प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण इलाकों में रहती है एवं इसमें से बहुत बड़ा भाग अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। यदि ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में वृद्धि होने लगे तो भारत के आर्थिक विकास की दर को चार चांद लगाते हुए इसे प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत से भी अधिक किया जा सकता है। इसी दृष्टि से केंद्र सरकार लगातार यह प्रयास करती रही है किसानों की आय को किस प्रकार दुगुना किया जाय। इस संदर्भ में कई नीतियों एवं सुधार कार्यक्रम लागू करते हुए किसानों की आय को दुगुना किये जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
अप्रेल 2016 में इस सम्बंध में एक मंत्रालय समिति का गठन भी केंद्र सरकार द्वारा किया गया था एवं किसानों की आय बढ़ाने के लिए सात स्त्रोतों की पहचान की गई थी, इनमे शामिल हैं, फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करना, पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि करना, संसाधन के उपयोग में दक्षता हासिल करते हुए कृषि गतिविधियों की उत्पादन लागत में कमी करना, फसल की सघनता में वृद्धि करना, किसान को उच्च मूल्य वाली खेती के लिए प्रोत्साहित करना (खेती का वीविधीकरण), किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाना एवं अधिशेष श्रमबल को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर कृषि क्षेत्र के पेशों में लगाना। उक्त सभी क्षेत्रों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कई उपायों के अब सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगे हैं एवं कई प्रदेशों में किसानों के जीवन स्तर में सुधार दिखाई दे रहा है, किसानों की खर्च करने की क्षमता बढ़ी है एवं कुल मिलाकर अब देश के किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है।
प्राचीन भारत में तो सनातन संस्कृति का पालन करते हुए विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में गाय पालन की गतिविधियां बहुत बड़े स्तर पर चलाई जाती थी। उस खंडकाल में गाय पालन से दरअसल बहुत अधिक आर्थिक लाभ होता था। गाय के गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाता था, गाय के दूध से डेयरी उत्पादों का निर्माण कर बाजार में बेचा जाता था, गौ मूत्र का दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, आदि। ग्रामीण इलाकों में किसी भी परिवार की सम्पन्नता इस बात से आंकी जाती थी कि किस परिवार में गाय की संख्या कितनी है। कृषि कार्य के अतिरिक्त लगभग समस्त परिवार गाय पालन की गतिविधि में भी संलग्न रहते थे एवं इससे यह उनकी आय का एक अतिरिक्त साधन बन जाता था। इसी तर्ज पर वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में किसानों के लिए पशुपालन की गतिविधि को एक अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में बढ़ावा दिया गया है।
पिछले 9 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार द्वारा कृषि के लिए बजट आबंटन में अभूतपूर्व वृद्धि की गई है। वर्ष 2015-16 में कृषि बजट के लिए 25,460 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 138,551 करोड़ रुपए का हो गया है। वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री किसान योजना प्रारम्भ की गई थी। इस योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष रुपए 6000 की राशि, तीन समान किश्तों में, पात्र किसानों के बैंक खातों में सीधे ही केंद्र सरकार द्वारा जमा कर दी जाती है। इस राशि का उपयोग पात्र किसान कृषि कार्य सम्पन्न करने के लिए खाद, बीज आदि खरीदते हैं। प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत अभी तक 11.3 करोड़ पात्र किसान परिवारों को 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि केंद्र सरकार द्वारा जारी की जा चुकी है।
देश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को भी सफलतापूर्वक लागू किया गया है। प्राकृतिक आपदा की परिस्थितियों के बीच किसानों की फसल बर्बाद होने की स्थिति में बीमा कम्पनी द्वारा प्रभावित किसानों को हुए आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाती है। इससे भारतीय किसानों का आत्म विश्वास बढ़ा है। कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण के लक्ष्य में अभूतपूर्व वृद्धि की गई है। पशु पालन और मत्स्य पालन के लिए प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत ब्याज पर रियायती संस्थागत ऋण किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। जिससे इन गतिविधियों में किसानों की लाभप्रदता बढ़ी है। किसान क्रेडिट कार्ड योजना के माध्यम से समस्त प्रधानमंत्री किसान योजना के लाभार्थियों को किसान क्रेडिट कार्ड योजना से जोड़ दिया गया है। विभिन्न उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत के डेढ़ गुने तक तय किया जा रहा है। भारत में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके कारण कीटनाशक दवाओं एवं उर्वरकों का कम इस्तेमाल होने लगा है एवं इससे किसानों के लिए कृषि पदार्थों की उत्पादन लागत कम हो रही है।
इसी प्रकार, राष्ट्रीय कृषि मंडी (ई-नाम) की स्थापना भी केंद्र सरकार द्वारा की गई है। इससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए बेहतर बाजार मिला है। कृषि उपज लाजिस्टिकस में सुधार करते हुए किसान रेल की शुरुआत भी की गई है। इस विशेष सुविधा से विशेष रूप से फल एवं सब्जी जैसे पदार्थों के नष्ट होने की सम्भावनाएं कम हो गई हैं। देश में कृषि और सम्बंध क्षेत्र में स्टार्ट अप ईको सिस्टम का निर्माण भी किया जा रहा है। उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने के स्थान पर अब किसान की आय बढ़ाने हेतु नीतियों का निर्माण किया जा रहा है।
किसानों को ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ के सिद्धांत का पालन करते हुए, सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रहीं हैं। इस सम्बंध में सूक्ष्म सिंचाई कोष का गठन भी किया गया है। किसान उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि किसान अपनी फसलों को उचित दामों पर बाजार में बेच सकें एवं इस संदर्भ में बाजार में प्रतियोगी बन सकें। कृषि क्षेत्र के यंत्रीकरण पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। खेत के मिट्टी की जांच कर किसानों को मृद्दा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि किसान इस मिट्टी में उसी फसल को उगाए जिसकी उत्पादकता अधिक आने की सम्भावना हो।
भारत में विभिन्न कृषि उत्पादों के उत्पादन में अतुलनीय वृद्धि के चलते अब भारत के किसान विभिन्न कृषि उत्पादों का निर्यात भी करने लगे हैं। भारतीय कृषि उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही मांग के चलते अब किसानों को इन उत्पादों के निर्यात से अच्छी आय होने लगी है। केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादों के देश से निर्यात सम्बंधी नियमों को आसान किया है।
केंद्र सरकार द्वारा किए गए उक्त वर्णित कई उपायों के चलते फसलों और पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि हुई है, संसाधनों के उपयोग में दक्षता आने से उत्पादन लागत में कमी आई है, फसल की सघनता में वृद्धि दर्ज हुई है, उच्च मूल्य वाली खेती की ओर विविधिकरण हुआ है, किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल रहा है एवं अतिरिक्त श्रमबल को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर कृषि क्षेत्र के पेशों में लगाया गया है। इस सबका मिलाजुला परिणाम यह हुआ है कि किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से किसानों की आय बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।