नई दिल्ली: अब अस्पतालों में इलाज कराना पहले से अधिक महंगा हो रहा है, क्योंकि कई अस्पतालों ने मरीजों से ‘सर्ज प्राइस’ या ‘पीक चार्ज’ लेना शुरू कर दिया है. यह शुल्क तब लागू होता है जब अस्पताल में पहले से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं या ऑपरेशन थिएटर व्यस्त होते हैं. यह ट्रेंड ठीक उसी तरह है जैसे हवाई जहाज की टिकट में होता है, जहां यात्रियों की संख्या बढ़ने पर टिकट के दाम भी बढ़ जाते हैं. जिस तरह फ्लाइट में पहले टिकट बुक कराने पर सस्ती टिकट मिलती है, लेकिन आखिरी समय में महंगी टिकट मिलती है, वैसा ही अस्पतालों में इलाज के साथ हो रहा है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
‘इकनॉमिक टाइम्स’ के अनुसार, हेल्थ सेक्टर में यह नया चलन तेजी से उभर रहा है. अस्पताल अब ऑपरेशन थिएटर में अधिक व्यस्तता के चलते अतिरिक्त ‘सर्ज चार्ज’ ले रहे हैं. जैसे-जैसे ऑपरेशन थिएटर भरते जाते हैं, मरीजों से लिया जाने वाला चार्ज भी बढ़ता जाता है. इससे न केवल मरीजों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है, बल्कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के लिए भी यह नई चुनौती पैदा कर रहा है.
इलाज पर बढ़ा खर्च
स्वास्थ्य बीमा से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, साल-दर-साल इलाज का खर्च लगातार बढ़ रहा है, और महंगाई की दर सामान्य से 14% ज्यादा है. इस ‘सर्ज प्राइसिंग’ की वजह से इलाज का खर्च लगभग 20% बढ़ गया है. यहां तक कि रूटीन प्रोसिजर्स जैसे लेप्रोस्कोपी या हिस्टेरेक्टोमी जैसी प्रक्रियाओं पर भी पीक चार्ज लागू हो रहा है, जो पहले सामान्य हुआ करती थीं.
अस्पतालों ने अपने इलाज के तरीके में भी बदलाव करना शुरू कर दिया है. उदाहरण के लिए, एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया को पहले एक व्यापक पैकेज के तहत पेश किया जाता था, जिसमें एंजियोग्राम और स्टेंटिंग दोनों को एक साथ बंडल किया जाता था. लेकिन अब कई अस्पतालों ने इसे अनबंडल कर दिया है, जिसके तहत एंजियोग्राम और स्टेंटिंग के लिए अलग-अलग शुल्क लिया जा रहा है. इससे मरीजों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है और बीमा कंपनियों के लिए इलाज की लागत का अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है.
बीमा कंपनियों पर बढ़ रहा दबाव
इन बढ़ते खर्चों का सीधा असर बीमा कंपनियों पर भी हो रहा है. पहले बीमा कंपनियां एक अनुमानित लागत के आधार पर पैकेज तैयार करती थीं, लेकिन अब अस्पतालों की ओर से बढ़ते ‘पीक चार्ज’ के कारण बीमा कंपनियां इलाज की लागत को नियंत्रित करने में असमर्थ हो रही हैं. इससे बीमा प्रीमियम में भी वृद्धि हो सकती है.
अस्पतालों द्वारा अपनाए गए नए नियम और शुल्क मरीजों के लिए चिंता का विषय बनते जा रहे हैं, क्योंकि इलाज का खर्च अब पहले से कहीं ज्यादा अप्रत्याशित हो गया है. इसका सीधा असर बीमा कंपनियों की योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की समग्र लागत पर पड़ रहा है.