गौरव अवस्थी
रायबरेली: रायबरेली से राहुल गांधी जीत गए। उन्हें जीतना था। रायबरेली के मतदाता पहली बार में ही इतने बड़े अंतर से जीत दिलाएंगे, इसका भरोसा तमाम कांग्रेसियों को भी नहीं रहा होगा। उन नेताओं को भी नहीं रहा होगा जो बाहर से यहां आकर राहुल गांधी के लिए प्रचार कर रहे थे। रायबरेली ने गांधी परिवार से अपने रिश्तों पर एक बार फिर मोहर लगाई है लेकिन इस मोहर की इंक सोनिया गांधी के नाम पर लगाई गई स्याही से ज्यादा गाढ़ी है।
आप पूछेंगे कैसे? आइए! आंकड़ों की तरफ चलते हैं। सोनिया गांधी ने अपनी सास की कर्मभूमि को 2004 में अपनाया था। अपने के पहले अपने परिवार के हनुमान कहे जाने वाले कैप्टन सतीश शर्मा को 1999 में यहां चुनाव लड़ने के लिए भेजा। कैप्टन सतीश शर्मा ने एन केंद्र प्रकार रायबरेली और गांधी परिवार के पारंपरिक रिश्ते को अपनी जीत के आधार पर प्रमाणित किया। इसके बाद सोनिया गांधी रायबरेली में पहला चुनाव लड़ने के लिए 2004 में आईं।
गांधी परिवार की की बहू सोनिया गांधी पर भी रायबरेली ने पहली बार अपना प्यार लुटाया था लेकिन इतना नहीं जितना अपने बेटे सरीखे राहुल गांधी पर। 2004 के चुनाव में सोनिया गांधी को 378107 मत मिले थे यह कुल पड़े मतों का 58.75% था। सोनिया गांधी के के प्रति रायबरेली का यह पहला प्यार था। सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने पर रायबरेली से पहली बार चुनाव लड़ने आए राहुल गांधी को रायबरेली ने हाथों हाथ लिया और मां सोनिया गांधी से 10% अधिक मत पहले चुनाव में प्रदान किए। 10% मतों का अंतर बहुत बड़ा होता है इसीलिए मैं कह रहा हूं कि रायबरेली ने राहुल पर अपना पहला प्यार मां से अधिक बरसाया है। यह भी सच है कि उन्होंने 2019 में मां सोनिया गांधी के जीत के अंतर को सबसे कम करने वाले भाजपा उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह के वोट शेयर में 10% की कमी लाकर मां का बदला ले लिया है।
हालांकि वर्ष 2009 के दूसरे चुनाव में सोनिया गांधी को 72% से अधिक मत मिले थे। दोहरे लाभ के पद के आरोप लगने के बाद सोनिया गांधी द्वारा दिए गए स्थिति पर वर्ष 2006 में हुए उपचुनाव में सोनिया को रिकॉर्ड 80% वोट मिले। राहुल गांधी को वोट शेयर के मामले में अभी मां सोनिया गांधी के रिकॉर्ड को छूने में काफी मशक्कत रायबरेली के विकास को लेकर करनी होगी वह भी तब जब राज्य और केंद्र में उनकी अपनी सरकार होने की संभावना अभी नहीं के बराबर है। कोई चमत्कार हो जाए समीकरण बदल जाए और कुछ नए साथी मिल जाए तो हो सकता है। भले ही केंद्र में गठबंधन की सरकार बन जाए और राहुल गांधी महत्वपूर्ण भूमिका में आ जाएं लेकिन यह इतना आसान भी नहीं।
कुछ भी हो राहुल गांधी को अब रायबरेली को रिटर्न गिफ्ट देने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। वह कैसे होगा? इसका ताना-बाना तो गांधी परिवार को ही बुनना पड़ेगा। रायबरेली के विकास में अब कोई अगर मगर नहीं चलेगा क्योंकि सोनिया गांधी की सोबर्टी और स्वास्थ्य को देखते हुए रायबरेली ने उनकी 5 साल गैर मौजूदगी को सिरे से नजरअंदाज करके अपनी परिवारिकता को एक बार फिर प्रकट किया है। इसलिए भी राहुल गांधी की जिम्मेदारी अब और ज्यादा हो जाती है।