‘मुखर मौन’
गाँधी के तीन बंदर —
-(व्यंग्य)-
बहुत अरसे बाद गांधी जी के तीन बंदरों को सूझा कि आपस में एक मीटिंग किया जाए — फिर क्या था तीनों एक दूसरे को ढूंढने लगे। कई लोगों से पूछा सोशल मीडिया पर खंगाला। समय बहुत लग गया पर तीनों ने एक दूसरे को ढूंढ़ ही लिया और अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से मुलाक़ात तय की और जा पहुँचे उस स्थल पर जहाँ सबको पहुंचना था। सबसे पहले आपको इन तीनों के नामों से अवगत करवा दूँ. क्योंकि गाँधी जी ने नाम ही नहीं बताया और तब से ये हमारे साथ-साथ चलते रहे और हम इन्हें पहचान न सके, तो बताएं पहले बंदर का नाम जिसने अपने मुहँ पर हाथ रखा था कमबोलू था. दूसरे का नाम जिसने कान पर हाथ रखा था कमसुनु था और तीसरे और अंतिम बंदर का नाम जिसने अपने आँखों को बंद कर रखा था, अल्पदेखु था.
पहले कमबोलू ने बात शुरू की, ” बोल भई कमसुनु और अल्पदेखु तुम लोगों ने कितना अपना धर्म निभाया और इतने वर्षो का क्या अनुभव रहा ? कब-कब अपने जमीर को भी मारना पड़ा या केवल आत्मा का कहा ही किया। चलो सभी अपने-अपने अनुभव बताओ। सबसे पहले अल्पदेखु भाई से पूछते हैं इन्होंने क्या-क्या देखा और क्या क्या छोड़ा? बोलो भई ….अल्पदेखु , ” क्या बताये कमसुनु और कमबोलू भैया। हमारे मालिक तो हम सबका ऐसा मंत्र पढ़ा गए कि उस मंत्र पर रहे तो जीवन ही दूभर हो जाए ज़ब सौ में से दो चार परसेंट की बात हो तब तो आँख बंद कर लें और भाई तुम ही बताओ क्या उस समय भी सब कुछ ठीक था। उस समय भी तो चारों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। न स्वामी खुद कुछ देखने का तैयार हुए और न हमें देखने ही दिए। पर हम भी ठहरे बंदर की जाति हम कहाँ मानने वाले। हमने हर वो जुल्म देखा जिसको स्वामी हमसे छुपाना चाहते थे। हमारे ही समक्ष हिंदुस्तान का बटवारा हुआ। हमारी आँखों के सामने ही हमारे स्वामी ने अंतिम राम नाम लिया। आह स्वामी आपने अपनी अंतरात्मा की एक न सुनी और देश के विभाजन के हिस्सेदार बन गए। हमें वो दिन भी याद हैं ज़ब स्वामी ने कहा था देश का बंटवारा मेरी लाश पर होगा, और…और वही हो गया….उफ्फ्फ मेरी छोड़ो कमबोलू भाई तुम बोलो तुमने क्या क्या किया इतने दिनों तक …???”
कमबोलू ,” हम भी अपने स्वामी के सताये हुए ही हैं क्या बताएं कम बोलो…बुरा न बोलो…अरे ज़ब दुनिया ही बुरे पर टिकी हुयी हैं तो हरिश्चन्द्र बनकर क्या मिलने का ? ऊपर से तुम्हारी तरह मैं भी ठहरा वानर ही ..हमारी तो प्रकृति ही हैं उछल कूद की …बोलने की…तुम ही लोग बताओ हमारी ही बाप दादा ने श्री राम जी का साथ दिया था लंका विजय में ….दिया था की नहीं ….पर…पर क्या श्री राम ने हम लोगों से बदले में कुछ माँगा …उन्होंने हमारी बोलने देखने सुनने पर कोई पाबंदी लगाई नहीं न …फिर..फिर स्वामी तो खुद श्री राम के भक्त थे …उन्होंने हमारी स्वाभाविक प्रकृति पर ही रोक लगवा दिया …पर हुआ क्या…क्या फर्क पड़ा किसी पर कुछ…और नहीं तो मजाक बना दिया लोगों ने हमारा …जाने कितने जोक बनते हैँ हमपर …सुन सुन कर तो कान ही पक जाते …कभी कभी मन होता बहुत जोर से आवाज दें और सारी दुनिया को बता दें कि …हम पूरे होश में खुद को अपने स्वामी के दिए हुए बंधन से मुक्त करते हैँ ….और हम भी कुछ भी अब अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर फैसला लेंगे ….सच हमारे साथ बहुत अन्याय हुआ हैँ ….काश समय का पहिया घूम सकता तो मैं उस समय पहुंचना चाहूंगा ज़ब स्वामी ने हम पर ये शर्त लादी थी….और….और फिर…उसके बाद देश का बंटवारा भी रोक दूंगा ….कितना सुखद लग रहा सोचकर भी….जाने कितने परिवारों का भला हो जाएगा…सभी का विस्थापन खत्म हो जाएगा…कितनी माओं-बहनों की इज्जत बच जायेगी। उफ्फ्फ्फ़ कितना भयावह दृश्य उभर आया ….कमदेखु थोड़ा पानी का गिलास बढ़ाना ….मेरा हलक सूखा जा रहा ….कमसुनु भैया आप बताओ आपका अनुभव …मुझसे अब और न बोला जाएगा ….अरे ये क्या कमसुनु भैया आपकी आँखों में आंसू ,”
कमसुनु आँसू पोछते हुए ,” बस कुछ नहीं तुम बोल रहे थे तो जाने कितने भयावह दृश्य मेरी आँखों के आगे तैर गए.अब इन बातों को याद करके क्या फायदा …ज़ब भी वो दृश्य जेहन में आते हैँ तो रोम-रोम कांप उठता हैँ और एक अजीब सी घृणा होने लगती हैँ आस-पास के माहौल से …मेरा अफसाना तुम भाईयों से जुदा नहीं हैँ ….स्वामी की आज्ञा थी कम सुनने की तो कम ही सुनता हूँ ….लेकिन बुराई नहीं भलाई ,” अल्पदेखु , ” क्या मतलब ,” कमसुनु , ” मतलब ये की शायद तुम लोगों को भी स्वामी का आशय ठीक-ठीक नहीं समझ आया ….स्वामी का सही आशय यही था …जैसा की कलियुग हैँ ये स्वामी को भी पता था …अतः बुराई का बोल बाला रहेगा भलाई के कार्य कभी कभार ही होंगे …अगर किसी पर भलाई का फितूर स्वर हो जाएगा केवल तब …जैसा की तुम लोग खुद भी महसूस कर चुके हो स्वामी भी अक्सर अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर भी अनसुना कर देते थे …स्वामी भी कुछ लोगों के प्रति मोहित थे और यही मोह उनके निर्णय पर भारी रहता था…ठीक वैसे ही उनका कहना था …आने वाले समय में भलाई की बातों के प्रति …या मानव जाति के भले की जहाँ भी बात हो रही हो वहां से कान आँख मुँह बंद करके निकल जाना चाहिए।
और बुराई का ही बोल बाला रहेगा तो ज़ब तक आप उसके साथ रम नहीं जाएंगे आपका जीवन दूभर रहेगा …अतः मैं भी अब भली जगहों पर भी जाता ….देखो भले लोग इतने भले होते हैँ की वो अपना और अपने बच्चों का ही पेट ठीक से नहीं पाल पाते फिर वो हमें कैसे मदद दे सकेंगे…जो लोग बुरे कार्यों में लगे रहते हैं उनके पास तो भगवान कुबेर भी धन की वर्षा रूपी प्रसाद देते रहते हैं। फिर ऐसे लोग एक हिस्सा हम जैसों को देकर अपने कर्मो का शुद्धि करते रहते हैं। फिर हम जैसों की बल्ले-बल्ले रहती हैं। समझें …,” कमसुनु आगे बोला , ” अब बहुत थकान महसूस हो रही हैं चलो किसी फाइव स्टार होटल में बैठकर कुछ खाते पीते हैं और उसका बिल किसी बुरे के खाते में भिजवा देंगे “!
–सीमा”मधुरिमा”–
लखनऊ