नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में पांच चरण के मतदान के बाद अब लड़ाई उस पूर्वांचल की तरफ बढ़ चुकी है जहां से खुद नरेन्द्र मोदी बतौर उम्मीदवार मैदान में हैं। बनारस सहित पूर्वांचल की 27 सीटों पर आगामी दो चरणों में मतदान होना है। ऐसा माना जाता है कि जो भी दल या गठबंधन पूर्वांचल में बढ़त हासिल करता है, उसकी सरकार बनने की संभावना मजबूत होती है।
यह वर्ष 2014 के बाद पहला चुनाव है, जिसमें कोई भी लहर नजर नहीं आ रही है। इसी इलाके में राम मंदिर निर्माण के बाद भी ध्रुवीकरण जैसा उद्वेग कहीं नजर नहीं आ रहा है। मतदाता भी चुनाव को लेकर उत्साहित नहीं है, इसलिए पूर्वांचल में कोई बड़ा उलटफेर हो जाएगा, इसकी संभावना नहीं है।
लोकसभा चुनाव 2024
यूपी में हुए अब तक के मतदान में दोनों गठबंधन अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। यूपी में हुए अब तक के मतदान के समीकरण और ट्रेंड को देखें तो भाजपा बढ़त पर है, लेकिन उसे 2019 के मुकाबले कई सीटों पर स्थानीय प्रत्याशियों से नाराजगी के चलते नुकसान होता दिख रहा है। हालांकि यह नुकसान इतना बड़ा नहीं है कि सत्ता का समीकरण बदल दे, लेकिन ऐसा लगता है कि जनता मोदी के नाम पर अब किसी को भी जिताने के लिए तैयार नहीं है। यह मतदान प्रतिशत से स्पष्ट दिख रहा है।
मोदी और अमित शाह भी स्थिति को भांप चुके हैं, लिहाजा दोनों नेताओं ने पूर्वांचल में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। पूर्वांचल के दो चरणों में भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी, सुभासपा और अपना दल की क्षमता का भी टेस्ट होना है। पूर्वांचल की 27 सीटों पर पिछड़े मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है, जिसमें यादव, कुर्मी, राजभर जैसी जातियां शामिल हैं। भाजपा को केशवदेव मौर्य की पार्टी महान दल ने भी समर्थन दे दिया है, जो भाजपा के लिए राहत की बात है। पूर्वांचल में 50 फीसदी से ज्यादा पिछड़े मतदाता हैं, जो दोनों गठबंधनों के भाग्य का फैसला करेंगे।
इस बार भी भाजपा के लिए पूर्वांचल को साध पाना आसान नहीं है। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा झटका पूर्वांचल में ही लगा था। अंबेडकरनगर, आजमगढ़, श्रावस्ती, जौनपुर, गाजीपुर, लालगंज तथा घोसी में उसे हार का सामना करना पड़ा था। इस बार इन सीटों के अलावा पूर्वांचल की आधा दर्जन से ज्यादा अन्य सीटें हैं, जिन पर भाजपा को लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। चंदौली, भदोही, बस्ती, देवरिया, प्रतापगढ़, मछलीशहर और कौशांबी में इंडिया गठबंधन से कांटे की लड़ाई है। इन सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों से जनता में भारी नाराजगी है।
पश्चिमी यूपी में क्षत्रिय मतदाताओं के विरोध के बावजूद भाजपा को बड़ा नुकसान नहीं हुआ है, क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी में कई जनसभाएं कर के भाजपा के खिलाफ माहौल को पूरी तरह बिगड़ने नहीं दिया। हालांकि जिन प्रत्याशियों को लेकर विरोध हो रहा था, वहां की सीट फंस जरूर गई है। धनंजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद पूर्वांचल में भी समीकरण बिगड़ने लगे थे, लेकिन इसे सुलझाने की बागड़ोर अमित शाह ने खुद अपने हाथ में ले ली। जौनपुर में भाजपा तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ रही थी, लेकिन अचानक बसपा ने श्रीकला सिंह का टिकट काटकर भाजपा को लड़ाई में ला दिया है।
जौनपुर सीट से बसपा ने श्याम सिंह यादव को टिकट देकर इंडिया गठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा दी है। इसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को होगा। इधर, बसपा से किनारे लगाये गये धनंजय सिंह ने किस दबाव और लाभ के चलते भाजपा को समर्थन देने की बात कही है, वही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन धनंजय के अपील के बाद भाजपा जौनपुर में मजबूत स्थिति में आ गई है। अमित शाह ने प्रतापगढ़ और कौशांबी सीट पर भाजपा को मजबूत करने के लिए जनसत्ता दल के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया से भी बातचीत की है लेकिन राजा भैया ने किसी दल को समर्थन देने के बजाय अपने विवेक से मतदान करने की अपील की है।
हालांकि राजा भैया ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उनकी पार्टी किसी का समर्थन नहीं कर रही है, और मुकदमा इंद्रजीत सरोज द्वारा मामला खत्म करने की अपील पर लिया गया है, लेकिन उनके समर्थक इसके मायने निकाल रहे हैं। कुंडा और बाबागंज सीट कौशांबी लोकसभा में आती है। राजाभैया का साथ मिलता भी है तो भी प्रतापगढ़ सीट पर भी भाजपा उम्मीदवार संगम लाल गुप्ता को कोई खास फायदा नहीं होगा। संगम लाल को लेकर जनता में नाराजगी है जिसके कारण प्रतापगढ सीट भी नजदीकी लड़ाई में फंसी हुई है।
भदोही में भी लड़ाई कांटे की है। ब्राह्मण, मुस्लिम एवं बिन्द बाहुल्य इस सीट पर भाजपा की लड़ाई गठबंधन कोटे से उतरे पूर्व विधायक एवं तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी से है। पिछली बार यह सीट भाजपा के खाते में गई थी, लेकिन इस बार भदोही का ब्राह्मण वोटर दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी के पड़पोते की तरफ झुक सकता है। योगी सरकार द्वारा विधायक विजय मिश्र के खिलाफ कार्रवाई से यहां के ब्राह्मण मतदाता नाराज बताये जाते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण बाहुल्य सीट होने के बावजूद भाजपा द्वारा बिन्द जाति के उम्मीदवार को टिकट देने से भी वो भाजपा से दूर जा सकते हैं। ललितेश को ब्राह्मणों के अलावा मुस्लिमों का साथ भी मिल रहा है। सपा एवं कांग्रेस के वोटर भी टीएमसी उम्मीदवार के साथ है।
घोसी सीट पर भी राजभर नेताओं के बड़बोलेपन के चलते मतदाताओं में गुस्सा है। पिछली बार हार का सामना करने वाली भाजपा ने इस सीट को सुभासपा को दे दिया था, लेकिन स्थिति अब भी नहीं बदली है। सपा उम्मीदवार राजीव राय बढ़त पर हैं। स्थानीय एवं बाहरी का मुद्दा भी इस सीट पर हावी है। चंदौली सीट पर भी केंद्रीय मंत्री डा. महेंद्रनाथ पांडेय को लेकर जनता में नाराजगी रही है, जिसका लाभ सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह को मिलता दिख रहा है। हालांकि सपा की आतंरिक लड़ाई का लाभ डा. महेंद्रनाथ पांडेय को मिलता है, तो लड़ाई नजदीकी है।
बस्ती सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी हरीश द्विवेदी को लेकर जनता में नाराजगी है। माना जा रहा था कि भाजपा यहां से प्रत्याशी बदल देगी, लेकिन बिहार-झारखंड के संगठन मंत्री नागेंद्रनाथ त्रिपाठी की कृपा से हरीश तीसरी बार टिकट पा गये। बसपा यहां से दयाशंकर मिश्र को प्रत्याशी बनाकर भाजपा के वोट में सेंधमारी कर रही थी। अचानक मायावती ने इस सीट पर भी प्रत्याशी बदलकर कुर्मी समाज के लवकुश पटेल को उम्मीदवार बना दिया। लवकुश सपा के कुर्मी उम्मीदवार राम प्रसाद चौधरी के वोटों में सेंधमारी करेंगे। सपा ने दयाशंकर मिश्र को पार्टी में शामिल कर ब्राह्मण वोटों को पाले में लाने की कोशिश की है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में अब केवल मोदी के नाम पर जनता किसी को भी चुनकर भेजने को तैयार नहीं है। उसका भले ही कुछ हद तक मोदी से मोहभंग हुआ हो लेकिन वह विपक्षी गठबंधन को लाने के लिये तैयार भी नहीं है। इसलिए खासकर मध्यम वर्ग ने खुद को चुनाव से अलग कर लिया है। इसी का परिणाम है कि मतदान प्रतिशत आंशिक रूप से कम हो रहा है।
बीते दो आम चुनावों में मतदाताओं ने मोदी के नाम पर कमजोर-मजबूत सभी प्रत्याशियों को जीत दिला दी, लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। भाजपा ने मोदी लहर के नाम पर फिर से उन्हीं प्रत्याशियों को जनता पर थोप दिया, जिनको लेकर जनता में भारी नाराजगी थी। हालांकि विपक्ष इस नाराजगी को भुना नहीं पाया है, लेकिन फिर भी भाजपा को पूर्वांचल की कई सीटों पर केवल प्रत्याशियों के चयन के चलते नुकसान उठाना पड़ेगा। अब पूर्वांचल में छठे एवं सातवें चरण में 25 मई और 1 जून को होनेवाला मतदान तय करेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।