नई दिल्ली : मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है. अब मतदान की घड़ी आ गई है. मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों और छत्तीसगढ़ की 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदाता 17 नवंबर को अपना फैसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में कैद करेंगे. मतदान से पहले प्रचार का शोर थमने के बाद बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर कांग्रेस और दूसरे दलों के बड़े नेताओं की रैलियों को लेकर भी हो रही है.
दोनों ही राज्यों में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह जैसे नेता प्रचार के मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में नजर आए. वहीं, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को हटा दें तो कांग्रेस का जोर लोकल लीडरशिप पर रहा. मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं तो छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल प्रचार की कमान संभाले नजर आए.
मध्य प्रदेश में किन मुद्दों पर बीजेपी-कांग्रेस का जोर
मध्य प्रदेश के चुनाव में बीजेपी का जोर जहां बार-बार दिग्विजय सिंह की 10 साल वाली सरकार पर रहा तो वहीं लाडली बहना योजना को भी पार्टी ने बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया. पीएम मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के लगभग हर बड़े नेता ने सनातन और राम मंदिर से लेकर भ्रष्टाचार तक के मुद्दे पर कांग्रेस को निशाने पर रखा. बीजेपी ने अपनी 18 साल की सरकार की उपलब्धियां गिनाईं ही, 15 महीने की कमलनाथ सरकार पर मध्य प्रदेश को गांधी परिवार के लिए एटीएम बना देने का भी आरोप लगाया.
वहीं, कांग्रेस का फोकस जातिगत जनगणना के साथ ही महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी नजर आया. प्रचार के शुरुआती चरण में पार्टी के बड़े नेताओं ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. हालांकि, प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, कांग्रेस का फोकस स्थानीय समस्याओं, शिवराज सरकार की विफलताओं, पर्चा लीक- पटवारी भर्ती में कथित घोटाले के साथ ही 15 महीने की सरकार गिरने के घटनाक्रम की ओर शिफ्ट होता चला गया.
चुनाव प्रचार के अंतिम दिन प्रियंका गांधी ने ग्वालियर-चंबल रीजन के दतिया में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी निशाने पर रखा. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रचार का आगाज करते हुए प्रियंका ने कहा था कि सिंधिया पर कई घंटे बोल सकती हूं, लेकिन ऐसा नहीं करूंगी. शुरुआत में जिस मुद्दे पर बोलने से प्रियंका ने हंसकर इनकार कर दिया था, अंतिम दिन उसे लेकर ही बोलना चरण-दर-चरण बदलती रणनीति का अच्छा उदाहरण है.
छत्तीसगढ़ के प्रचार में वर्गों पर फोकस
छत्तीसगढ़ की बात करें तो विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भ्रष्टाचार, महादेव ऐप बेटिंग केस को मुद्दा बनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव तक इन मुद्दों महादेव ऐप के साथ ही भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर बघेल सरकार पर हमलावर रहे. दूसरी तरफ, कांग्रेस अपनी उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच गई. कांग्रेस ने भरोसे की सरकार का नारा दिया और इसी थीम पर प्रचार को केंद्रित भी रखा.
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों की ही प्रचार रणनीति देखें तो मतदाता वर्गों पर फोकस अधिक नजर आया. भ्रष्टाचार को छोड़ दें तो बीजेपी का जोर महिला, किसान और हिंदुत्व पर रहा. वहीं, कांग्रेस का फोकस भी सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ बीजेपी के हिंदू कार्ड की काट के लिए छत्तीसगढ़ियावाद पर रहा. कांग्रेस ने सूबे की आबादी में अनुमानों के मुताबिक सबसे अधिक भागीदारी वाले ओबीसी को लामबंद करने के लिए जातिगत जनगणना का कार्ड चला तो आदिवासियों को इमोशनली कनेक्ट करने के लिए उनके उत्थान, संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयास भी गिनाए.
सनातन से शुरू, राम मंदिर पर समाप्त हुआ बीजेपी का प्रचार
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार और कुशासन के मुद्दों को बीजेपी ने जमकर उछाला लेकिन दोनों ही राज्यों की प्रचार रणनीति में कुछ कॉमन भी रहा. कॉमन ये कि पार्टी के प्रचार अभियान का शुरुआती चरण सनातन के मुद्दे पर केंद्रित नजर आया तो वहीं अंतिम चरण में राम मंदिर का मुद्दा भी खूब उछला. अब दोनों राज्यों में मतदान की घड़ी करीब है. दोनों ही प्रदेशों की जनता विधानसभा में अपना प्रतिनिधि, अगले पांच साल के लिए अपनी सरकार चुनने को 17 नवंबर के दिन मतदान करेगी. ऐसे में देखना होगा कि जनता किसके प्रचार पर भरोसा करती है.