पटना: देश में हुए पांच राज्यों खास कर तीन हिंदी बेल्ट राज्यों को लेकर जो एग्जिट पोल आया है, वहां से देश की राजनीति को दिशा तो मिलेगी ही, लेकिन इस एग्जिट पोल से बिहार की राजनीति भी प्रभावित होते दिख रही है। ऐसा गर है तो इसके कुछ कारण भी है। दरअसल, बिहार की राजनीति अभी फ्लूइड स्थिति में है। इसके ठोस रूप लेने में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी परिणाम काफी मददगार साबित होंगे। ऐसा इसलिए कि बिहार में महागठबंधन हो या एनडीए के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गठबंधन में शामिल कुछ दलों के भीतर भी उहापोह की स्थिति है कि किस गठबंधन में रहा जाए।
इन दिनों राजनीतिक गलियारों में एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोजपा(पारस गुट) और राष्ट्रीय लोक जनता दल के भीतर भी उठापठक भी जारी है। खासकर रालोजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि उनकी नजदीकियां राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच काफी बढ़ने लगी है। कहा जा रहा है कि रालोजद एनडीए के घटक दल तो बन गया पर उपेंद्र कुशवाहा को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। इससे भी बड़ी बात यह कि कुशवाहा वोट की गोलबंदी के लिए जिस अहम भूमिका हेतु उपेंद्र कुशवाहा को बुलाया गया था। उससे मुकरते हुए भाजपा ने न केवल सम्राट चौधरी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, बल्कि उनके पीछे पूरी ताकत भी झोंक दी। इससे उपेंद्र कुशवाहा को अपनी भूमिका कमतर नजर आने लगी है।
लोजपा (रामविलास) राष्ट्रीय लोजपा(पारस) के बीच अभी भी दुरूह स्थिति बनी हुई है। असली लोजपा को लेकर दोनों के अपने अपने दावे हैं। दोनों ही जीती हुई सीट पर दावेदारी पेश कर रहे हैं। पर गत लोकसभा के चुनाव में जीती छह सीट किसके नाम जायेगी। हाजीपुर सीट को लेकर दोनों के ही दावे हैं। वोट की राजनीति में पलड़ा चिराग पासवान का भारी है तो सांसदों की संख्या को लेकर पशुपति पारस का। कोई भी विपरीत परिस्थितियों में कोई कहीं जा सकता है या अलग राजनीतिक समीकरण भी तैयार कर सकता है। जदयू का तो दावा भी है कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद एनडीए के दो दल महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। इनका इशारा राष्ट्रीय लोजपा (पारस) और रालोजद की तरफ था।
राजद और जदयू के बीच भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं!
इन दिनों लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजद पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते रहे हैं। किसी भी कार्यक्रम के दौरान वह 2005 के पहले की शासन व्यवस्था का जिक्र कर राजद पर निशाना साधते रहे हैं। उधर, राजद भी कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ाने में लगा है। आईएनडीआईए गठबंधन के भीतर नीतीश कुमार भी सहज नहीं हैं। कांग्रेस की धीमी चाल पर लगातार नीतीश कुमार बरसते भी रहे हैं। सीट शेयरिंग की बात हो या नेतृत्व की कांग्रेस की तरफ से कोई पहल होते नहीं दिख रही है। इस बात को लेकर कांग्रेस और जदयू के बीच तनातनी का माहोल बना हुआ है।
चुनावी परिणाम का क्या प्रभाव
एक बात तो तय है कि यह एग्जिट पोल परिणाम में बदल पाए। यानी एमपी और राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी तो एनडीए का पलड़ा मजबूत होगा। ऐसे में राष्ट्रीय लोजपा (पारस) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोजद की संभावना महागठबंधन से नाता जोड़ने की नहीं बनेगी।
वैसे भी कांग्रेस अगर हिंदी बेल्ट में मजबूत स्थिति है आ जाती है तो आईएनडीआईए में सब कुछ ठीक ठाक रहेगा। तब आईएनडीआईए की ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस रहेगी। बिहार की बात करें तो यहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और कांग्रेस की चलेगी। इनकी इस स्थिति के साथ जो रहेंगे आईएनडीआईए में बने रहेंगे। नाराजगी की स्थिति में जदयू थर्ड मोर्चा की तरफ बढ़ सकता है। इसके इंतजार में समाजवादी पार्टी और तेलंगाना में बीआरएस तैयार बैठा हुआ है।