नई दिल्ली : भारत ने अरुणाचल प्रदेश में लगभग 30 स्थानों के नाम चीन द्वारा बदले जाने पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया से जिनपिंग प्रशासन को अवगत कर दिया है। मोदी सरकार ने चीन की इस हरकत को संवेदनहीन करार दिया है और स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने चीन पर कटाक्ष करते हुए पत्रकारों से कहा कि नाम बदलने से कुछ नहीं होगा। अगर मैं तुम्हारे घर का नाम बदल दूं, तो क्या वह मेरा घर हो जाएगा?
उल्लेखनीय है कि चीन लगातार अरुणाचल प्रदेश को जांगनान कहता आ रहा है। उसे वह दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है। जिसे भारत बार-बार खारिज करता रहा है। लेकिन चीन मानता कहां है। एक साल पहले भी जिनपिंग प्रशासन ने अरुणाचल के 11 स्थानों को चीनी नाम देकर तनाव बढ़ा दिया था। दिसंबर 2022 में विवादित सीमा पर मामूली झड़पें भी हुईं थीं।
उसके पहले 2020 में पश्चिमी हिमालय के गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ था। अब चीन ने फिर से अरुणाचल प्रदेश में लगभग 30 स्थानों के नए नामकरण कर दिए हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है कि बीजिंग के मनगढ़ंत नाम बताने से अरुणाचल की वास्तविकता नहीं बदलेगी। यह प्रदेश भारत का है और हमेशा रहेगा।
उकसावे वाली हरकत
चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, भारतीय-नियंत्रित राज्य अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नामों को मानकीकृत करने के लिए चीनी अक्षरों का उपयोग किया गया है। बीजिंग में चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर के एक चीनी विशेषज्ञ लियान जियांगमिन ने इसे चीन की राष्ट्रीय पॉलिसी बताया है।
चीन पिछले महीने से ऐसी उकसावे वाली कारवाई लगातार कर रहा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जब सेला सुरंग का उद्घाटन करने अरुणाचल गए थे तब भी चीन ने कहा था कि वह क्षेत्र में पीएम मोदी की इन गतिविधियों का विरोध करता है। उस पर अमेरिका ने भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता है और सैन्य या नागरिक घुसपैठ या अतिक्रमण द्वारा इस पर दावा करने के किसी भी एकतरफा प्रयास का वह कड़ा विरोध करता है। सवाल उठता है कि चीन बार बार क्यों अरुणाचल के स्थानों का नाम बदल रहा है।
चीन का उद्देश्य क्या है?
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन यह सोची समझी चाल के तहत ऐसा कर रहा है। वह अपने क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने और किसी भी बड़ी असहमति को अदालत में ले जाने की स्थिति में अपने दावों के समर्थन में सबूत बनाने के लिए विवादित स्थानों का नाम बदल रहा है। केवल अरुणाचल में ही नहीं बीजिंग दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर के कुछ हिस्सों पर अपने दावों का समर्थन करने के लिए नए नामों और अन्य मानचित्र कोडिंग का उपयोग करता है।
विश्लेषकों के अनुसार चीनी नेताओं ने एशिया भर के विवादों में अपने विरोधियों पर दबाव बनाए रखने के लिए और अपने नागरिकों को उनके दावों की याद दिलाने के लिए विवादित स्थानों का नाम बदलने की परंपरा बना ली है। खासकर किसी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या विश्व मध्यस्थता अदालत की सुनवाई के हिसाब से वह ऐसा कर रहे हैं।
यह चीनी दृष्टिकोण एक कथात्मक युद्ध का हिस्सा बन गया है। यह एक संघर्ष की कहानी को आकार देने का भी प्रयास हो सकता है। चीन अपने प्रतिद्वंद्वी या दावेदार को ऐसी स्थिति में डालना चाहता है, जहां उसे कुछ ना कुछ लाभ मिले।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन अपने विवादित दावों को आगे बढ़ाने के लिए सैन्य निर्माण और आर्थिक संबंधों का भी उपयोग करता है। पिछले एक दशक में जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम और भारत के साथ इसी तरह की रणनीति पर चीन काम कर रहा है।
जानकारों का कहना है कि चीनी मानचित्र निर्माता ऐसे नाम चुनते हैं जो उस क्षेत्र में चीन की ऐतिहासिक भूमिका के अनुरूप हों, जिसे वह लक्षित करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, बीजिंग ने दावा किया था कि उसकी मछली पकड़ने वाली नावें लगभग 2000 साल पहले दक्षिण चीन सागर में चलती थीं, और इस प्रकार उस इतिहास को प्रतिबिंबित करने के लिए उसने समुद्र के छोटे द्वीपों का अलग चीनी नाम रखना शुरू कर दिया था।
2016 में मनीला ने दक्षिण चीन सागर पर बीजिंग के दावे के खिलाफ विश्व अदालत में मुकदमा जीत लिया और अब दक्षिण चीन सागर को पश्चिम फिलीपीन सागर कहा जाने लगा है। इसके पहले चीन अपनी समुद्री पहुंच का विस्तार करने के लिए 2010 से लगातार क्षेत्रीय विवादों को हवा देकर अपनी बढ़त हासिल करने में लगा था।
चीन ने स्व-शासित ताइवान पर अपना दावा मजबूत दिखाने के लिए लंबे समय से समान मानचित्र रंगों का उपयोग कर रहा है। जिनपिंग की सरकार ताइवान को चीन के समान रंग देने की कोशिश करती है। उसका यह दिखाने का तरीका है कि ताइवान चीन का हिस्सा है। बीजिंग ने 1950 के दशक के मध्य के बाद निर्जन, जापानी-अधिकृत सेनकाकू द्वीपों का नाम बदलकर डियाओयू कर दिया।
बीजिंग टोक्यो और ताइपे के साथ द्वीपों पर विवाद करता है। चीनी जनता और विदेश में उसके समर्थक नए नामांकित स्थलों के बारे में प्राथमिक जानकारी हासिल कर दुनिया में प्रचार करते हैं। यही नहीं नए नाम और अन्य मानचित्र कोडिंग अंततः चीनी पासपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में भी शामिल कर देते हैं।