गरीब घर की लड़की – (लघु कथा)
आज सुधा को अपनी सबसे छोटी बहू के साथ रहते दस वर्ष बीत गया पर इस छोटी बहुत उर्फ़ कविता ने कभी कोई शिकायत नहीं की जबकि तीनों बेटों में सबसे कम आमदनी सुधा के छोटे बेटे की ही थी …चुंकि सुधा उसी के पास रहती थी तो उसकी दोनों बेटियाँ भी अक्सर उससे मिलने वहीं आती थीं और कोई बड़ा त्यौहार होता था तो दोनों बड़े बेटे भी अपने बच्चों को लेकर वहीं आ जाते l
ऐसा नहीं था की सुधा के दोनों बेटे उसका ख्याल नहीं रखते ज़ब भी आते कुछ न कुछ देकर ही जाते ….पर इस महँगाई के जमाने में वो देना न के बराबर ही था ….पर छोटी बहू कविता ने उससे कभी कोई शिकायत नहीं की …ज़ब भी जो भी आया सबकी हैसियत के हिसाब से खातिदारी की और ख़ुशी ख़ुशी विदा किया l दस सालों में सुधा को अक्सर एक ही बात कचोटती रहती थी …ज़ब तक उसके पति जीवित थे कभी भी उनके साथ अपनी बहुओं के लिए कुछ खरीदने की नौबत आती तो अक्सर ही छोटी बहू के लिए कोई साधारण सा उपहार ही खरीदती थी और बड़ी बहुओं के लिए कीमती ..उसके पति ज़ब इस तरह के भेदभाव के बारे में पूछते तो कह देती — वो गरीब घर की लड़की है इतने से ही खुश हो जायेगी …..उफ़….क्या पता था वही गरीब घर की लड़की ही उसके बुढ़ापे की संगिनी बनेगी l
सीमा” मधुरिमा
लखनऊ