गौरव अवस्थी
नई दिल्ली: तारीख 13 मार्च 1856 थी। कैसरबाग बारादरी के पूर्वी फाटक पर अपने बादशाह को विदा करने के लिए हजारों की संख्या जनता कतार में खड़ी जार-जार रो रही थी। रात के 8:00 बज रहे थे। बादशाह वाजिद अली शाह bagghi पर सवार होने के लिए बाहर निकले भीड़ में खड़े दुखी एक व्यक्ति ने गाया- बाबुल मोरा नैहर छूटा जाए..। bagghi पर सवार होते वक्त बादशाह को फाटक के नीचे ही ठोकर लगी। कतार में खड़े लोग कांप गए। सबके मुंह से एक साथ निकला- ‘खुदा शाह को सलामत रखे। लंदन से हुक्म आ जाए। राजगद्दी फिर मिल जाए लेकिन बादशाह को फिर अपने लखनऊ शहर का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ। बादशाह वाजिद अली शाह 1847 में राजगद्दी पर बैठे थे। 9 साल की नवाबी के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने वाजिद अली शाह का राज्य छीन कर कोलकाता भेज दिया।
कोलकाता में वाजिद अली शाह को हुगली नदी के किनारे मटियाबुर्ज के बंगला नंबर-11 में रखा गया। बादशाह की बेगम और उनके सेवकों की वजह से यह इलाका मिनी लखनऊ में तब्दील हो गया। इस इलाके के एक बड़े हाते में बादशाह और उनके लोगों के लिए करीब 270 मकान झोपड़ी किराए पर लिए गए। लखनऊ में विद्रोह शुरू हो जाने पर बादशाह को गिरफ्तार कर फोर्ट विलियम जेल में भेज दिया गया। वाजिद अली शाह अपनी विलासी प्रवृत्ति के लिए चर्चित थे। इतने कि जेल में भी बेगमों की कमी उन्हें बेचैन करती थी। अपनी बेगमों से उन्होंने निशानियां मंगवाई। पसंदीदा बेगम अख्तर महल से उन्होंने घुंघराले बाल की लट कटवा कर मंगवाई। विद्रोह खत्म होने के बाद फोर्ट विलियम जेल से छूटने की खुशी में उन्होंने तीन और शादियां की। कहा जाता है कि उनकी य़ह नई पत्नियां भी लखनऊ से ही आयीं थीं।
जेल से छुटने के बाद उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से अपने लिए 12 लाख की पेंशन की डिमांड की लेकिन अंग्रेजों ने एक लाख मासिक पेंशन ही निश्चित की। खर्चीले बादशाह की जरूरत इससे पूरी नहीं हुई तो उन्हें अपनी अपनी सैकड़ो बीवियां फिजूल लगने लगी। इसके बाद उनका अपनी कई बेगमों से झगड़ा भी चला। कई बेगमों को उन्होंने तलाक देकर पेंशन से मुक्ति पाने की कोशिश भी की। इस संबंध में उन्होंने गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन को भेजे गए तार में लिखा था-‘एक सीमित समय और सीमित राशि के भुगतान के लिए औरतों से शादी की जा सकती है और अनुबंध समाप्त होने पर पूर्व पत्नी ‘हराम’ हो जाती हैं। ऐसी पत्नियों द्वारा गुजारा भत्ता मांगना मुसलमान के शिया संप्रदाय के धर्म के सर्वथा प्रतिकूल है’। 31 साल नवाब अवध ने ब्रिटिश हुकूमत की निगरानी में कोलकाता में निर्वासित जीवन बिताते हुए वहीं 21 सितंबर 1887 को आखरी सांस ली।
अंग्रेज लेखिका रोजी लिवेलन जोन्स द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘भारत में आखिरी बादशाह वाजिद अली शाह’ में दर्ज है कि राज्यहरण के बाद वाजिद अली शाह ने कोलकाता जाते समय अपनी मां के अतिरिक्त तीन बीवियों को साथ लिया था। इसमें दो निकाहशुदा बीवियां थीं और एक अनुबंध वाली मुत्आ बीवी। ब्रिटिश विद्वान सर विलियम जॉन्स ने ‘ए डाइजेस्ट ऑफ मोहम्मडन ला’ के अरबी से हुए अनुवाद का पर्यवेक्षण किया, जिसमें शिया मुसलमान की विधि संहिता निर्धारित थी। इस डाइजेस्ट का अनुवाद करने वाले फोर्ट विलियम कॉलेज कोलकाता के प्रोफेसर जॉन बेली ने स्पष्ट किया था कि शिया मुसलमानों में दो तरह की शादियों का प्रचलन था। एक स्थाई विवाह (निकाह) जो जीवन भर चलता है और अस्थाई विवाह (मुत्आ) जो एक निश्चित राशि के बदले सीमित अवधि के लिए अनुबंधित होता है।
वाजिद अली शाह के दरबार में मुत्आ बीवियों की संख्या ही अधिक थी। कहा जाता है कि बादशाह के हरम में तीन तरह की मुत्आ बेगम थीं। एक महल, जिन्होंने बादशाह के बच्चों को जन्म दिया है और जिन्हें पर्दे में रहने की इजाजत मिल गई है। दूसरी बेगम, जिन्होंने बच्चों को जन्म नहीं दिया है और जो पर्दे में नहीं रहती और तीसरी खिलावती, य़ह सबसे निम्न वर्ग की होती हैं। जो घरेलू नौकरों की तरह महल के छोटे-मोटे काम करती थीं लेकिन उन्हें पत्नी का दर्जा हासिल था।
अवध के अंतिम बादशाह वाजिद अली शाह की विलासिता के चर्चे खूब हैं। उनमें एक यह भी है कि उन्होंने 375 शादियां की। उन्हें हर महीने दूल्हा बनना पड़ता था। हालांकि उनके समय के ही इतिहासकार अब्दुल अलीम शरर 70 शादियों की बात लिखते हैं। तब 80 लाख रुपए खर्च करके उन्होंने कैसरबाग महल बनवाया था। यह कैसरबाग ही उनके सपनों का स्वर्ग था।
लखनऊ के इतिहासकार डॉ योगेश प्रवीन की पुस्तक ‘लखनऊनामा’ में लिखा है कि बादशाह वाजिद अली शाह का नाम मिर्जा कैसरजमा था। उसी से यह शाही बाग कैसरबाग कहलाया। यह कोठी ही उनका क्रीड़ा केंद्र थी, जिसे परी खाना कहा जाता था। परी खाने का मतलब है ‘परियों का घर’। इसी परी खाना में उनका विलासी जीवन बीतता था। अनेक परियों के नाच गाने भी पेश होते थे। इनमें कुछ चौक में रहने वाली तवायफें भी होती थीं। कुछ इतिहासकारों ने इसे ‘हरम’ भी कहा है। कैसरबाग में ही हर साल सावन-भादो का मेला लगता था। परीखाने की परियां जोगिने बनती थीं और बादशाह मोतियों की भस्म लगाकर मस्ताना जोगी। उनकी एक चहेती बेगम सिकंदर महल भी खास जोगिन बनकर साथ देती थीं।
उनकी यह विलासिता ही उनके वैभव के क्षरण और राज्य हरण का कारण बनी। ईस्ट इंडिया कंपनी के रेजिडेंट ने उन पर राज्य शासन की बागडोर अच्छी तरह से न संभालने के आरोप लगाकर ही गद्दी से उतारने की कामयाब साजिश रची थी।