का इस्तेमाल पर्यटकों को सवारी कराने, शादी में बारात और मंदिर के समारोह के लिए किया जाता है। यह बेहद विवादास्पद चलन है। लंबे समय तक जीवित रहने वाले जानवरों को जंगल से पकड़ कर लाया जाता है, फिर पालतू बनाने के लिए इन जानवरों के साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया जाता है।
फरवरी, 2021 में पदम ने अपना एक हाथी करीब 66.96 लाख नेपाली रुपयों (करीब 56,000 अमेरिकी डॉलर ) में भारत के एक व्यापारी को बेच दिया। उन्हें उम्मीद है कि एक हाथी बेचने से उनके होटल की मासिक लागत में कम से कम 1,000 अमेरिकी डॉलर की कमी आएगी, जोकि हाथी के भोजन और महावत को देने पर खर्च होती थी।
एक अन्य होटल व्यवसायी बिशाल जो हाथी मालिकों के संगठन का नेतृत्व करते हैं, का कहना है कि समूह के सदस्यों ने 2021 में कम से कम 20 हाथियों को भारतीय व्यापारियों को बेच दिया। उनके पास अब केवल 35 हाथी हैं, जो दो दशक पहले संगठन बनाए जाने से लेकर अब तक की अवधि में सबसे कम संख्या है।
नेपाल और भारत दोनों वैश्विक समझौता ‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन’ (CITES) के हस्ताक्षरकर्ता हैं। एशियाई हाथियों को समझौते में परिशिष्ठ-I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है। इसमें उन प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाता है, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं, जो व्यापार से प्रभावित हो सकती हैं। परिशिष्ठ-I के अंतर्गत सूचीबद्ध जानवरों को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए आयात करने की अनुमति नहीं है ताकि उनका अस्तित्व और अधिक खतरे में न डाला जाए।
सीआईटीईएस क्या है ?
‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन ‘ (सीआईटीईएस) एक समझौता है। वर्ष 1973 में सीआईटीईएस को लेकर सहमति बनी और 1975 से इसे लागू किया गया। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जंगली जानवरों और पौधो की विलुप्त प्राय प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो।
सीआईटीईएस में प्रजातियों को उनकी संकटग्रस्त स्थिति के आधार पर विभिन्न परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया जाता है और उनके अस्तिव को बचाने के लिए व्यापार करने के दिशानिर्देश निर्धारित किए जाते हैं। इस समझौते में परिशिष्ठ-I के अंतर्गत सूचीबद्ध वन्यजीव और वनस्पतियों की प्रजातियों के व्यापार पर पाबंदी है। जबकि परिशिष्ठ-II के अंतर्गत सूचीबद्ध वन्यजीव और वनस्पतियों की प्रजातियों का कानून अनुमति लेकर व्यापार किया जा सकता है। हालांकि, वन्यजीव और वनस्पतियों की कई सारी प्रजातियों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया जा रहा है, जो अभी तक इस समझौते के दायरे से बाहर हैं।
सीआईटीईएस के नियम के मुताबिक, परिशिष्ठ-I में सूचीबद्ध वन्यजीव और वनस्पतियों की प्रजातियों को छोड़कर बाकी को एक देश से दूसरे देश में लाया जा सकता है। सीआईटीईएस निर्यात वैज्ञानिक प्राधिकरण ने सलाह दी कि निर्यात, प्रजातियों के अस्तित्व के लिए हानिकारक नहीं होगा। हालांकि इसके लिए सीआईटीईएस प्राधिकरण पहले पूरी संतुष्टि करता है कि जानवरों को किस उद्देश्य से निर्यात किया जा रहा है, जहां निर्यात किया जा रहा है, वहां उनके जीवन को खतरा तो नहीं है। वहां उनके रहने खाने की पूरी व्यवस्था है या नहीं और निर्यात प्रक्रिया में कानून का उल्लंघन तो नहीं किया जा रहा है। इसके बाद ही प्राधिकरण निर्यात परमिट जारी करता है।
सीआईटीईएस को लागू करने के लिए नेपाल सरकार ने वर्ष 2017 में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अधिनियम पेश किया। इस अधिनियम में कहा गया कि वे जंगली जीव और वनस्पति जो विलुप्त होने के कगार पर हैं, कोई भी व्यक्ति उनकी खरीद, बिक्री, इस्तेमाल, नस्लबंदी और आयात-निर्यात नहीं करेगा ताकि ये प्रजातियां विलुप्त न हो जाएं। सीआईटीईएस समझौते में परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध जंगली जीव और वनस्पति की विलुप्त के आयात और निर्यात पर प्रतिबंध है।
वर्ष 2019 में सरकार ने अधिनियम को लागू करने को लेकर नियम प्रकाशित किए। विनियमों की धारा 2 में कहा गया कि ऐसी प्रजातियों या उनके भागों में व्यापार करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को विभिन्न वैधानिक दायित्वों को पूरा करना चाहिए और सरकार से परमिट प्राप्त करना चाहिए।
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जीवित हाथियों की सीमा पार हुई बिक्री में इनमें से किसी भी नियम का पालन किया गया है। राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग के प्रवक्ता हरि भद्रा आचार्य और अधिनियम को लागू करने के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसी का कहना है कि अभी तक किसी ने मंजूरी नहीं ली है।
पूर्ण रूप से अवैध व्यापार
वरिष्ठ वकील प्रकाश मणि शर्मा ने कहा कि जानवरों का व्यापार पूरी तरह अवैध है और इसे रोकने की जिम्मेदारी सरकार की है। प्रवक्ता हरि भद्रा आचार्य ने कहा कि विभाग ने कुछ नहीं किया क्योंकि इस व्यापार के बारे में औपचारिक रूप से जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने आगे कहा कि फिर भी उन्होंने इन गतिविधियों के बारे में सुना है और जानवरों की बिक्री साबित होने पर आवश्यक कार्रवाई की जरूर जाएगी।
आचार्य ने यह भी कहा कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों को इस मुद्दे की निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन उद्यान के सूचना अधिकारी लोकेंद्र अधिकारी का कहना है कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान ने इस बारे में कुछ नहीं किया है।
Thethirdpole ने चितवन के मुख्य जिला अधिकारी प्रेम लाल लमिछाने से संपर्क किया और पूछा क्या उन्होंने व्यापार को रोकने के लिए कोई पहल की है? एक हाथी को भारत में बेचे जाने की जानकारी दो दिन बाद सोशल मीडिया पर आई और उसके एक दिन बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया में छा गया। इस पर, मुख्य जिला अधिकारी प्रेम लाल लमिछाने ने कहा, ”हमने खबरों की पुष्टि करने की कोशिश की कि क्या चल रहा है, लेकिन हमें बताया गया कि कुछ भी नया नहीं है। इसलिए हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते।”
वरिष्ठ वकील शर्मा ने कहा कि यदि आप एक कानून बनाते हैं, लेकिन इसे लागू करने में विफल रहते हैं, तो इसका कोई अर्थ नहीं है। कानून को लागू करने में राज्य विफल रहा इससे पता चलता है कि दोनों (सरकार और व्यापारियों) के बीच बड़ी सांठगांठ है। वे उस अंतरराष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन कर रहे हैं, जिसके हम हस्ताक्षरकर्ता हैं।
बंदी हाथियों का पूरा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं
वर्ष 2019 के नियमों में यह भी कहा गया है कि लुप्तप्राय पशु को बंदी कर रखने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यवसाय का संबंधित सरकारी एजेंसी के साथ पंजीकृत होना अनिवार्य है अन्यथा बंदी बनाकर रखे गए जानवर को जब्त कर लिया जाएगा। हालांकि, अभी तक किसी ने भी पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं किया है और न ही किसी हाथी को जब्त किया गया है।
नेपाल में सरकार के पास बंदी हाथियों की संख्या का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। वर्ष 2016 में सीआईटीईएस की समीक्षा के मुताबिक, हाथियों की संख्या 216 है, जिनमें से आधे सरकारी प्रबंधन के अंतर्गत रखे गए हैं और बाकी निजी व्यवसायियों के पास होने का अनुमान लगाया गया। चितवन नेशनल पार्क के बाहर सौराहा और अमलताड़ी कस्बों में लगभग 80 फीसदी हाथियों के निजी तौर पर रखे जाने अनुमान है।
पार्क अधिकारियों ने हाथी विक्रेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन पिछले साल उन्होंने क्षेत्र में बंदी हाथियों की संख्या दर्ज करनी शुरू कर दी। सूचना अधिकारी के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत में सौराहा, अमलतारी और कसारा में होटल व्यवसायियों के पास 65 हाथियों थे। होटल व्यवसायी ऋषि तिवारी ने अनुमान लगाया कि पिछले वर्ष की तुलना में हाथियों की संख्या लगभग 80 फीसदी है। इसका मतलब यह हुआ कि पिछले तीन महीनों में क्षेत्र के सभी हाथियों का एक चौथाई हिस्सा भारतीय व्यापारियों को बेच दिया गया है।
चितवन में प्रकृति एवं जैव विविधता संरक्षण केंद्र के राष्ट्रीय ट्रस्ट में वन्यजीव पशु चिकित्सक अमीर सदाला पिछले पांच सालों से पशु व्यापार की निगरानी कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे पहले उन्होंने एक साल के भीतर ज्यादा से ज्यादा तीन हाथियों को बेचा गया, वो भी नेपाल के अंदर। उन्होंने कहा कि जब हाथियों से मुनाफा होना बंद हो जाता था, तो व्यवसायी उन्हें बेच देते हैं, लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था।
अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन ‘एलिफेंट एड इंटरनेशनल’ की संस्थापक कैरोल बकले ने इसे पलायन बताया। वे कहती हैं कि एक साल से महामारी का कहर जारी है, लेकिन अब बाजार में खरीदार मौजूद हैं। वे जो भुगतान करते हैं, वह बहुत ज्यादा होता है और हमेशा नकदी में होता है।
अनिश्चितता के चलते जानवरों की बिक्री
पशु अधिकार कार्यकर्ता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि भारत में हाथी किस तरह का जीवन जिएंगे। चितवन में पशु अधिकार कार्यकर्ता सूरज श्रेष्ठ ने गौर फरमाया कि भारत में बंदी हाथियों का धार्मिक कार्यों और यहां तक कि रैलियों में भी उपयोग किया जाता है।
एलिफेंट एड इंटरनेशनल की संस्थापक कैरोल बकले को संदेह है कि इन हाथियों को भारत में या इससे आगे भी कहीं या शायद फिर से नेपाल में बेचा जा सकता है। हाथी बेचने वालों को अब यह नहीं पता कि जानवरों को कहां ले जाया जा रहा है। ज्यादातर भारतीय व्यापारी नेपाली बिचौलियों के माध्यम से खरीद फरोख्त करते हैं।
भारतीय सीमा के पास के शहर बीरगंज में एक बिचौलिए ने पदम से कहा कि वह जिस हाथी को बेच रहा है, उसे स्थानीय जमींदार के घर ले जाया जाएगा। पदम कहता है, मेरा मनाना है कि हाथी की देखभाल अब बेहतर तरीके से हो सकेगी और बेहतर खा सकता है।
जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक एनजीओ एसोसिएशन मो का कहना है कि इस चित्र में दिख रहे हाथी को नेपाल में चितवन नेशनल पार्क के पास सौराहा में मार्च, 2021 में भारत को बेंच दिया गया है। [Image by: Association Moey]
एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ की स्टेट एसोसिएशन मो ने अपनी फेसबुक पोस्ट में चितवन में कैद कर रखे गए हाथियों को आजादी के प्रयास के बारे में लिखा। मो ने कहा कि कुछ लोग इसे अच्छी बात समझ सकते हैं, लेकिन यह केवल हाथियों की पीड़ा को हमारी आंखों से दूर कहीं और स्थानांतरित करता है। वे प्रतिदिन मंदिरों, शादियों, जंजीरों और प्रतिष्ठा की वस्तुओं के तौर अकेलपन, दुर्व्यवहार और बुरी परिस्थितियों को सहन करेंगे।
पर्यटकों के लिए हाथी की सवारी का प्रचार किया जाता है। वन्यजीव शोधकर्ता अशोक राम का कहना है कि इससे एक मतभेद पैदा होता है। कार्यकर्ताओं की ओर से हाथी की सवारी का विरोध करने पर होटल मालिकों को लगता है कि वे अब जानवर से और नहीं कमा सकेंगे। मनुष्य के द्वारा हाथी का इस्तेमाल प्राचीन काल से होता आया है। होटल व्यवसायी बिशाल का तर्क है कि लोगों के साथ ही जानवरों के हितों को पूरा करने के लिए कानूनों को संशोधित किया जाना चाहिए।
कैरोल बकले और सूरज श्रेष्ठ जैसे कार्यकर्ता का मानना है कि हाथी को सवारी और अन्य गतिविधियों के लिए तैयार करने के लिए उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना गलत है। श्रेष्ठ का कहना है कि सरकार को चितवन में एक हाथी अभयारण्य स्थापित करना चाहिए, सभी बंदी हाथियों का अधिग्रहण करना चाहिए और उन्हें वहां मुक्त करना चाहिए। उनका मानना है कि शहर अब भी पर्यटकों को आकर्षित करके हाथियों से लाभान्वित हो सकते हैं, जिससे राजस्व पैदा होगा और मॉडल संरक्षण परियोजना के रूप में अभयारण्य को बढ़ावा मिलेगा।
टूर ऑपरेटर और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के बीच फंसे राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग के प्रवक्ता हरि भद्रा आचार्य ने कानून लागू करने में विफल रहने के लिए कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन को अपनी मजबूरी बताया।
संपादक का नोट: कुछ सूत्रों के नाम बदल दिये गये हैं।