उसका फूला हुआ चेहरा
एक दम गोल मटोल
गाल भरे हुए सखियाँ प्यार से रसगुल्ली कहतीं
थोड़ी बड़ी नाक थी
सो झगड़े में नकचिप्टी कह देतीं
उसकी आँखों में
दुनिया का सबसे खारा समुद्र था
सपने अधिक देखती
सपनें में चार रंगीन फ्रॉक ,एक फूलों वाली चप्पल और बालों में चुटपुटिया क्लिप थी
एक घर भी था जिसके किसी भी कोने में वह
अपनी चप्पलें रख सकती सहेज कर
चप्पलें उसकी सबसे बड़ी पूँजी थीं
पुरानी चप्पल पूरी तरह घिस जाने के बाद नई चप्पलें मिलती
बगैर चप्पल कंकड़ पत्थर काँच किस किस पे ना पड़े उसके पैर
बबूल के लम्बे नोकदार काँटे पाँव छेद भीतर घुसे
उसे चप्पलें खोने का हजार दुःख होता
दूसरी धरोहर थी टूटी चूड़ियों का डिब्बा
जिसे पूरा भरना जीवन का लक्ष्य रहा
बरसात के दिनों में औरौनी के नीचे निकल आती टूटी रंगीन चूड़ियाँ
वह सब इकट्ठा कर लेना चाहती थी
पाँच फुट की लड़की जब साढ़े तीन फुट की थी
गोबर काढ़ना , कंडी पाथना, कंडे धरना ,उठाना ,
झाँखर काटना और गाय की सानी उसके हिस्से के काम थे
जब चार फुट की हुई सब्जी में नमक का अंदाज जान गई
और रोटियाँ गोल बनाने लगी थी
साढ़े चार फुट की होते होते वह जान गई कि
लड़कियों की चुप्पी में कैद होती हैं ऐसी दास्ताने जिनके कह भर देने से सुनने वालों के कानों से लहू फूट निकले
पाँच फुट की होते ही उसकी हड्डियों में कैल्शियम, फास्फोरस कम पड़ गया
वह ठिगनी, मोटकी, बऊ नी कही जाती
उसे बरक्स बताया जाता कि वह सुंदर नहीं है
सांवला रंग, चौड़ी भौहें
चपटी नाक और चपटी छातियों की याद हर रोज दिलाई जाती
पन्द्रह बरस की होते
उसने सिमोन को पढा
“उसके पर कुतरे गए फिर यह इल्जाम कि वह उड़ना नहीं जानती “
पाँच फुट की लड़की ने पर बचाने के तमाम जतन किये
दासत्व से मुक्ति का मार्ग किताबों में खोजा
पढ़ने के लिए हर शर्त मानी
कापियों के बचे पन्नो से कॉपी बनाई
कपड़े दो ही माँगे
यहाँ तक कि खाने में सूखी रोटी और दाल खाई
पीठ पर लदे धान के बोझ संग
किताबों को याद किया
अम्मा ने बताया
प्रेम अक्षम्य अपराध है
उसने अँखुवाते प्रेम को धरती में गहरे दफन किया
कम सुंदर लड़कियाँ घर की दुलारी कभी ना हुईं
अम्मा कहती कहीं ब्याह दो जल्दी
बाबू खीज कर कहते
इस चर फुटा को कहां ले जाऊँ
हर महीने किसी नए स्टूडियो में नई पोज में फोटी खिंचती
पहनने ओढ़ने का शऊर ना था
घर से बाहर निकलते पहले काजल तक प्रतिबंधित था अब लिपिस्टिक लगाने को कहा गया
हर तीसरे माह
वह चेहरे का रंग रोगन कर सजाई गई
ब्लाउज के अंदर फोम रखा गया
उन्होंने लंबाई इंचीटेप से नापी
लड़की के होंठ मोटे , उंगलिया कड़ी लगीं
वह काठ हुई जाँच परख कराती रही
उसे रिजेक्ट कर गए लड़कों की लिस्ट बढ़ती गई
बुढ़ाते पिता और झुकते गए
असुंदर लड़कियों को उम्र भर कुंवारी भी ना रहने दिया
उससे ब्याह को
दुहाजू, तलाकशुदा,अधेड़ बुलाये गए
उसके मर जाने की दुआएं पढ़ी गईं
पर मौत बुलाने पर कब आई है?
एक रोज सल्फास की खाली शीशी के पास पड़ी थी उसकी आत्मा से रीती देह।
वह मुक्त थी , घर भी मुक्त हुआ एक बोझ से ।
‘मन का नागफनी होना’
जीवन गुलाब के फूल की तरह सुंदर हो सकता था
मैंने नागफनी चुना
मन का विवश होना कविता में दर्ज भला कैसे हो??
प्रेम मदिरा में डूबी रोटी की तरह मेरे हिस्से आया और मछली के काँटे सा गर्दन की सबसे नाजुक हड्डी में जा धँसा
उस रोज सतलज की रेत पर पैर जमाये हुए
उसने मेरे माथे को चूमा
वह मृत्यु का प्रथम दिवस था
प्रेम गरल की तरह उतरता रहा सीने में
मैं जब्त होती रही घूँट दर घूँट
उसने कहा प्रेम बलिदान माँगता है
मैंने अस्थिमज्जा की स्याही से लिखे दुआ के खत
मंदिर , शिवाले काली माई के चौरे और डीह बाबा के थान पर चढ़ाया बसियौरा का भोग
लेकिन प्रेम की ठौर का ठिकाना मेरा घर ना हुआ
जब निरा दृत हुई आत्मा पर गर्म पानी के फफोले फूट रहे थे
तुम नेपथ्य में पापमुक्ति का पाठ बांचते रहे
कह देना भर साथ और छोड़ देना भर साथ का छूटना कैसे हो ??
प्रेम में होना होना भर होता तो
तुम्हारे होने से इनकार करती
मेरी सुबह की चिड़ियों की चहचहाट में तुम्हारी हँसी की गंध है
गेंहू के पौधे पर सुस्ताती ओस की बूंदें की झिलमिल
में तुम्हारा चेहरा
सरसों के पीले फूलों की छुअन में तुम्हारा स्पर्श
कभी बेख्याली में खोलना अपने उत्तर वाली खिड़की
वहाँ मेरी पाजेब के घुंघुरूओं की चटक है
तुम्हारे कदमों की आहट की प्रतीक्षा में मैंने काटे हैं कई कल्प
तुम बिन जीवन के रास्ते चलना
जैसे रेत पर मछली का तैरना
पानी में चिड़िया का उड़ना
मेरी याद के कटोरे में बेआवाज खनखनाते हैं तुम्हारी बातों के किस्से
मैं एक खोई हुई रात
एक भूली हुई बात
तुम्हें हर रोज याद करती हूँ
क्या तुम्हें मेरी याद आती है??
‘पुरुष का प्रेम’
मुझे मालूम है तुम्हारा मनपसन्द रंग नीला
और पसंदीदा खाना कढ़ी चावल है
कुमार शानू के गानों के दीवाने हो
हम दिल दे चुके सनम फ़िल्म बहुत पसंद है
तुम्हें तेज आवाज और झगड़े नापसन्द हैं
क्या तुम्हें मेरी पसन्द नापसन्द मालूम है??
छोड़ो
पहली बार कब मिले .?
मिलने पर क्या बात हुई थी ..?
पहली बार का स्पर्श
प्रथम चुम्बन ..?
याद है तुम्हें
ना… झुंझलाओ मत
तुम्हारे चेहरे पर उदासियाँ अच्छी नहीं लगती
ये यादें भी कमबख्त कभी आखिरी नहीं होती
छोड़ो
प्रेम हम दोनों ने किया था
तब कोई शर्त नहीं थी
कि एक दूसरे की पसन्द नापसन्द जानेंगे
बर्थडे एनिवर्सरी याद रखेंगे
मिलने पर कोई पुरानी बात याद कर हंसेंगे
साथ होने पर केवल हमारी बात करेंगे
रात की बाशिंदीं
लड़कियाँ प्रेम में पाखी बनती रहीं
लड़कों ने भंवरा होना चुना
तुमने कहा
मन तितली है
तितलियों को आजाद रहना चाहिये
शायद आसान नहीं होता पूरी जिंदगी
किसी एक को प्यार करते रहना
तुमने कहा तुम्हारी आंखें माधुरी दीक्षित सी
होंठ मधुबाला से और कमर श्रीदेवी जैसी है
मैं आईने के सामने बैठ घण्टो निहारती रही
मुझे प्यार करने के लिए
कितनी और औरतों से प्यार करना होता है तुम्हें??
एक था मन
लड़की जन्मते ही औरत हुई
उसके बदन को हमेशा ढका जाना था
उघार बच्चियाँ घर के मर्दों की आंखों में जुगुप्सा भरती
सयानी लड़कियों ने कस के बांधा चोली का इजारबंद
उनके सीने के हिल जाने भर से डिग जाता रहा मर्दों का सिंहासन
बेटी ने नहीं जाना था कभी पिता ,का स्नेह भरा स्पर्श
भाई का लाड़
बाबा, चाचा दादा ,मामा का वात्सल्य
घर के मर्द उसके सिर पर हाथ फेरने भर को ना आये पास
वह मर्दों के कपड़े धोती
उनकी थाली के जूठन को प्रसाद की तरह ग्रहण करती
बस इतना भर छुआ था उसने मर्दों को
ऐसी लड़कियों को जिसने पहली बार स्पर्श किया वह कोई हारिल के मुँह वाला बाज था ।
उसने झपट्टा मारा और ततैया के अनगिनत डंक बिंध गए उसकी देह पर
ये थरथराती रहीं कई कई रोज धोती रही बदन पर जमी काई
इनकी आँखों में श्मशान का शोक उग आया
और जीभ पर भारी शिला बंधी रही ।
लड़कियों के लिये सोने की जगह हो या ना हो
रोने को एक कोना जरूर होना था
बियाह के बाद पहली रात को ये बुक्का फाड़ रोईं थीं
जो कलेजे लगा बरसों से पोसी पीर को सोख ले
ऐसा हृदय कहाँ था
कोई बाबा , कोई पीर , कोई सोखा इनके डर को सोख ना पाया
ले जाओ अपनी बकलोल बेटी
सन्देशा आया
भाई बाप ने हाथ जोड़े
माँ को सारा दोष मिला
क्या सिखाई हो
मां बुझाती रही
ब्याह के बाद लड़की की अर्थी ही छोड़ती है देहरी
इस बार वह मायके से मेहमान की तरह विदा हुई
दो अटैचियों के साथ एक अटैची और थी
साड़ी, गहने , धान , से लाद दी गई बेटी
अबकी गौने गई जाने फिर कब आवेगी।
औरत के हिस्से आया मायका एक मुट्ठी चावल भर रहा है
इस बार वह पिता की देहरी पर प्राण छोड़ आई थी
खुलते कपड़ों के साथ
वह जड़ होती गई
भींचे दाँत , कसी मुट्ठियाँ, पसीने से तर अकड़ी देह की औरत
लात मार बिस्तर से धकेली गई
बेजान औरत भला कौन बैपरता
उसने सास के पाँव पकड़े
देवरानी जेठानी के हाथ जोड़े
सात औरतों के संयुक्त परिवार में एक औरत का और खप जाना बड़ी बात नहीं थी
औरत को पेट भर रोटी और तन भर कपड़ा ही तो चाहिये
महीना भर बाद पति के लिये दूसरी लाई गई
वह घर भर की चेरी बनी
एक बुलाहट पर दौड़ पड़ती
देवरानियों जेठानियों के इशारे पर उठती बैठती
उनके बच्चों के पोतड़े धोती
कि औरत का धरम ही सेवा है
वह दिन भर जिस तिस बात पर हँसती
कि जिनगी सुफल है सेवा में
सावित्री से सबीतिरिया हुई औरत
आधी रात हिलक रोती
कि, अम्मा..!
मोरे बाबुल को भेजो री..
वह विधवा की तरह जी
जब मरी तो सुहागन थी
उसकी हथेली पर प्रेम की रेखा न थी
उसकी मुट्ठी में कोई सुंदर मोती ना था।
लोग कहते हैं उसका
‘मन औरत का न था’
तुम मुझसे मिलना नहीं ।
सावन आया और बीत गया
मन के बैसाख में छाए रहे बरसने को व्याकुल मेघ
खिले हुए बेहया के फूलों से मैंने मुस्कुराना सीखा है
चेहरे पर हँसी ना हो तो लोग दुःख बाँटने के बहाने मन में सेंध करते हैं
दर्द को जब्त रखना ही औरत की प्रतिष्ठा है
तुमने दिए जो व्रण उन्हें रोज सहलाती हूँ
कि, प्रेम को इतना कमजोर भी ना होना था कि
कि प्रेमियों के आँख का आंसू सूख जाए
कोई एक पता हो जिस पर लिखा हो दोनों का नाम
कोई एक खबर हो जिसमें हो दोनों का जिक्र
विदा का कोई तो सलीका हो
कोई रस्म हो जो निभाई जाए दोनों ओर से
जब कलेजे को खींचा जा रहा हो
चीत्कार भर रोना जरूरी है
जमे हुए आँसू बर्फ बन रोक देते दिल का धड़कना
जब छिनाल घोषित की जा रही थीं प्रेमिकाएं तब तफ़्तीश के पन्नो पर प्रेमी निर्दोष रहे
मेरे लिए प्रेम मुक्तिकामना की दहलीज पर बिताया एक लम्हा भर था
लेकिन काँख में उगी फुन्सी सा किरकता रहा सदा
कोई भभूत , कोई मंतर हो जो याद के चक्रवात से मुक्त कर सके मन
मैं हर रोज प्रतीक्षा की गाढ़ी रेखा पर चढ़ाती हूँ अंजुरी भर फूल
कि लौट आये पछुआ की परेवा पवन
यह जानते हुए भी कि बीत गए लोंगो तक नहीं पहुँचती प्रार्थनाएं
मैँने शिकायतों की पोथी बाँची
कि,
वापसी का ज़रा तो भरम बचा रहे
जबकि,
मुझे तुमसे मिलना नहीं है।