मानस मिश्र | यूपी में बिजली कटौती से हाहाकार मचा हुआ है. राजधानी लखनऊ के कई इलाकों में लोग हाथ के पंखे का सहारा लेकर रातें काट रहे हैं. उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी के दौरान ये नजारे नए नही हैं. 90 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था नौकरशाही से मुक्त होकर ब्रांड और चमकते बाजार की ओर बढ़ती चली गई. लेकिन यूपी का बिजली विभाग लालफीताशाही से कभी निजात नहीं पा सका.
ज्यादा पीछे न जाकर कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की सरकारों से बात शुरू करें तो वो जमाना भी याद आता है जब लोग उस समय शहरों की बिजली देखकर गांवों में बखान करते थे. जिन गांवों में बिजली पहुंच भी गई थी वहां शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता था. कभी भूल से शाम को बिजली आ भी जाती थी तो गांव को लोगों के लिए वह पल किसी त्योहार से कम न होता था. लेकिन उस दौर से आज तक कुछ भी नहीं बदला. सरकारें बदली रहीं, मुख्यमंत्री बदलते रहे और चुनावी घोषणा पत्रों में बिजली को लेकर बातें बदलती रहीं… लेकिन नहीं बदली तो सिर्फ एक बिजली…
21वीं सदी में बिजली को लेकर किए गए वादे उत्तर प्रदेश में नेताओं के लिए बड़ी उपलब्धि है. दीपावली, ईद, होली और नवरात्रि के दौरान बिजली कटौती न किए जाने के ऐलान की खबरें भी आज भी आती हैं. साल दर साल बिजली विभाग की हालत खराब होती चली जा रही है. कुछ साल पहले तो यूपी के गांवों के लिए एक रोस्टर जारी किया गया जिसमें एक हफ्ते दिन और एक हफ्ते रात में बिजली सप्लाई की व्यवस्था की गई.
अब आप सोच सकते हैं जिस सूबे से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं, जहां सबसे ज्यादा विधानसभा सीट हों, जहां राजनीतिक जुमला आम हो, ‘दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है’, वहां की जनता भीषण गर्मी में सरकारों की ऐसी कृपा भी देख चुकी है.
ऐसा नहीं है कि बिजली विभाग गर्मी से निपटने के लिए तैयारी नहीं करता है. ये तैयारी बीते 30-35 सालों से हर साल शुरू हो जाती है. बात अगर साल 2023 की करें तो 28 फरवरी को हिंदुस्तान टाइम्स में एक खबर छपी है जिसमें बताया गया है कि मुख्य सचिव दुर्गा शंकर बिजली विभाग के बड़े अधिकारियों के साथ बड़ी मीटिंग की है जिसमें उन्होंने आदेश दिया कि गर्मी की वजह से बिजली खपत बढ़ने को लेकर अपनी तैयारी पूरी रखें.
खबर के मुताबिक मुख्य सचिव ने अधिकारियों से कहा कि न सिर्फ अतिरिक्त बिजली और कोयले का इंतजाम रखा जाए बल्कि जरूरत के मुताबिक कर्मचारी और दूसरे सामानों की भी व्यवस्था रखी जाए. मीटिंग में अनुमान भी लगाया कि इस साल गर्मी में 28,000 मेगावाट तक डिमांड पहुंच जाएगी जो कि साल 2022 में 26 हजार मेगावाट थी. फरवरी में हुई मीटिंग का नतीजा कुछ नहीं निकला.
भीषण गर्मी को आज जनता झेल रही है. चिलचिलाती धूप में बिजली विभाग के सबसे छोटे कर्मचारी यानी लाइनमैन जगह-जगह टूटे हुए तारों और फुंके हुए ट्रांसफॉर्मरों को ठीक कर रहे हैं. दरअसल इस विभाग की सबसे बड़ी समस्या इन्फ्रास्ट्रक्चर के अपग्रेडेशन की है. दबी हुई जुबान से लाइनमैन भी बताते हैं कि बिजली घरों में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है. इलाके के जेई को पता होता है कि कहां पर तार बदले जाने हैं. लेकिन उसके लिए आया पैसा या तार कहां चला जाता है किसी को कुछ नहीं पता होता है.
वहीं उत्तर प्रदेश के बिजली मंत्री अरविंद कुमार शर्मा का कहना है कि गर्मी के चलते बिजली की मांग बहुत बढ़ गई है इसको पूरा करने की पूरी कोशिश की जा रही है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बिजली चोरी के खिलाफ भी अभियान चलाया जा रहा है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी सख्त आदेश दिया है कि 22 जून तक कोई भी पावर हाउस शटडाउन न ले.
इस मामले पर राज्य विद्युत उपभोक्ता के परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने चौंकाने वाली बातें बताई हैं. उन्होंने यूपी बिजली कटौती की भीषण मार के पीछे सरकारों के एजेंडे को दोषी बताया है.
अवधेश वर्मा ने बताया कि ये बात सही है कि बिजली का उत्पादन पिछले कई सालों की तुलना में बढ़ गया है. यूपी में बिजली की कमी नहीं है और ये पहली बार हुआ है. लेकिन पूरा सिस्टम ढह गया है. अवधेश शर्मा ने बताया 13 जून को 23:35 मिनट पर 27611 मेगावाट बिजली उपलब्ध थी. जिसका बंटवारा सभी पावर हाउस में किया गया था. लेकिन सिस्टम को अपग्रेड नहीं किया गया. जिसे अक्टूबर से लेकर जनवरी के बीच में किया जाना था जो कि नहीं हुआ.
अवधेश वर्मा ने और भी चौंकाने वाली जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि एबीसी नाम का एक कंडक्टर होता है जिस पर तार चढ़ाया जाता है. उसकी क्षमता सिर्फ 3 एसी झेलने की है जबकि आज शहरों में हर घर में एसी लगे हुए हैं. उन्होंने प्रदेश की राजधानी लखनऊ का हाल बताते हुए कहा कि इस शहर में 35/11 के सबस्टेशन 173 हैं और फीडर 172 हैं. हर फीडर की लंबाई 10 किलोमीटर है जबकि इसको और कम करने की जरूरत है और ये बातें बड़े अधिकारियों की संज्ञान में हैं.
राज्य विद्युत उपभोक्ता के परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने ये भी कहा कि गर्मी के मौसम में कभी प्लान्ड शटडाउन लिया ही नहीं जाता है ऐसे में सीएम योगी का ये कहना कि शटडाउन न लिया जाए समझ से परे है. उन्होंने कहा कि तकनीकी विभाग को चलाने के लिए तकनीकी पहलू को भी ध्यान देना चाहिए.
पावर सेक्टर में राजनीति का शिकार
अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार किसी की भी रही है पावर सेक्टर का इस्तेमाल हमेशा राजनीति के लिए किया जाता रहा है. उन्होंने कहा मौजूदा सरकार स्मार्ट मीटर पर जो दे रही है लेकिन उसका ध्यान सिस्टम को दुरुस्त करने में बिलकुल नहीं है. ‘पावर फॉर ऑल’ के पीछे सिर्फ राजनीति है. इस अभियान के चलते काम की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है.
इसके साथ ही अखिलेश सरकार के कार्यकाल में ललितपुर में बनाए गए पावर प्लांट पर भी सवाल उठाए. उन्होंने बताया कि एक निजी कंपनी के इस पावर प्लांट से महंगी बिजली ली जा रही है. सवाल इस बात का है जब ललितपुर में कोयला है नहीं तो वहां इस प्लांट को लगाने की क्या जरूरत थी. उन्होंने कहा कि मायावती ने गरीबों को सस्ती बिजली देने की शुरुआत की लेकिन उनकी सरकार ने सप्लाई बढ़ाने पर काम नहीं किया
नतीजा ये रहा कि यूपी के पावर सेक्टर का 1 घाटा लाख करोड़ तक पहुंच गया. वर्मा ने विदेशों से कोयला खरीदने और स्मार्ट मीटर लगाने की बातों पर भी कई गंभीर सवाल उठाए.
महाराष्ट्र के बाद यूपी दूसरे नंबर पर
यूपी में बिजली कटौती के मुद्दे पर इंडिया पावर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंन्द्र दुबे ने एबीपी न्यूज को फोन पर बातचीच में हैरान करने वाली जानकारी दी. उन्होंने कहा कि 27615 मेगावाट बिजली की डिमांड 14 जून की रात 11 बजे थी जो कि अब तक सबसे ज्यादा है. लेकिन आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है.
दुबे ने बताया कि बिजली के मामले में यूपी के साथ एक नहीं कई दुर्भाग्य हैं. इतना बड़ा प्रदेश होने के बावजूद ये राज्य सिर्फ 4 हजार मेगावाट बिजली पैदा करता है. प्राइवेट सेक्टर को मिला दें तो 10 हजार मेगावाट तक पहुंच बिजली पैदा होती है. जबकि बाकी 16 हजार मेगावाट बिजली दूसरे राज्यों या एनटीपीसी जैसे संस्थानों से खरीदा जाता है.
दूसरा बड़ा दुर्भाग्य है कि ट्रांसमिशन की क्षमता का. अगर डिमांड 27 हजार मेगावाट से ज्यादा तक पहुंच रही है तो ट्रांसमिशन की क्षमता 32 हजार मेगावाट तक होनी चाहिए. लेकिन इससे बहुत कम है. अब एसी भी किश्तों में मिल रहे हैं.
ओवरलोडिंग इतनी ज्यादा है कि सिस्टम बार-बार बैठ जाता है जिसकी वजह से बिजली कट जा रही है. शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि अगस्त-सितंबर तक बिजली की डिमांड 28 हजार मेगावाट से पार जाने वाली है. दुबे ने बताया कि यूपी के बिजली विभाग में कर्मचारियों की बहुत बड़ी कमी है. अभी 4 हजार रेग्युलर कर्मचारी हैं जबकि 64 हजार कर्मचारी आउटसोर्स किए गए हैं. ऐसे में सवाल इस बात का है इस व्यवस्था में गुणवत्ता वाला काम कैसे हो.