नई दिल्ली: मोदी सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के अपने वादे को 2029 तक पूरा करने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह इतनी आसानी से लागू हो जाएगा। इस योजना को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसके लिए विपक्षी दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में बीजेपी के पास अकेले बहुमत नहीं है। एनडीए की सरकार है। हालांकि इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी समझते हैं। तीन मंत्रियों को अलग-अलग राजनीतिक दलों से समन्वय के लिए काम पर लगाया गया है। सूत्रों के मुताबिक संशोधन संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जा सकते हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल में इस कदम को लागू करने के सरकार के इरादे को दोहराया था, लेकिन कम ही लोगों को उम्मीद थी कि सरकार इस मामले में इतनी तेजी से आगे बढ़ेगी। वह भी तब जब संसद में उसके पास पर्याप्त बहुमत नहीं है।
NDA के पास बहुमत नहीं और विपक्ष भी तैयार
संसद में NDA के पास इस बदलाव के लिए जरूरी बहुमत नहीं है और विपक्षी दलों का रुख भी स्पष्ट है। उनके पास इस कदम को विफल करने के लिए पर्याप्त ताकत है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों का एक साथ होना एक अनिवार्यता है, जिसे अनिश्चित काल तक टाला नहीं जा सकता है। मोदी ने X पर लिखा, यह हमारे लोकतंत्र को और अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कोविंद समिति की सराहना भी की।
यह बदलाव कैसे होगा संभव
दो चरणों में बदलाव की बात की गई है। पहला चरण, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना शामिल है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसे संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी की जरूरत होगी। दूसरा कदम – आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराना। इसको लागू करने के लिए दूसरे संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए कम से कम आधे राज्यों की ओर से मंजूरी की आवश्यकता होगी।
मोदी 3.0 में बदल गया है नंबर गेम
जब समिति की सिफारिशें पेश की गई थीं, तब BJP को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त था। वह संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत तक पहुंच सकती थी। लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद गणित बदल गया है। अब मोदी को निचले सदन में संशोधनों को आगे बढ़ाने के लिए सहयोगियों और अन्य पर निर्भर रहना होगा। NDA के सहयोगी इस फैसले के साथ हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि समाजवादी पार्टी ने सर्वसम्मति बनाने के लिए सर्वदलीय बैठक की मांग करते हुए अपने सहयोगी कांग्रेस द्वारा इस कदम को सिरे से खारिज करने से किनारा ले लिया। BSP ने अपने पहले के विरोध को पलटते हुए इस विचार का समर्थन किया। कोविंद समिति के साथ विचार विमर्श के दौरान, 32 राजनीतिक दलों ने इस योजना का समर्थन किया था, जबकि 15 ने इसका विरोध किया था।
सरकार को समर्थन मिलने की उम्मीद
सरकार को समर्थन मिलने की उम्मीद है। कैबिनेट की बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार पूरे देश में और विभिन्न समूहों के बीच चर्चा करेगी। हमारी सरकार सर्वसम्मति में विश्वास करती है। उच्च स्तरीय विचार-विमर्श होगा। सूत्रों ने बताया कि बैठक में प्रधानमंत्री ने इसके फायदों के बारे में जागरुकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया है। इन फायदों में सरकारी खजाने की बचत, फैसले लेने में देरी से राहत, चुनावी थकान को कम करना, बेहतर शासन और स्थिरता और नीतियों में निरंतरता, जो एक साथ चुनाव कराने से होने की संभावना है, शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि तीन मंत्री – राजनाथ सिंह, किरेन रिजिजू और अर्जुन राम मेघवाल – इस योजना के लिए समर्थन जुटाने के लिए राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करेंगे।