नई दिल्ली : चीन से लेकर अमेरिका और यूरोप तक इकोनॉमी को लेकर चिंता बनी हुई है. अमेरिका में जॉब और महंगाई के आंकड़ें जरूर कम हुए हैं, लेकिन सुधार अभी वैसा नहीं है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. यूरोपीय देशों में महंगाई में फिर से इजाफा देखने को मिल रहा है. जर्मन कंपनियां अब दूसरे देशों में प्रोडक्शन कर रही हैं, क्योंकि उन्हें फ्यूल की कीमतों का दबाव झेलना पड़ रहा है. चीन में जिस तरह के इकोनॉमिक इंडिकेटर्स सामने आ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि अभी भी वहां की सरकार को और काम करने की जरुरत है. ब्रिटेन की हालत भी काफी खराब है. मतलब साफ है कि पूर्व से पश्चिम तक सभी देशों के होश उड़े हुए हैं.
वहीं दूसरी ओर भारत की इकोनॉमी में पूरी तरह जोश देखने को मिल रहा है. पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़ें इस बात की गवाही दे रहे हैं. भारत का सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर देश की इकोनॉमी में अहम योगदान दे रहा है. जुलाई के महीने में भले ही महंगाई 15 महीनों के हाई पर पहुंच गई थी, लेकिन अगस्त के महीने में इसमें गिरावट देखने को मिल सकती है. इसका कारण है सब्जियों की कीमतों में कमी आना. आइए अमेरिका से लेकर चीन और यूरोप के इकोनॉमिक फैक्टर्स को समझने की कोशिश करते हैं.
अमेरिका में भी महंगाई का प्रेशर
कोर पर्सनल कंजंप्शन एक्सपेंडिचर प्राइस इंडेक्स जुलाई के महीने में लगातार दूसरे महीने 0.2 फीसदी बढ़ गया. महंगाई के आंकड़ें थोड़े नरम देखने को मिले हैं. जिसका अहम कारण बीते एक वर्ष से ज्यादा समय में ब्याज दरों में लगातार इजाफा करना है. उसके बाद भी महंगाई के आंकड़ें उस लेवल पर नहीं आ सके हैं, जो फेड का टारगेट है. अमेरिकी केंद्रीय बैंक महंगाई दर को 2 फीसदी पर लेकर आना चाहता है. दूसरी ओर फ्रेश जॉब डाटा से पता चलता है कि हायरिंग काफी स्ट्रांग हुई. इनकम ग्रोथ काफी स्लो हुई है. वर्कफोर्स आॅफिस की ओर लौटा है. पिछले दो महीने में पेरोल में गिराट के बाद अगस्त में इंप्लॉयर्स की ओर से 1,87000 जॉब एड की हैं.
यूरोप और ब्रिटेन की भी हालत खराब
दूसरी ओर यूरोप और ब्रिटेन की हालत काफी खराब देखने को मिली है. यूरोपीय देशों की बात करें तो महंगाई के आंकड़ों में फिर से इजाफा होना शुरू हो गया है. कंज्यूमर प्राइस एक साल पहले की तुलना में 5.3 फीसदी बढ़ें हैं जो पॉलिसी मेकर्स के टारगेट से ढाई गुना ज्यादा हैं. दूसरी ओर ब्रिटेन में भी हालत ठीक नहीं है. महंगाई में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है और बैंक आॅफ इंग्लैंड ब्याज दरों में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. दूसरी ओर यूरोप के सबसे देशों में शुमार जर्मनी की भी हालत काफी खस्ता देखने को मिल रही है. एनर्जी की कीमतों में तेजी की वजह से बिजनेस इंवेस्टमेंट में कटौती कर रहा है और विदेशों में प्रोडक्शन पर ध्यान लगा रहा है. सर्वे में शामिल आधे से अधिक कंपनियों का कहना है कि एनर्जी ट्रांजिशन का उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर नेगेटिव इंपैक्ट देखने को मिल रहा है.
मंदी में चीन की इकोनॉमी
दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी मंदी से बाहर निकलने का प्रयास कर रही है. वैसे अगस्त के महीने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में मामूली सुधार देखने को मिला है और नए ऑर्डर्स में भी इजाफा हुआ है. वैसे पीएमआई के आंकड़ें इतने बेहतर देखने को नहीं मिले हैं. प्रॉपर्टी मार्केट में गिरावट और कंज्यूमर एक्सपेंडिचर में गिरावट देखने को मिली है.
भारत की इकोनॉमी ने भरी रफ्तार
भारत की इकोनॉमी में जिस तरह का जोश देखने को मिल रहा है उसका अंदाजा पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों से साफ लगाया जा सकता है. ब्याज दरों में इजाफे के बाद भी सर्विस सेक्टर में तेजी देखने को मिल रही है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी धीमी ही सही रफ्तार पकड़े हुए हैं. सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर दोनों में जॉब स्थिति ठीक हुई है. जीएसटी कलेक्शन में इजाफा देखने को मिला. महंगाई को लेकर जरूर चिंता बनी हुई है, लेकिन आने वाले दिनों में इसमें भी सुधार आने की संभावना है.
उभरते देशों की इकोनॉमी
मेक्सिको की इकोनॉमी दूसरी तिमाही में पहले के अनुमान की तुलना में थोड़ी धीमी गति से बढ़ी है. देश को अमेरिका के साथ अपने ट्रेड और स्ट्रांग लेबर मार्केट से बेनिफिट हुआ है. दूसरी ओर जाम्बिया की महंगाई अगस्त में 16 महीने के हाई लेवल पर पहुंच गई है, जिसके एक सप्ताह बाद केंद्रीय बैंक ने प्राइस प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए लगातार तीसरी बार पॉलिसी रेट में इजाफा किया है. जिसके 2025 की पहली छमाही तक जारी रहने की भविष्यवाणी की गई है.