भोपाल : मध्य प्रदेश में मतदान के लिए 20 दिन का समय ही बचा है। 17 नवंबर को यहां नयी विधानसभा के लिए वोट डाले जाऐंगे। ऐसे में राजनीतिक दलों को सारी ताकत चुनाव प्रचार में झोंकनी चाहिए थी लेकिन मतदाता तक पहुंचने की बजाय कांग्रेस अलग ही संघर्ष में उलझी हुई हैं। प्रत्याशियों का अपनी पार्टी में विरोध अब सीमायें लांघने लगा है। कांग्रेस में कई सीटों पर अधिकृत प्रत्याशियों का विरोध वरिष्ठ नेताओं के पुतले फूंकने से लेकर कथित “कपड़े फाड़ने” तक पहुंच चुका है।
भोपाल के पास बैरसिया विधानसभा में टिकट वितरण से असंतुष्ट कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के समक्ष दिग्विजय सिंह का न केवल पुतला ही फूंका बल्कि वे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बंगले के बाहर बैठकर उनकी सद्बुद्धि के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस कार्यकर्ता दिग्विजय सिंह के समर्थक थे किंतु बैरसिया में टिकट कमलनाथ कोटे में गया और दिग्विजय सिंह कुछ नहीं कर पाए इसलिए कार्यकर्ताओं का ग़ुस्सा फूट पड़ा।
इसी प्रकार दतिया की सेवड़ा विधानसभा के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी वर्तमान विधायक घनश्याम सिंह के टिकट के विरोध में दिग्विजय सिंह का पुतला फूंक दिया। ऐसा ही हाल प्रदेश की लगभग 20 विधानसभाओं में है जहां कांग्रेस प्रत्याशी का पुरजोर विरोध पार्टी की नाक में दम किए हुए है। विरोध मात्र पुतला फूंकने तक होता तो भी ठीक था। राजनीति में प्रतीकात्मक विरोध का यह तरीका लंबे समय से नाराजगी प्रकट करने का माध्यम है किंतु नौबत “कपड़े फाड़ने” तक की आ गई है।
कमलनाथ असंतुष्ट कांग्रेसियों से स्पष्ट कह रहे हैं कि यदि गुस्सा निकालना है तो दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो। कमलनाथ ने भले ही यह बात व्यंग अथवा हास-परिहास में कही हो किंतु राजनीतिक पंडित जानते हैं कि इसके गहरे निहितार्थ हैं। कांग्रेस में वर्तमान में ऐसा कोई नेता नहीं है जो रुठे नेताओं को मना सके। मध्य प्रदेश के दोनों कांग्रेस नेताओं का कद राष्ट्रीय है अतः इनके बीच अदावत को सुलझाने में नेतृत्व भी असफल रहा है।
दरअसल, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के “कमल दल” में जाने से अनायास ही कई गुटों में विभाजित कांग्रेस में मात्र दो ही गुट बचे हैं। शेष सभी गुटों ने कमलनाथ अथवा दिग्विजय सिंह की सरपरस्ती में आना ही उचित समझा है। अब चाहे कमलनाथ हों या दिग्विजय सिंह, दोनों बड़ी संख्या में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में लगे रहे ताकि प्रदेश में उनकी सियासी ताकत कम न हो।
दोनों नेता लाख एकजुटता का राग अलापें किंतु दोनों ही अब उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां देर-सवेर उनकी राजनीति पर विराम लगेगा। ऐसे में दोनों ही नेता अपने-अपने पुत्रों को स्थापित करना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब उनके समर्थक भी उनके पुत्रों को स्वीकार करें। बस, कांग्रेस में इसी जद्दोजहद में कई विधानसभा सीटों पर टिकट वितरण गलत हो गया। टिकट मिलने के सर्वे के पैमाने को चाटुकारिता ने हरा दिया। कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की 6 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान अपने बेटे सांसद नकुल नाथ से करवा दिया वहीं दिग्विजय सिंह के सुपुत्र जयवर्धन सिंह का दखल मालवा और मध्य भारत के टिकट वितरण में बढ़ता गया।
अब आलम यह है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और अरुण यादव सहित अजय सिंह, विवेक तनखा जैसे बड़े नेता स्वयं को उपेक्षित मान रहे हैं। इनमें से मात्र अजय सिंह को ही टिकट मिला है जिसे दिग्विजय सिंह के कोटे का समझिए। इन सबमें, अहम सवाल तो यही है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व इतना असहाय हो चुका है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की मंशा समझने के बाद भी मौन है? क्या दोनों ही नेता राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भांति कांग्रेस नेतृत्व को कुछ नहीं समझ रहे? यह सवाल इसलिए क्योंकि नकुल नाथ का प्रत्याशियों का ऐलान तो सीधे-सीधे नेतृत्व को चुनौती ही है। हालांकि असंतोष के बढ़ने के चलते 7 सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी बदले हैं किंतु अब उनका भी विरोध होने लगा है। परिस्थिति जस की तस है।
टिकट वितरण को लेकर भाजपा में भी कम असंतोष नहीं है। यहां भी कई विधानसभाओं में जूतम-पैजार हो चुकी है किंतु कांग्रेस और भाजपा में सबसे बड़ा अंतर अनुशासन का है। भाजपा में जहां डैमेज कंट्रोल के लिए केंद्रीय मंत्रियों की फौज के साथ सह-संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने मोर्चा संभाल लिया है। वहीं कांग्रेस में असंतोष की खाई इस कदर चौड़ी हो चुकी है कि चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के दौरान कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की तल्खी पर मीडिया को मैनेज करना पड़ा। जबकि दोनों में हुई तू-तू, मैं-मैं को सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा।