नई दिल्ली: भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. बावजूद इसके हालिया संरक्षणवादी व्यापार नीतियों ने इसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे कर दिया है। भारत के टैरिफ़ ऊंचे हैं और वैश्विक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी दो फ़ीसदी से भी कम है। भारत के घरेलू बाज़ार ने इसके विकास को बढ़ावा दिया है, जो अन्य कई देशों से ज़्यादा है. इसकी मुख्य वजह बाकी दुनिया में आर्थिक रफ़्तार का धीमा होना है। लेकिन इस अशांत और बढ़ते हुए संरक्षणवादी दौर में भारत की आत्मनिर्भरता की चाहत, बस थोड़े समय के लिए एक ढाल का काम कर सकती है, क्योंकि कई देश अमेरिका की व्यापार नीतियों के बदलाव से जूझ रहे है।
भारत के पक्ष में क्या है ?
हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में अधिकांश देशों को टैरिफ़ के मामले में 90 दिनों की मोहलत दी है। वैश्विक व्यापार पर निर्भर रहने वाले देशों के मुक़ाबले, अपने अपेक्षाकृत उदासीन रवैये की वजह से इन हालात में शायद भारत को थोड़ी मदद मिली है।
वरिष्ठ पत्रकार और अर्थशास्त्र विशेषज्ञ प्रकाश मेहरा कहते हैं, “वस्तुओं के वैश्विक व्यापार के मामले में भारत का कम एक्सपोज़र हमारे पक्ष में जा सकता है। यदि निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्था टैरिफ़ के दबाव के कारण धीमी पड़ती है और हम 6 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ते हैं, तो अपने विशाल घरेलू बाज़ार की मदद से हम तुलनात्मक तौर पर मज़बूत दिखाई देंगे।”
उन्होंने कहा, “भारत आमतौर पर व्यापार से कतराता है, यही बात हमारे लिए फ़ायदेमंद साबित हुई है. लेकिन, हम इससे संतुष्ट नहीं हो सकते हैं. भारत को नए अवसरों के लिए तैयार रहना होगा. साथ ही व्यापार के लिए धीरे-धीरे और रणनीतिक तौर पर रास्ते खोलना होंगे। ”
वैसे यह आसान नहीं होगा, क्योंकि व्यापार की बाधाएं और टैरिफ़ के साथ भारत के रिश्ते जटिल रहे हैं।
भारत के लिए कहां है अवसर?
विशेषज्ञ कहते हैं “यदि विदेशी उनके उत्पाद हमें नहीं बेच सकते हैं, तो जो उत्पाद वो हमसे ख़रीदते हैं, उसका भुगतान करने का धन उनके पास नहीं होगा. यदि हम उनके उत्पादों में कटौती करते हैं, तो वो भी हमारे ऊपर कटौती कर सकते हैं.”
इस मौके का फ़ायदा उठाने के लिए अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारत को अपना टैरिफ़ कम करना चाहिए. निर्यात की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिए और वैश्विक व्यापार के लिए खुलेपन का संकेत देना चाहिए। अभी गारमेंट्स, टैक्सटाइल्स और टॉयज़ जैसे मध्यम और लघु उद्योगों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। मगर, एक दशक की स्थिरता के बाद, बड़ा सवाल ये है कि क्या वे आगे बढ़ सकते हैं? क्या सरकार उनका समर्थन करेगी? दिल्ली के थिंक टैंक ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ के एक अनुमान के मुताबिक, यदि राष्ट्रपति ट्रंप मौजूदा रोक के बाद अपनी टैरिफ़ योजनाओं पर अमल करते हैं, तो इस साल अमेरिका को भारत के निर्यात में 7.76 अरब डॉलर या 6.4 फ़ीसदी की कमी आ सकती है।
इसमें यूरोपीय यूनियन, ब्रिटेन और कनाडा के साथ तेज़ी से समझौता करने के बाद चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया और एशियाई देशों के साथ संबंध मज़बूत करना शामिल हैं। घरेलू स्तर पर, वास्तविक असर सुधारों पर निर्भर करता है. इनमें सरल टैरिफ़, एक सहज जीएसटी, बेहतर व्यापार प्रक्रियाएं और गुणवत्ता नियंत्रण का निष्पक्ष क्रियान्वयन शामिल है. इसके बिना, भारत के सामने वैश्विक अवसर से चूकने का जोखिम बना हुआ है।