नई दिल्ली : 2013 की उत्तराखंड आपदा के बाद एक भी वर्ष ऐसा नहीं गया जब भारत में भारी बारिश की घटना न हुई हो। हर साल भारी बारिश से बड़े पैमाने पर बाढ़ आयी है। लोगों को जान-माल का नुकसान हुआ है। ऐसी घटनाएं कश्मीर, चेन्नई, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, गुड़गांव, केरल, असम, बिहार और कई अन्य स्थानों पर हुई हैं।
ये ठीक उसी प्रकार की घटनाएं हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक कई वर्षों से चेतावनी दे रहे हैं: वर्षा का अधिक तेज और लगातार होना, थोड़े समय में ही भारी का बारिश का हो जाना और ऐसी घटनाओं की आवृत्ति का बढ़ना। उत्तर भारत में भारी वर्षा का वर्तमान दौर इसी प्रवृत्ति का एक हिस्सा है और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, भले ही यह कुछ स्थानों पर पिछले 20 या 25 वर्षों की सबसे भारी वर्षा हो। दुनिया भर इस तरह की चरम मौसमी घटनाओं की संख्या बढ़ी है।
मानवीय हस्तक्षेप से बढ़ी मुश्किलें
बेंगलुरु में हर साल बाढ़ आती है, इसलिए नहीं कि वहां असामान्य मात्रा में बारिश होती है, बल्कि इसका मुख्य कारण यह है कि जमीन के नीचे पानी के प्रवाह के प्राकृतिक रास्ते अनियमित निर्माण के कारण अवरुद्ध हो गए हैं।
2014 में श्रीनगर को भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा था। लेकिन उस बाढ़ के लिए केवल भारी बारिश जिम्मेदार नहीं थी। यह सही है कि उस वर्ष सितंबर के केवल चार दिनों में, पूरे महीने होने वाली बारिश से पांच गुना अधिक वर्षा हुई। इसके साथ-साथ सभी निचले इलाकों में भी बारिश हुई।
बारिश ज्यादा तो हुई लेकिन पहले उसके निकलने का रास्ता होता है। अब उन रास्तों पर लोग रहने रहे हैं। झेलम नदी जिस रास्ते से होकर गुजरती थी वहां एक बड़ी आबादी बस चुकी है। जिसके कारण पानी के निकलने का रास्ता अवरुद्ध हुआ और लोगों को बाढ़ की विभीषिका का सामना करना पड़ा।
केरल, जिसे भारी बारिश के लिए नहीं जाना जाता है। वहां भी 2018 में बड़े पैमाने पर बाढ़ से विनाश देखने को मिला। उस तबाही का भी मुख्य कारण नदियों के रास्तों को पाटकर बड़ी संख्या में बस्तियां और पर्यटकों के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना ही थी। मुंबई में हर बार बाढ़ आती है क्योंकि वहां जल निकासी टूटी हुई है। ड्रेनेज सिस्टम लगभग ध्वस्त हो चुका है।
उत्तराखंड आपदा, जैसा कि बाद में जांच रिपोर्टों में बताया गया था, अनियमित निर्माण और गैर-योजनाबद्ध बुनियादी ढांचे के कार्यों के कारण बढ़ गई थी।
लगातार चेतावनी के बाद भी नहीं ले रहे सीख
पिछले 10 वर्षों में इनमें से प्रत्येक घटनाओं ने चेतावनी और सीख दोनों दी है। लेकिन अफसोस की बहुत कम लोगों ने सीख लिया है और चेतावनी से सावधान हुए हैं। भारत अभी भी अपने बुनियादी ढांचे – सड़क, बंदरगाह, रेलवे, शहरी स्थान, आवास, अस्पताल, बिजली स्टेशन – के निर्माण की प्रक्रिया में है। इसके पास उन्हें इस तरह से डिजाइन करने का अवसर है कि वे अगले चार से पांच दशकों तक जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब अपेक्षित प्रभावों के प्रति लचीले हों। पिछले कुछ दिनों में दिल्ली, गुड़गांव और अन्य स्थानों पर व्यापक जलजमाव के लिए बारिश को दोष देना व्यर्थ है।