नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण के बाद यूपी में छोटे दलों की जमीनी पकड़ की परीक्षा शुरू हो गई है। इसमें अपना दल (K), अपना दल (S), निषाद पार्टी, सुभासपा, जनसत्ता दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख हैं। निषाद पार्टी, अपना दल (S) और सुभासपा NDA में हैं तो अपना दल (K) का ओवैसी के साथ गठबंधन है। जन अधिकार पार्टी के मुखिया बाबू सिंह कुशवाहा खुद सपा के टिकट पर जौनपुर से मैदान में हैं, तो स्वामी प्रसाद मौर्य एकला चलो की राह पर हैं। इस चुनाव में राजा भैया का जनसत्ता दल अब तक ‘मौन’ है। असल में अब पता चलेगा कि बयानबाजी के बीच किसमें कितना दम है।
सुभासपा वाले बयानवीर ओमप्रकाश राजभर
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री और सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर अति पिछड़ों की राजनीति करते हैं। हरदोई और सीतापुर से लेकर पूर्वांचल के छोर तक अपनी जमीनी ताकत का दावा करने वाले राजभर पिछला विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिल कर लड़े थे और छह सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा से गठबंधन के तहत उनके बेटे अरविंद राजभर घोसी सीट से लोकसभा प्रत्याशी हैं। वैसे, घोसी में मतदान तो सातवें चरण में है, लेकिन राजभर की जनाधार वाली सीटों पर मतदान चौथे चरण से शुरू हो जाएगा।
निषाद पार्टी फैमिली की ताकत का चुनाव
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल यानी निषाद पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव से NDA में है। पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद योगी सरकार में मंत्री हैं और उनके बेटे प्रवीण निषाद संतकबीर नगर से भाजपा के सांसद हैं। वह इस बार भी प्रवीण भाजपा के सिंबल पर ही संत कबीरनगर से मैदान में हैं। निषाद वोट बैंक पर आधारित निषाद पार्टी का पूर्वी यूपी की करीब 20 लोकसभा सीटों पर प्रभाव माना जाता है। इन सीटों पर 12% से 20% तक की आबादी मल्लाह, केवट और निषाद की है। ऐसे में निषाद पार्टी पर प्रवीण को जिताने के साथ अन्य सीटों पर भाजपा को अपना वोट दिलाने की भी चुनौती है।
मोदी की मंत्री अनुप्रिया पटेल का अपना दल (S)
अपना दल (S) 2014 के लोकसभा चुनाव से NDA में हैं। 2014 और 2019 में भाजपा ने पार्टी को यूपी में दो-दो सीटें दीं और दोनों सीटों पर जीत भी मिली। हालांकि, इन दस साल में पार्टी में फूट पड़ी और अनुप्रिया पटेल ने अलग होकर अपना दल (S) बना लिया। S मतलब- सोनेलाल। इस बार भी NDA ने गठबंधन के तहत अपना दल (S) को दो सीटें (मीरजापुर और रॉबर्ट्सगंज) दी हैं। पिछड़ा वर्ग की जातियों, खासकर कुर्मियों में मजबूत पकड़ रखने वाले अपना दल (S) के लिए भी चौथे चरण के बाद NDA प्रत्याशियों के पक्ष में मजबूती से वोट करवाना बड़ी परीक्षा होगी।
स्वामी प्रसाद मौर्य की शोषित समाज पार्टी
शोषित समाज पार्टी का गठन करने वाले पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा में रहकर लड़े। वह 2017 में यूपी में मंत्री बने और 2019 में बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा से सांसद। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा से किनारा कर सपा में चले गए। दलितों और पिछड़ों में पैठ रखने वाले स्वामी की सपा में भी नहीं पटी, तो अपनी शोषित समाज पार्टी बना ली। उधर, भाजपा ने उनकी बेटी का भी टिकट काट दिया। अब स्वामी प्रसाद मौर्य एकला चलो के नारे के साथ कुशीनगर से चुनाव लड़ रहे हैं।
राजा भैया के जनसत्ता दल की खामोशी
उत्तर प्रदेश की सियासत में अहम धुरी रहने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया इस बार लोकसभा चुनाव में मौन हैं। उनकी अध्यक्षता वाले जनसत्ता दल ने ऐक्टिव लड़ाई से दूरी बनाई हुई है। उनकी पार्टी कौशांबी और प्रतापगढ़ में चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटी थी। लेकिन अब उनकी खामोशी सियासी गलियारों में बड़ी चुभ रही है। हाल ही में अमित शह के साथ हुई मुलाकात चर्चा के केंद्र में रही।
पटेल सियासत में पल्लवी का अपना दल (K)
अनुप्रिया के अलग होने के बाद मां कृष्णा पटेल के साथ पल्लवी पटेल ने अपना दल (K) बनाया। K मतलब कमेरावादी। 2022 का विधानसभा चुनाव पल्लवी सपा के सिंबल पर लड़ीं और जीतीं। लेकिन, पिछले राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में प्रत्याशियों के चयन को लेकर वह सपा से खिन्न हो गईं। सपा से किनारा कर अपना दल (K) ओवैसी की पार्टी AIMIM के साथ गठबंधन में है। यह गठबंधन दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक बहुल कई सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर चुका है। मूल वोट बैंक अपना दल (K) का भी वही है, जो अनुप्रिया के दल का है। ओवैसी के साथ आने से उन्हें मुस्लिम वोटों से काफी उम्मीद है।
जन अधिकार पार्टी वाले बाबू सिंह कुशवाहा
उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा ने 2016 में जन अधिकार पार्टी का गठन कर लिया था। इस बार के लोकसभा में उन्होंने पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र की 9 सीटों पर चुनाव लड़ने की हुंकार भरी थी। कुशवाहा समाज और ओबीसी वर्ग की राजनीति को आगे बढ़ा रहे बाबू सिंह समाजवादी पार्टी के सिंबल पर जौनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।